कहां ले जाऊंगा मैं इतना प्यार…खुशदीप

क्या कहूं…क्या न कहूं…आप सबके प्यार ने निशब्द कर दिया है…इतनी बधाई मेरे सारे जन्मदिनों को मिलाकर नहीं मिली जितनी अकेले इस 18 जुलाई पर मिल गई…

कल रात 18 जुलाई होने में दो मिनट ही थे कि मोबाइल की रिंग हुई दूसरी तरफ़ पाबला जी की कड़क लेकिन बड़े भाई के प्यार वाली आवाज़ थी…पता नहीं कहां से पता लगा लेते हैं सब ब्लॉगर्स के जन्मदिन, सालगिरह का…ब्लॉग पर तो पोस्ट लगाते ही हैं, फोन पर बधाई देना भी नही भूलते…सच में पाबला जी इस गाने को पूरी तरह चरित्रार्थ कर रहे हैं- अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल ज़माने के लिए...यहां ये बता चलूं कि पाबला जी अभी महाराष्ट्र के टूर पर थे…लेकिन इस टूर के आखिरी चरण में एक बड़े हादसे में बाल-बाल बचे…पाबला जी की वैन इस हादसे में पूरी तरह जल कर राख हो गई…शुक्र है ऊपर वाले का पाबला जी और परिवार के किसी सदस्य को कोई गंभीर चोट नहीं आई…लेकिन इस हादसे के बावजूद पाबला जी की ज़िंदादिली पर कोई असर नहीं पड़ा…इसका सबूत है कल पूरी गर्मजोशी से मुझे जन्मदिन की बधाई देना…

पाबला जी की पोस्ट पर गुरुदेव समीर लाल जी की बधाई सबसे पहले आई…सब ब्लॉगर्स के लिए खुशखबरी है कि दिसंबर में समीर जी का भारत आना फिक्स हो गया है…समीर जी ने ई-मेल भेज कर इस बात की पुष्टि की है…

उसके बाद फोन, एसएमएस, ई-मेल और कमेंट के ज़रिेए बधाई आने का सिलसिला जो शुरू हुआ, अभी तक बदस्तूर जारी है…पाबला जी के फोन के कुछ ही सेंकड बाद पैम्पर्ड बॉय महफूज़ का लखनऊ से फोन आया…मुझे ताज़्जुब हुआ, क्योंकि तब तक पाबला जी की पोस्ट ब्लॉग पर नहीं आई थी…मैंने महफूज़ से पूछा कि कहां से पता चल गया…जवाब मिला बड़े भाई का बर्थडे मुझे मालूम नहीं होगा तो किसे मालूम होगा…जिस वक्त महफूज़ फोन कर रहा था, उस वक्त भी फोन पर दूसरी कॉल आ रही थीं…मैंने महफूज़ से अगले दिन बात का वादा कर विदा ली…फिर ललित शर्मा जी, शिवम मिश्रा, अजय कुमार झा, दीपक मशाल, राजीव तनेजा भाई,  अदा जी, डॉ टी एस दराल का एसएमएस (बाद में सेल देखा, उनकी मिस कॉल भी आई हुई थी), शाहनवाज़ सिद्दीकी, इरफ़ान भाई (कार्टूनिस्ट), बोले तो बिंदास रोहित, अरुण भंडारी, अतुल सिन्हा जी, रोहित सरदाना ने मोबाइल के ज़रिए शुभकामनाएं भेजी…प्रवीण त्रिवेदी ने मेल और अविनाश वाचस्पति जी ने चैट के ज़रिए बधाई की चाट खिलाई…

अब बात पाबला जी की पोस्ट की…समीर जी के बाद क्रम के हिसाब से एम वर्मा जी, मो सम कौन, रतन सिंह शेखावत जी, अलबेला खत्री जी, गिरिजेश राव जी, अजित गुप्ता जी, तारकेश्वर गिरी जी, संगीता पुरी जी, ललित शर्मा भाई, महेंद्र मिश्र जी, प्रकाश गोविंद जी, शिवम मिश्रा, संगीता स्वरूप जी, भाई गिरीश बिल्लौरे, वंदना जी, सोनल रस्तोगी, शिखा वार्ष्णेय, अदा जी, राज भाटिया जी, गगन शर्मा जी, ऑनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी वाले जय कुमार झा जी, अजय कुमार झा, अरविंद मिश्रा जी, डॉ रुपचंद्र शास्त्री जी मयंक और भाई धीरू सिंह (बाद में उनकी मिसकॉल भी देखी) की शुभकामनाओं के फूलों का गुलदस्ता मिला…

