झुग्गी वाले करें तो साला करेक्टर ढीला…खुशदीप

उम्र गुज़र जाती है इक घर बनाने में,
उन्हें शर्म नहीं आती बस्तियां जलाने में…

किसी का घर उजाड़ा जाता है, तो हर किसी को दर्द होता है…मुंबई के पॉश
इलाके वर्ली की कैम्पा कोला सोसायटी पर बुलडोजर पहुंचा तो वहां रहने वालों
बाशिंदों का दर्द पूरी दुनिया ने महसूस किया…न्यूज़ चैनलों ने वहां हर लम्हे को
कैद किया…लंबी लंबी बहसों का प्रसारण किया गया…लब्बो-लुआब यही रहा कि बिल्डर्स
और भ्रष्ट अफसरों के ग़लत काम की सज़ा सोसायटी के फ्लैट-धारकों को क्यों दी जाए…



निशाने पर सिर्फ 96 फ्लैट थे…लेकिन सोसायटी ने मीडिया और सोशल
मीडिया के साथ अपने हक़ में ज़बरदस्त दबाव बनाया…खैर, आज सुबह कुछ देर टकराव के बाद
कैम्पा कोला सोसायटी के बाशिंदों के लिए दिल्ली से अच्छी ख़बर आ गई….सुप्रीम
कोर्ट ने सात महीने यानि 31 मई 2014 तक डिमोलिशन की कार्रवाई से बीएमसी
(ब्रह्नमुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन) को रोक दिया…इस राहत से सभी खुश दिखाई
दिए…वहां रहने वाले बाशिंदे भी…क्रेडिट लूटने की हर वक्त फिराक में रहने वाले
राजनेता भी…और मीडिया भी…तेवर यही रहे कि सोसायटी के अवैध तौर पर बने फ्लैट्स
को आखिरकार एक दिन रेगुलराइज़ करना ही पड़ेगा…

लेकिन अब तस्वीर को ज़रा घुमा कर देखिए…कैम्पा कोला सोसायटी को एक
मिनट के लिए भूल जाइए….शहर में अवैध तौर पर बनी एक झुग्गी झोपड़ी बस्ती (स्लम) को
जेहन में लाइए…अगर बुलडोजर इस बस्ती को उजाड़ने पहुंचता तो क्या होता…क्या वही
होता जो आज कैम्पा कोला सोसायटी में हुआ…सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद
डिमोलिशन दस्ता ऐसे ही खाली हाथ लौट जाता जैसे आज लौटा…क्या झुग्गियों में रहने
वाले दर्द को ऐसे ही नेशनल न्यूज़ चैनलों के माध्यम से घर-घर पहुंचाया जाता…ऐसे
ही दबाव बनाया जाता…मुझे शक़ है ऐसा होता…दिल पर हाथ रख कर बताइए क्या इन
झुग्गी-झोपड़ियों को हम शहर के सीने पर पैबंद नहीं मानते…प्रशासन को कोसते नहीं
कि आखिर क्यों इनके अवैध अतिक्रमण पर हथौड़ा नहीं चलाया जाता…सुविधा के लिए हर
झुग्गी झोपड़ी वाले को बांग्लादेशी घुसपैठिया भी करार दे दिया जाता है…

चलिए फिर लौटते हैं कैम्पा कोला सोसायटी
पर…ये कहानी शुरू होती है 17 जून 1972 को…उस वक्त प्योर ड्रिंक्स लिमिटेड को
डेढ़ लाख स्क्वायर फीट का प्राइम टाइम प्लॉट एक रुपये की लीज़ पर दिया गया
था…1980 में कंपनी को प्लॉट पर स्टॉफ के क्वार्टर बनाने के नाम पर रेज़ीडेशियल
यूज़ के लिए बीएमसी से अनुमति मिल गई…प्लॉन अप्रूव कराए बिना ही कंपनी ने बिल्डर
के साथ मिलकर प्लॉट पर कई मल्टीस्टोरी टॉवर खड़े कर दिए… नवंबर 84 में स्टाप
वर्क का नोटिस भी जारी हुआ…लेकिन पेनल्टी भरने के बाद दोबारा काम शुरू हो गया…

