सरकार का लोकपाल बिल साधारण बहुमत से लोकसभा में पास हो गया…लेकिन लोकपाल को राहुल गांधी की इच्छा के अनुरूप संवैधानिक दर्जा देने की कोशिश में सरकार को सदन में मुंह की खानी पड़ी…सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने मज़बूत लोकपाल के लिए संवैधानिक दर्जे का रास्ता साफ़ न होने का ठीकरा बीजेपी पर फोड़ा…प्रणब ने संविधान संशोधन विधेयक गिरने को लोकतंत्र के लिए दुखद दिन बताया…प्रणब के मुताबिक उनके पास संविधान संशोधन विधेयक को पास कराने के लिए ज़रूरी संख्याबल (273) सदन में मौजूद नहीं था…
ये तो रहा लोकसभा में मंगलवार के पूरे दिन की कवायद का निचोड़…बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने संवैधानिक दर्जे में हार के बाद नैतिक तौर पर सरकार से इस्तीफ़ा देने की मांग की है…यशवंत सिन्हा के मुताबिक सरकार के पास सामान्य बहुमत (273) भी नहीं है…उधर, कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला का कहना है कि सदन में बहुमत हमारा ही है, हम दो तिहाई बहुमत नहीं दिखा सके…राजीव शुक्ला के मुताबिक बड़ी बात लोकपाल बिल पास होना है…
अब ज़रा बीजेपी नेता एस एस अहलुवालिया की बात मान ली जाए तो ये सरकार गिरने जा रही है…इसके लिए उन्होंने पिछले 42 साल के लोकपाल बिल के इतिहास को आधार बना कर आंकड़े पेश किए…इनका कहना है कि जब भी लोकपाल बिल संसद में लाया गया, सरकार को जाना पड़ा…कभी लोकसभा भंग हो गई, कभी सरकार चुनाव में हार गई…ऐसा 1968 से ही होता आ रहा है..9 मई 1968 को लोकपाल-लोकायु्क्त बिल पहली बार लोकसभा में पेश किया गया…इसे संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा गया…20 अगस्त 1969 को लोकसभा में ये बिल पास भी हो गया…लेकिन ये बिल राज्यसभा से पास होता, इससे पहले ही चौथी लोकसभा भंग हो गई और ये बिल कालातीत हो गया…
इसी तरह 11 अगस्त 1971 को लोकपाल-लोकायुक्त बिल पेश किया गया…लेकिन इसे न तो सेलेक्शन कमेटी के पास भेजा गया और न ही इसे किसी सदन से पास किया…पांचवीं लोकसभा भंग होने से ये बिल भी काल के गर्त में चला गया…
28 जुलाई 1977 को फिर लोकपाल बिल लाया गया…इसे दोनों सदनों की साझा सेलेक्शन कमेटी के पास भेजा गया..इससे पहले की सेलेक्शन कमेटी की सिफारिशों पर विचार किया जाता, छठी लोकसभा भी भंग हो गई…ये बिल भी अपनी मौत मर गया…
28 अगस्त 1985 को फिर लोकपाल बिल पेश किया गया…संसद की साझा सेलेक्शन कमेटी को इसे भेजा गया…लेकिन सरकार ने फिर इसे खुद ही वापस ले लिया..सरकार ने वायदा किया कि जनशिकायतों के निवारण के लिए जल्दी ही मज़बूत बिल लाएगी…लेकिन फिर इस पर कुछ नहीं हुआ…
29 दिसंबर 1989 को लोकसभा में लोकपाल बिल पेश किया गया…लेकिन 13 मार्च 1991 को लोकसभा भंग होने की वजह से ये बिल भी खत्म हो गया…
13 मार्च 1996 को संयुक्त मोर्चा सरकार ने लोकपाल बिल पेश किया, इसे गृह मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति के पास भेजा गया…समिति ने 9 मई 1997 को कई संशोधनों के साथ रिपोर्ट भेजी…सरकार अपना रुख रख पाती इसे पहले ही ग्यारहवीं लोकसभा भंग हो गई…
14 अगस्त 2001 को एनडीए सरकार ने भी लोकसभा में लोकपाल बिल पेश किया…इसे संसद की स्थाई समिति के पास भेजा गया…लेकिन मई 2004 में एनडीए के सत्ता से बाहर होने की वजह से ये बिल भी अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाया…
अब 15वीं लोकसभा की खुदा खैर करे….