आज बात न कश्मीर की और न ही अयोध्या की…आज बात मसूरी की…कश्मीर पर बहस को मैं विराम दे रहा हूं…एक तो दिनेश राय द्विवेदी सर दो-तीन दिन के लिए ब्लॉग से छुट्टी पर हैं…दूसरे मसूरी की खबर ही ऐसी है जिसने मुझे उद्वेलित कर दिया है…अयोध्या का हर तरफ शोर है…फैसला आना है, फैसला आना है…यकीन मानिए 24 सितंबर को अयोध्या की विवादित ज़मीन के मालिकाना हक़ पर फैसला आने के बाद भी मुकदमेबाज़ी खत्म नहीं होगी…जिस पार्टी के हक में फैसला नहीं होगा वो निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी…सुप्रीम कोर्ट से फैसला आएगा तो फिर संसद से क़ानून बनाने की बात होगी…ठीक वैसे ही जैसे कि अस्सी के दशक में शाहबानो केस में हुआ था…धर्म या तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों को इस दौरान पूरा मौका रहेगा अपने गले की शक्ति दिखाने का…
खैर ये तो रही बात अयोध्या की…अब आता हूं मसूरी पर…मसूरी के घंटाघर पर…वो घंटाघर जो मसूरी का सिगनेचर माना जाता था…1939 में बनाया गया ये घंटाघर सात दशक में मसूरी की ज़िंदगी में ऐसे रच-बस गया था कि उसके बिना मसूरी का तसव्वुर ही नहीं किया जा सकता था…लेकिन मसूरी की इस खास पहचान को इस साल मार्च में गिरा दिया गया…
मसूरी नगरपालिका ने घंटाघर को गिराने के लिए उसके खस्ताहाल होने की दलील दी…साथ ही वादा भी किया कि उसकी जगह नए सिरे से भव्य घंटाघर का निर्माण किया जाएगा…जिस पर इलेक्ट्रॉनिक क्लॉक, फैंसी लाइट्स लगी होंगी, साथ ही एक संग्रहालय भी बनाया जाएगा…नगरपालिका बोर्ड के मुताबिक नए घंटाघर के निर्माण पर 39 लाख का खर्च आएगा और इसे पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप (पीपीपी) आधार पर बनाया जाएगा…इसमें बोर्ड 19 लाख रुपये खर्च वहन करेगा…बाकी 20 लाख रुपये मुंबई स्थित एक कारोबारी पीपीपी के तहत खर्च करेंगे… बोर्ड की इसी मंशा को लेकर सवाल उठने लगे..
मसूरी के स्थानीय नागरिक मसूरी की खास पहचान रहे घंटाघर को गिराए जाने से बेहद नाराज़ हैं…नगरपालिका बोर्ड के पूर्व चेयरमैन मनमोहन सिंह माल तो यहां तक आरोप लगाते है कि प्राइवेट पार्टी को ही लाभ पहुंचाने के लिए ये घंटाघर को गिराया गया…प्राइवेट पार्टी का घंटाघर की ज़मीन के पास ही होटल-रेस्टोरेंट है…जबकि नगरपालिका के मौजूदा चेयरमैन ओ पी उनियाल का कहना है कि खस्ताहाल घंटाघर से लोगों को खतरा था…और अब जो नया घंटाघर बनाया जाएगा, उससे मसूरी के पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा…
जो भी है, मसूरी के नागरिक नगरपालिका के इस तर्क को पचा नहीं पा रहे हैं…ऊपर से घंटाघर को गिराए छह महीने से ज़्यादा बीत गए और नए घंटाघर के निर्माण का अब भी दूर-दूर तक कोई पता नहीं है…ऐसे में लोगों की नाराज़गी बढ़ती जा रही है…उनके लिए सात दशक पुराना घंटाघर एक लैंडमार्क था…कई पीढ़ियां उसे देखते हुए जवान हो गईं…ऐसे ही एक शख्स हैं अभिनेता ट़ॉम आल्टर...टॉम की मसूरी से बड़ी खास यादें जुड़ी हैं…उनका बचपन इसी शहर में बीता…टॉम कहीं भी रहे, एक घर मसूरी में भी बनाए रखा…बिना घंटाघर वो मसूरी की कल्पना भी नहीं कर सकते…आखिर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने गांधीगिरी का सहारा लिया…टॉम बृहस्पतिवार को उसी जगह बारह घंटे के मौन-व्रत पर बैठ गए जहां घंटाघर को गिराया गया था…बस एक पर्ची पर लिख कर लोगों को दिखाया-
ये मेरी तरफ से एक श्रद्धांजलि है…मेरी तरफ़ से मातम है…घंटाघर की याद में…
टॉम के मुताबिक उन्होंने ये कदम मसूरी की गौरवशाली धरोहरों के संरक्षण के साथ पर्यावरण को बचाने के लिए सबका ध्यान खींचने के लिए भी उठाया है… टॉम के साथ मसूरी के लोगों का दर्द भी यही है कि अगर नया घंटाघर बना भी दिया गया तो भी मसूरी की विरासत के नुकसान की भरपाई कभी नहीं हो पाएगी…उस घंटाघर को कहां से लाओगे जिसके बिना चित्रकार मसूरी की कैनवास तक पर कल्पना नहीं करते थे…ज़मींदोज़ हुए घंटाघर को पुरनम आंखों से मेरी भी श्रद्धांजलि…और आप क्या कहते हैं…
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poorani imaaratein rashtr ki dharohaar hain…fir chahe wo kuch bhi kyon na…kuch na kuch kahani to hoti hi sabke saath judi hui…in sampadaaon ka sanrakshan aavshyak hai…
acchi lagi ye post..