दरअसल
पांच मंजिला निर्माण की अनुमति के बावजूद इससे कहीं ज़्यादा फ्लोर्स खड़े कर दिए
गए…दो टॉवर में तो 17 से 20 फ्लोर खड़े कर दिए गए….कुल मिलाकर 35 फ्लोर को
अवैध माना गया… निर्माण पूरा होने के बाद फ्लैट के खरीदार उनमें रहने भी लगे
लेकिन उन्हें वैधता के लिए ज़रूरी ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट नहीं मिले…रेज़ीडेंट्स
का कहना है कि वो 1999 में पानी के कनेक्शन के लिए बीएमसी से मांग करने गए तो
उन्हें पहली बार सोसायटी के फ्लैट्स के अवैध होने का पता चला…2005 में
रेज़ीडेंट्स पानी के कनेक्शन और रेगुलराइज़ेशन के लिए कोर्ट गए…कोर्ट ने
म्युनिसपल कमिश्नर से निश्चित अंतराल में कार्रवाई करने के लिए कहा…म्युनिसपल
कमिश्नर ने राहत की जगह पांच मज़िल से ऊपर वाले फ्लोर्स के फ्लैट्स को गिराने का
नोटिस जारी कर दिया…

निचली अदालत में विपरीत फैसला आने के बाद रेज़ीडेट्स
2011 में हाईकोर्ट में भी केस हार गए…फरवरी 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी
फ्लैट्स को रेगुलराइज़ करने से मना कर दिया…27 अप्रैल 2013 को बीएमसी ने 48 घंटे
में अवैध फ्लोर खाली करने का आदेश दिया…उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने रेज़ीडेंट्स को
हटने के लिए 5 महीने की मोहलत दी…एक अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माण
को खाली कराने और गिराने के लिए 11 नवंबर 2013 तक की तारीख तय की…लेकिन 12 नवंबर
को बीएमसी के अधिकारी अवैध निर्माण खाली कराने के लिए पहुंचे तो रेज़ीडेट्स डट गए…महिलाओं
ने आगे रह कर मोर्चा संभाला…बात एक दिन के लिए टल गई…बुधवार सुबह डिमोलिशन
दस्ते ने सख्ती से काम लेते हुए सोसायटी कंपाउंड के तालाबंद गेट को गिरा दिया…साथ
ही रेजीडेंट्स पर बल का भी प्रयोग किया…ये सब चल ही रहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने
स्वत ज्ञान लेते हुए सात महीने तक बीएमसी की कार्रवाई पर रोक लगा दी….

ये तो रहा अब तक का घटनाक्रम…अब आते हैं
असली सवालों पर…

क्या इन 96 फ्लैट्स को खाली कराने और
गिराने के लिए ये कार्रवाई अचानक ही शुरू हुई…क्या रेज़ीडेट्स को इसका पहले से
गुमान तक नहीं था….तो जनाब इसका जवाब ये है कि नवंबर 1984 में ही निर्माण रोकने
के लिए स्टाप वर्क नोटिस जारी हो गया था…यानि 29 साल पहले ही ये जाहिर हो गया था
कि निर्माण अवैध ढंग से हो रहा है…एक आर्किटेक्ट का कहना है कि क्या रेज़ीडेंट्स
और क्या नेता सभी को पता था कि स्टाप वर्क नोटिस के बावजूद निर्माण हो रहा है….वाटर
सप्लाई और ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट ना होने पर भी फ्लैट के खरीदार सोसायटी के सदस्य
क्यों नहीं सचेत हुए…

