केजरीवाल एक बार ‘OMG’ ज़रूर देखें…खुशदीप

आम आदमी पार्टी देश की राजनीति में आई नहीं कूदी है…पार्टी के
मुताबिक परंपरागत सियासी दलों ने देश की राजनीति में इतने गढ्डे कर दिए हैं कि उसे
इसमें कूदना पड़ा…चलिए अब कोयले की कोठरी में कूद ही गए हैं तो कालिख से बैर
कैसा…

अरविंद केजरीवाल की कामयाबी एंटी पॉलिटिक्स की देन है…केजरीवाल
राजनीति के गुर सीख गए हैं, इसका संकेत चुनाव प्रचार के दौरान उनके रोड शो पर रवीशकुमार की रिपोर्ट से मिला था… इस रोड शो के दौरान पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता
एक जीप पर गुलाब की पंखुरियों के टोकरे साथ लेकर चल रहे थे…यही कार्यकर्ता रोड
शो के दौरान अरविंद केजरीवाल के काफिले पर पंखुरियों की बरसात कर रहे थे…ये
रोड शो उसी लक्ष्मीनगर क्षेत्र में हुआ था, जहां आप के उम्मीदवार विनोद कुमार
बिन्नी ने कांग्रेस के कालजयी माने वाले नेता डॉ अशोक कुमार वालिया को धूल चटा
दी…अब ये बात अलग है कि इन्हीं बिन्नी महाराज ने मंत्री ना बनाए जाने पर सबसे
पहले बग़ावती तेवर दिखाए…देखना है कि बिन्नी महाराज को मना लिया जाता है या
बुधवार को अपने वादे के मुताबिक वो कोई बड़ा धमाका करते हैं…

केजरीवाल की सफलता के ग्राफ पर गौर किया जाए तो कुछ बातों में वो
खांटी नेता के तेवर लगातार दिखा रहे  हैं…जैसे
कि वो कहते रहे हैं कि ये मेरी लड़ाई नहीं जनता की लड़ाई है…ये मेरी जीत नहीं
जनता की जीत है…ठीक वैसे ही जैसे कि नरेंद्र मोदी खुद पर हुए हर राजनीतिक प्रहार
को गुजरात के छह करोड़ लोगों की अस्मिता से जोड़ते रहे हैं…या कांग्रेस जिस तरह अपने
हाथ को हमेशा आम आदमी के साथ बताती रही है….अरविंद केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को
अन्ना हज़ारे (जिन्हें वो पितातुल्य बताते हैं) के विरोध को दरकिनार कर पार्टी
बनाने का ऐलान किया…लगे हाथ ये ऐलान भी कर दिया कि जनता ने उन्हें पार्टी बनाने के
लिए कहा है…इसी तरह केजरीवाल चुनाव के बाद बीजेपी या कांग्रेस से किसी तरह का
गठजोड़ ना करने की कसमें खाते रहे थे…केजरीवाल ने नतीजे आने के बाद सरकार बनाने
के लिए पलटी मारी तो ठीकरा फिर रायशुमारी का नाम देकर जनता के सिर फोड़ दिया…

जिस वक्त ये लेख लिख रहा हूं उस वक्त तक कांग्रेस पसोपेश में है कि आम
आदमी पार्टी को सरकार बनाने के लिए बाहर से समर्थन देने का फैसला सही है या
नहीं…कांग्रेस समर्थन देती है तो आज नहीं तो कल इसे वापस लेगी ही, ये शाश्वत
सत्य है…ऐसे में बड़ा सवाल ये कि जनता की इच्छा का नाम लेकर केजरीवाल अपने
उसूलों से क्यों समझौता कर
रहे हैं…

ये तो रही आज की बात…लेकिन मैं आपको थोड़ा अतीत की ओर ले चलता
हूं…उस वक्त ना तो केजरीवाल राजनीति से जुड़े थे और ना ही इंडिया अगेन्स्ट
करप्शन अस्तित्व में आया था…उस वक्त केजरीवाल की सार्वजनिक पहचान सिर्फ सूचना के
अधिकार (आरटीआई) की लड़ाई लड़ने वाले संगठन के अगुआ की थी…उस वक्त भी केजरीवाल
ने एक ऐसा कदम उठाया था जिस पर प्रख्यात पत्रकार दिवंगत प्रभाष जोशी ने नाराज़गी
दिखाते हुए उन्हें सार्वजनिक तौर पर टोका था…इस प्रकरण का ज़िक्र मैंने 11अप्रैल 2011 को अपनी पोस्ट पर इन शब्दों के साथ किया था…