धरोहर कोई भी हो…उसका जहाँ तक हो सके…संरक्षण किया जाना चाहिए…
ओल्ड इज गोल्ड…….
व्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक
मेरी भी श्रद्धांजलि..
जय हिंद…
शायद सभी घंटाघरों की यही नियति होने वाली है। समय के साथ सब धूलधूसरित होंगे 🙁
बहुत ही दुखद है यह..सरकार पहले ही क्यूँ नहीं चेतती…पुराने भवनों को इस स्थिति तक पहुँचने ही क्यूँ देती है कि उनके गिरने की संभावना बने.
प्राचीन भवन कई दृष्टि से बहुत उपयोगी होते हैं..पूरा एक इतिहास होता है उनका…ऐसे धरोहरों की साज-संभाल की जानी चाहिए ना कि उन्हें ध्वस्त करना चाहिए.
Sir, jab naya ghantaghar banega tab uspe kisi bahurashtriya company kaa banner bhi lagega.
Sab business hai, bus paise kamao kaise bhi
पता नहीं क्यों – सवेदनशील व्यक्तियों को ही पुराणी वस्तुयों, पुराने प्रम्परायों और पुराने धरोहर से प्रेम होता है ?
मुझे भी है.
खुशदीपजी, घण्टाघर बहुत बड़ी और ऐतिहासिक इमारत नहीं होती है इस कारण मैंने ऐसा लिखा था कि आवश्यकता होने पर पुन:निर्माण हो सकता है। राष्ट्रीय धरोहर के साथ तो कैसे भी खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। आप अन्यथा नहीं लें।
जहा तक मेरी जानकारी है टॉम विदेशी मूल के नहीं है अंग्लो इन्डियन है | खुशदीप जी आप कि बात तो सही है कि ऐसी धरोहर को बचाना चाहिए था पर अब विरोध करने का कोई फायदा नहीं है ये काम तो उसे गिराए जाने के पहले करना चाहिए था अब क्या फायदा |
टॉम आल्टर जैसे लोग भी हमारी धरोहर हैं उनको हार्दिक शुभकामनायें ! और उनकी चर्चा के लिए आपको धन्यवाद खुशदीप भाई !
मेरी भी श्रद्धाँजली है। हम से तो अच्छे विदेशी मूल के लोग हुये जिन्हों ने कम से कम अपनी आवाज़ उठाई और अपनी नाराज़गी जाहिर की। अगर पुराने गिरायें न और नये बनायें न तो जेब मे माल कहाँ से आयेगा अगला चुनाव लडना है। कुछ काम तो करना ही पडेगा और वो भी ऐसा जो सदिओं याद रहे सदकें गलियां तो रोज़ टूट जाते हैं किसे याद्रहता है किसने कब बनाया। आशीर्वाद।
अजित जी,
क्या किसी शहर की पहचान जैसे कि लालकिला या कुतुब मीनार को गिरा कर उसे नया बनाने को जायज़ ठहराया जा सकता है…या फिर उसे ही प्रोटेक्टेड मोन्यूमेंट का दर्जा देकर सहेज कर रखना ज़्यादा अच्छा है…
जय हिंद…
पुरानी को गिराकर नयी बनाना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है, बस विषय है तो नीयत का। क्या नीयत में धरोहर संरक्षण हैं या फिर व्यापार?
धरोहर तो धरोहर होती है उसे बचाया जाना चाहिये…..सोचा था कभी जाने का…पर जा नही पाई…जब भी मौका मिलेगा जाउंगी..उस धरोहर को श्रद्धांजली देने जिसने खुशदीप के साथ मेरी आँखों को भी नम कर दिया है …
मेरी भी श्रद्धांजलि..यही कह सकते हैं.
भैय्या खुशदीप जी
अंग्रेजों के ज़माने के घंटाघरों की अब बोलती बंद हो गई है ….. हा हा हा
ये नगरपालिका वाले दिल्ली की तख्त पर बैठ जाएं तो लालकिला को भी गिरा देंगे..