निचली अदालत ने पाया कि आर्किटेक्ट ने
बिल्डर-डवलपर को बार-बार चेताया कि सेंक्शन्ड प्लान से अलग निर्माण अवैध
है…हाउसिंग सोसायटी के सदस्य भी इस तथ्य से अवगत रहे…

हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत से सहमति जताई
कि सोसायटी के सदस्यों को ये अच्छी तरह मालूम था कि उनके फ्लैट सैंक्शन्ड प्लान को
ताक पर रख कर बनाए गए थे…

फरवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अवैध
निर्माण को खाली कराने और गिराने पर अपनी मुहर लगा दी…सुप्रीम कोर्ट ने अपने
आदेश में खास तौर पर राज्य सरकार को वो करने से मना किया, जिसकी रेज़ीडेंट्स मांग
कर रहे हैं…इनकी मांग है कि राज्य सरकार अध्यादेश के ज़रिए उनके फ्लैट्स को
रेगुलराइज़ कर दे…

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था…

दुर्भाग्य से बार-बार इस कोर्ट और
हाईकोर्ट के फैसलों के बावजूद बिल्डर्स और अन्य प्रभावशाली लोग निर्माण गतिविधियों
में लगे हैं, ये वो लोग हैं जिन्होंने रेगुलेटरी मैकेनिज्म के प्रति वर्षों से
नगण्य सम्मान दिखाया है…जिन्हें सरकारी ढांचे से शह और समर्थन मिलता रहा
है…जैसे और जब भी अदालतों ने आदेश जारी किए हैं, स्थानीय और अन्य संस्थानों के
अधिकारियों ने शहरों के सुनियोजित विकास के लिए कानून का अमल कराने के लिए अवैध
निर्माण गिराने के आदेश जारी किए हैं तो सत्ता में बैठे लोग गलत काम करने वालों के
बचाव में आगे आ जाते हैं…प्रशासनिक आदेश जारी कर दिए जाते हैं या फिर दया या
मुश्किलात का हवाला देते हुए अनियमित और अनाधिकृत निर्माण को नियमित करने के नाम
पर क़ानून बना दिए जाते हैं…ऐसे काम शहरी क्षेत्रों के योजनागत विकास की अवधारणा
को ऐसा नुकसान पहुचाते हैं कि जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती…

निचोड़ ये है कि वर्षों की क़ानूनी लड़ाई
के बाद सर्वोच्च अदालत तक से अवैध निर्माण को खाली कराने और गिराने पर मुहर लग
गई…यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी साफ किया कि रेज़ीडेट्स अब
किसी एजेंसी से किसी राहत के लिए अप्रोच ना करे…सुप्रीम कोर्ट ने रेज़ीडेंट्स की
तरफ से पेश हुए दिग्गज वकील अभिषेक मनु सिंघवी की इस दलील को नहीं माना कि बिल्डर
की ओर से अवैध निर्माण किए जाने का दंड रेज़ीडेंट्स को दिया जा रहा है…

सुप्रीम कोर्ट इसी नतीजे पर पहुंचा कि
रेज़ीडेंट्स जानते थे कि आर्किटेक्ट ने जो रिवाइज्ड प्लान जमा कराया था वो
प्लानिंग अथॉरिटी से अप्रूव नहीं था…डवलपर की ओर से रेज़ीडेंट्स को ये भी बता
दिया गया था कि रिवाइज्ड प्लान के खारिज होने के क्या परिणाम हो सकते हैं…ऐसे
हालात में इस नतीजे से बचा नहीं जा सकता कि रेज़ीडेंट्स ने जानने के बावजूद ऐसे
फ्लैट्स लिए जिनका बिल्डर-डवलपर ने अवैध ढंग से निर्माण किया था…