ये सवाल अरविंद केजरीवाल को लेकर है…मैं आरटीआई
कानून के वजूद में आने के लिए सबसे ज़्यादा योगदान अरविंद केजरीवाल का ही मानता
हूं…उनका बहुत सम्मान करता हूं…लेकिन अतीत में उनका एक कदम मुझे आज भी कचोटता
है…
2009 में अरविंद केजरीवाल ने आरटीआई में विशिष्ट योगदान देने वालों
को सम्मान देने के लिए कार्यक्रम का आयोजन किया था…लेकिन सम्मान जिन्हें दिया
जाना था
, उन नामों को
छांटने के लिए जो नौ सदस्यीय कमेटी या जूरी बनाई गई थी
, उसमें एक नाम
ऐसे अखबार के संपादक का था जिस अखबार पर चुनाव में पेड न्यूज के नाम पर दोनों
हाथों से धन बटोरने का आरोप लगा था…पेड न्यूज यानि भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता
, बड़े बड़े से
बड़ा अपराधी भी चाहे तो पैसा देकर अपनी तारीफ में अखबार में खबर छपवा ले…दिवंगत
प्रभाष जोशी जी ने उस वक्त अरविंद केजरीवाल को आगाह भी किया था कि ऐसे लोगों को
कमेटी में न रखें…लोगों में क्या संदेश जाएगा कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले
ही तय करेंगे कि आरटीआई अवार्ड किसे दिया जाए…उस वक्त केजरीवाल जी ने सफाई दी थी
कि दबाव की वजह से ये करना पड़ा…ऐसे में क्या गारंटी कि भविष्य में फिर दबाव में
ऐसा ही कोई फैसला न लेना पड़ जाए…

उस वक्त की मेरी लिखी बात आज एक बार फिर क्या आपको प्रासंगिक नहीं लग
रही…आज मैं अरविंद केजरीवाल को बिन मांगे एक और सलाह देना चाहता हूं…वो एक बार
परेश रावल के नाटक पर आधारित फिल्म ओ माई गॉड को ज़रूर देखें…







वैसे तो वो फिल्म
धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों के खिलाफ थी…जिनके खिलाफ परेश रावल लड़ाई लड़ते
हैं….लेकिन आखिर में ऐसी परिस्थिति आती हैं कि परेश रावल को ही भगवान बता कर
उनके बुत बनाए जाने लगते हैं…ये कह कर कि मार्केट में बड़े दिनो बाद कोई नया
भगवान आया है…लेकिन परेश रावल को ये पता चलता है तो वो खुद ही जनता के बीच आकर
अपने बुत तोड़ देते हैं…ये कहते हुए कि धर्म के नाम पर लोगों को झांसा देने वाले
जिन स्वयंभू ठेकेदारों के खिलाफ मैं लड़ता रहा, आज मुझे भी उसी बुराई को बढ़ावा
देने का ज़रिया बनाया जा रहा है…अरविंद जी, मेरे कहने पर कृपया इस फिल्म को एक बार ज़रूर देखिए… 

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anshumala
11 years ago

अरविंद कुछ भी कह ले किन्तु व्यक्तिवादी और नेतावादी जनता नहीं सुधरने वाली है , वोट प्रतिनिधियो को नहीं उनके नाम पर उनकी पार्टी को मिले है , उन्हें वोट देने वाली जनता भी जानती है कि उनके वादो में से शायद ही सरे पुरे हो , किन्तु जनता को उस नेता पर भरोषा है जो वादो को पूरा न करे किन्तु उसे पूरा करने के लिए कदम तो उठाएगा ही बाकियो कि तरह नहीं की जनता और वादो को भूल ही जाये , जनता के लिए उतना ही बहुत है , जो पारम्परिक नेताओ से उब चुकी है । जहा तक पुरस्कारो कि बात है तो मुझे याद आ रहा है कि वो उन्होंने अकेले नहीं दिया था उनके साथ एक टीवी न्यूज चैनल भी थी दोनों ने मिल कर पुरुस्कार दिए थे और पैनल का गठन भी ।

कालीपद "प्रसाद"

बढ़िया लेख ! केजरीवाल को सावधान रहना चाहिए !
नई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
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Satish Saxena
11 years ago

एक बेहतरीन लेख , आभार खुशदीप भाई !!

अजित गुप्ता का कोना

ये तो मायावती की तरह हैं, केवल अपने ही बुत लगाती हैं। तभी तो कहते हैं कि सभी बेईमान है केवल मैं ही ईमानदार हूं।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

राजनीति‍ क्लि‍ष्‍टतम पाठ है

देवदत्त प्रसून

मित्र! आज 'क्रिसमस-दिवस' पर शुभ कामनाएं,! सब को सेंटा क्लाज सी उदारता दे और ईसा मसीह सी 'प्रेम-शक्ति'!
ज़माना हर नई सुबह का इस्तकबाल करता है !

विष्णु बैरागी

आप से असहमत होने की गुंजाइश ही नहीं है।
दो बातें साफ़ हैं। पहली – कांग्रेस अपना समर्थन वापस लेगी ही लेगी। दूसरी बात – शुध्दता संग्रहणीय और संकुचित करती है, विस्तार के लिए मिलावट जरूरी है।
"आप" को इन दोनों के बीच से निकलना है। यह आसान नहीं है। असम्भवप्रायः है जबकि उनका सफल होना जरूरी हैं

प्रवीण पाण्डेय

सच कह रहे हैं, अन्त कहीं OMG की तरह का ही न हो जाये।

Gyan Darpan
11 years ago

सही सलाह !
पर मुझे नहीं लगता कि- फिल्म में परेश द्वारा तोड़े अपने बुत की तरह केजरीवाल भी कुछ करेंगे ! हाँ जनता को दिखाने के लिए कुछ करना होगा तो नौटंकी जरुर कर लेंगे !

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