सवाल यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के
सम्मान का भी है…फरवरी में फैसला आने के बाद भी रेज़ीडेंट्स लगातार अपने अवैध
निर्माण को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं…मुख्यमंत्री से वही मांग की जा रही है
जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने मना कर रखा है…इलाके के कांग्रेसी सांसद और केंद्र
सरकार में मंत्री मिलिंद देवड़ा के लिए कैंपा कोला सोसायटी के समर्थन में आगे आना
मजबूरी है…क़ानूनी जटिलताओं को जानते हुए भी वो ऐसा आभास देने की कोशिश करते
दिखे कि वो अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार से भी इस मुद्दे पर लोहा लेने को तैयार
है…सियासत का ही ये रंग है कि बीजेपी के नेता भी इस मौके को भुनाने की कोशिश मे
दिखे…साथ ही बीएमसी में जिस शिवसेना का परचम है, उसके मेयर भी कैंपा कोला
सोसायटी के लोगों के साथ एकजुट दिखे…अब भले ही बीएमसी को अवैध निर्माण हटाने
की कार्रवाई करनी है…

सवाल ये भी है कि अवैध निर्माण को लेकर कैंपा
कोला सोसायटी जैसा ही स्पेशल ट्रीटमेंट स्लम्स में रहने वालों को क्यों नहीं
मिलता…2004 और 2005 में मुंबई में लाखों झुग्गियां हटाई गई थीं…



दिल्ली जैसे महानगर
में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने में चुनावी फायदे का खेल किसी से छुपा नहीं है…यही
सब होना है तो फिर प्लान्ड सिटी के दिखावे ही क्यों किए जाते हैं…अब अगर
अध्यादेश लाकर महाराष्ट्र सरकार कैंपा कोला सोसायटी के अवैध निर्माणों को वैधता
देती है…तो क्या ऐसी ही ना जाने कितनी और अवैध निर्माण वाली सोसायटी आगे आकर
अपने लिए भी ऐसे ही ट्रीटमेंट की मांग करने नहीं लग जाएंगी…

सौ बातों की एक बात…क्या सुप्रीम कोर्ट
से अंतिम फैसला आने के बाद भी दबाव के ज़रिए उसे पलटने की कोशिशों को जायज़ ठहराया
जा सकता है…

Khushdeep Sehgal
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प्रवीण
11 years ago

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हम एक 'बनाना रिपब्लिक' बन गये हैं जहाँ पैसे और संबंधों के बूते पर नियम-कानून तह कर जेब में रखे जा सकते हैं, वक्त बेवक्त रूमाल की तरह गंदगी पोंछने के लिये… आप देखियेगा आदर्श हाउसिंग सोसायटी वाले फिर से उसी शान से रहने लगेंगे…

anshumala
11 years ago

सरकारे अवैध घरो को तोड़ कर कभी भी अवैध निर्माणो को बनाने से नहीं रोक सकती है , ये बहुत बार हो चुका है फिर भी निर्माण हो रहे है , एक बार सरकारी अधिकारी और बिल्डर के खिलाफ कार्यवाही कीजिये , उन्हें सजा दीजिये सरकारी लोगो की जिम्मेदारी तय कीजिये फिर देखिये की कैसे ये अवैध निर्माण रुकते है ।

anshumala
11 years ago

कुछ मुद्दो को आप सामने नहीं ला पाये सम्भवतः इसकी वजह आप का दिल्ली में होना है ,
१- यहाँ मुम्बई में सरकारी जमीन पर बने अवैध झोपड़ो में रहने वाले जो एक पैसा भी संपत्ति कर नहीं देते है , उन्हें सरकार अपने पैसे से घर बना कर मुफ्त में देती है , ये सुविधा मिडिल क्लास को क्यों नहीं दिया जा रहा है ।
२-मुम्बई के बाहर सबब में कुछ समय पहले वन क्षेत्र में अतिक्रमण कर बनाये गए हजारो घरो को वैध कर दिया गया जो निजी ( और ज्यादातर नेताओ की कम्पनियो ) बिल्डरो ने बनाया था , फिर इस मामले को कोर्ट तक सरकार खीच कर क्यों ले कर गई इसे वैध बनाने का काम क्यों नहीं किया गया ।
३- दिल्ली में इसी कांग्रेस की सरकार ने कितने अवैध कालोनियो को एक झटके में वैध कर दिया , यही काम मुम्बई कांग्रेस को करने में क्या आपत्ति थी
४- जहा तक मेरी जानकारी है कोर्ट ने साफ कहा था की सम्बंधित विभाग नए नियम कानून बना कर यहाँ के लोगो को राहत दे सकती है उन्हें उसी से बात करनी चाहिए , फिर उस विभाग ने वैध बनाने का काम क्यों नहीं किया , सरकारे ऐसे काम करती रही है , एक और इमारत को वैध करने में क्या जाता था ।
५- पहले आश्वासन देने वाले नेता खासकर मुख्य मंत्री अचानक से अपने हाथ क्यों खीच लिए , मिलने से इंकार तक क्यों कर दिया ।
६- सरकारी विभाग कोर्ट के आदेश पर कब इतनी तत्परता से काम करती है , जैसा यहाँ हो रहा था
७- पहले दिन चुपचाप लौट जाने वाली पुलिस दूसरे दिन ताकत क्यों प्रयोग करती है पहले दिन किसने मना किया था ।
८- और क्या ये संजोग आप को पच रहा है की जैसे ही बल प्रयोग किया गया वहा के लोगो को सरकार की ताकत का नमूना दिखाया गया , उन्हें ये दिखाया गया कि देखो सरकार क्या क्या कर सकती है और तभी चमत्कार की तरह कोर्ट का आदेश आ जाता है ।
९- – एक बार आइये और उन १२०० स्क्वायर फिट से बड़े घर कहा बने है ये देखिये और उनकी खिड़कियों से बाहर का समुन्द्र के सुन्दर नज़ारे को देखिये , आप को नेता बिल्डर मुम्बई की जमीन और अरबो रुपये का रिश्ता सब समझ में आ जायेगा । फिर आप समझेंगे की ये मामला जितना सीधा साधा अवैध निर्माण , कोर्ट का आदेश अमिर और गरीब का अंतर आदि आदि का दिख रहा है उतना सीधा है नहीं उसकी असली पोल समझ आ जायेगी ।
जमीन , बिल्डर , नेता , दामाद जी, सरकार , ईमानदार अधिकारी और तबादला ( बदला पढ़े ) का रिश्ता तो आप दिल्ली बैठ कर भी देख ही रहे होंगे ।

anshumala
11 years ago

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

shikha varshney
11 years ago

कौन सी नई बात है खुशदीप। हमारे देश में गरीब को कोई हक़ होता ही कहाँ है. पावर और पैसे का गेम है सब. करोड़पतियों की जो ये आलीशान कोठियां बनी हुई हैं, ये क्या सब लीगल हैं?

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

भईया, अपने हिंदुस्तान में गरीबी और गरीब होना एक अभिशाप ही है … टॉपिक आपने बहुत सही उठाया है अपने आलेख के ज़रिये …

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

भईया, अपने हिंदुस्तान में गरीबी और गरीब होना एक अभिशाप ही है … टॉपिक आपने बहुत सही उठाया है अपने आलेख के ज़रिये …

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)

भईया, अपने हिंदुस्तान में गरीबी और गरीब होना एक अभिशाप ही है … टॉपिक आपने बहुत सही उठाया है अपने आलेख के ज़रिये …

super-bazar
11 years ago

waaaah mehanat kasho ke liye roti kapada aur makan ki jimmedari sarkar ki honi hi chahiye pr aam janta ko bhi kano me tel aur aankho me patti nahi rakhani chahiye maza aa gaya pad ke wah bhadhai mitra
Sudhir Pandey
9926124801

pramod raghavan
11 years ago

बहुत ही अच्छा…समाज को आईना दिखाती बातें है …

Udan Tashtari
11 years ago

वाज़िब सवाल – सटीक आलेख

दिनेशराय द्विवेदी

इस जबर्दस्त आलेख के लिए आप बधाई के पात्र हैं।
असली मुद्दे की बात आप ने कही है। जितनी भी जनसंख्या है उस के लिए जनता की आय क्षमता के अनुसार आवास उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए। लेकिन वह उस की अनदेखी करती है। सारी जमीन सरकार की होते हुए भी उसे भूमाफियाओं और व्यापारियों के हवाले कर निम्न और मध्यवर्गीय लोगों सही शब्द इस्तेमाल करूँ तो मेहनतकशों के लिए आवास जुटाना तक मुश्किल कर दिया गया है। इस मामले में यह बात जो आप ने उठाई है उसे उठाना पूरी तरह वाजिब था। इस आलेख की लिंक फेसबुक पर शेयर कर रहा हूँ।

ताऊ रामपुरिया

समरथ को नही दोष गुसाई. बहुत ही सटीक आलेख.

रामराम.

ASHUTOSH
11 years ago

very informative

Satish Saxena
11 years ago

इन भूखे मज़दूरों को
नंगे पैर किसानो को
चाय बेचने वालों को
बंधीं हुई वैश्याओं को
शिक्षक और स्कूलों को,घर की अनपढ़ माँओं को,
राहत बहुत जरूरी है!

अजय कुमार झा

इस मुद्दे पर सब कुछ पढने देखने को मिल गया खुशदीप भाई , शुक्रिया । बहुत ही वाज़िब सवाल उठाए हैं आपने , लेकिन इन सबके बीच एक बात और स्पष्ट हो गई है कि मीडिया हाईप स्थितियों , मुद्दों , सवालों , समस्याओं को देखने दिखाने के नज़रिए को प्रभावित कर रहा है नि:संदेह कर रहा है । खुद ही आदेश देने वाली न्यायपालिका ने खुद ही स्थगन आदेश दे दिया । यदि समाचार तत्रों में ये खबर नहीं आती तो शायद ऐसा नहीं हो पाता ……सामयिक सटीक आलेख

Gyan Darpan
11 years ago

झुग्गी बस्ती के सामने से निकलते वक्त हर व्यक्ति के मन में यही विचार उठता है कि इस तरह अवैध अतिक्रमण हटा देने चाहिए पर इस तरह के विचार करने वाले खुद अपने द्वारा किये अतिक्रमण को जायज मानते है|
मैं अपनी हरियाणा हाउसिंग बोर्ड द्वारा बनाई कॉलोनी की बात करूँ तो लोगों ने सड़क किनारे तक अतिक्रमण कर रखे है, बिजली के खम्बे लोगों व गटर लाइन के ढक्कन तक लोगों की चार दिवारी में घुस चुके है, इतना ही नहीं सड़क तक अतिक्रमण करने के बाद अब उनकी कारें सड़क पर खड़ी होती है रात को किसी को निकलना हो या आग लग जाये तो न तो फायर ब्रिगेड घुस सकती ना जरुरत एम्बुलेंस !
लेकिन बेशर्मी देखिये अक्सर सड़क या पार्क में खड़े कॉलोनी के लोगों द्वारा पास ही झुग्गी बस्ती के अतिक्रमण पर चिंता जाहिर करते हुए सुनता हूँ !
इस देश पर लोकतंत्र के नाम पर पुजीपतियों ने अपनी दम पर बुद्धिजीवीयों को खरीदकर सत्ता पर अपना नियंत्रण कर लिया है अत: न्याय की कोई उम्मीद नहीं ! न्याय भी पूंजीपतियों के हकों को मध्यनजर रखते हुए ही किया जायेगा ऐसे कानून बना दिए गए है या बना दिए जायेंगे !
जैसे सट्टेबाजी को कानून सही ठहराना ! क्योंकि सट्टेबाजी गरीब नहीं पूंजीपति करते है !!
कहने का मतलब कानून भी दोहरी नजर रखने लगा – गरीब पर अलग और अमीर पर अलग नजर !!

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