मेरी अपनी पोस्ट पर भी बोले तो बिंदास रोहित, राज भाटिया जी, समीर जी, डॉ टी एस दराल (कमेंट करने तक डॉ साहब पसोपेश में थे कि आखिर जन्मदिन किसका है), ललित शर्मा भाई, संगीता पुरी जी, सुरेश चिपलूनकर जी, शिवम मिश्रा, अर्चना जी, अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी, अरगनिकभाग्योदय, तारकेश्वर गिरी जी, वंदना जी, राजभाषा हिंदी, दीपक मशाल, धीरू भाई और सतीश सक्सेना भाई जी ने स्नेह की खुशबू के गुलाब भेजे…

हां, एक बात और बता चलूं, शाम को अदा जी का फोन आया तो उनसे मैंने अपना बर्थडे का गिफ्ट मांग लिया…वो गिफ्ट था कि अदा जी अपनी पोस्ट पर कमेंट बॉक्स को जल्दी दोबारा शुरू करें…

इसके अलावा भी मैं जानता हूं कि डॉ अमर कुमार जी, दिनेशराय द्विवेदी सर, ताऊ रामपुरिया जी, अनिल पुसदकर भाई, निर्मला कपिला जी, जी के अवधिया जी, अनूप शुक्ल जी, रवींद्र प्रभात जी, शरद कोकास जी, अजित वडनेरकर जी, योगेंद्र मुदगल जी, वाणी गीत जी, कनिष्क कश्यप, पारुल, हरकीरत हीर जी, रश्मि रवीजा बहन, शोभना, सागर, फौजिया, ज़ाकिर अली रजनीश भाई, शेफ़ाली बहना, कविता वाचक्नवी जी, प्रवीण शाह भाई, राजकुमार सोनी, सूर्यकांत गुप्ता, राजकुमार ग्वालानी भाई, एच पी शर्मा जी, सुमन जी, कड़वा सच वाले उदय जी, पंडित वत्स जी. देव बाबा, मिथिलेश दुबे, राम त्यागी और भी सब मेरे सम्मानित बड़ों और छोटे अज़ीज़ों का आशीर्वाद और प्यार मेरे साथ है…किसी वजह से वो ये पोस्ट नहीं देख पाए होंगे लेकिन उनके दिल की बात मेरे तक पहुंच गई है… आज स्लॉग ओवर में आपको मक्खन का नहीं अपने खुद का बचपन का मज़ेदार किस्सा सुनाता हूं…

स्लॉग ओवर

तब मैं हूंगा कोई सात-आठ साल का…मेरठ के बेगम ब्रिज की न्यू मॉर्केट कॉलोनी में हमारा घर था…दिमाग बचपन से ही खुराफाती था…इसलिए फर्स्ट अप्रैल को मेरी सोच के घोड़े दौड़ने लगे…कॉलोनी में जिस घर में भी कोई बच्चा था या बच्चे थे, सभी के घर गया और भोली सी सूरत बना कर सारी ऑन्टी जी से कह आया मेरा बर्थडे है, इसलिए सब बच्चों को भेज दीजिएगा…इतनी सावधानी बरती कि अपनी मम्मी को अपने इस कारनामे की हवा तक नहीं लगने दी…अब फर्स्ट अप्रैल आ गई तो अपनी हवा शंट होने लगी…एक दोस्त बड़ा करू था…वो सुबह ही देखने आ गया कि बर्थडे की क्या तैयारी हो रही है…मैंने उसे टरकाया कि खाने-पीने का सामान शाम को सब रेस्तरां से बना-बनाया आएगा…अब वो टाइम भी आ गया, शाम पांच बजे…बच्चे एक एक कर गिफ्ट लेकर घर पर आने लगे…ये देखकर मैं खुद तो छत पर जाकर छुप गया…अब वो सारे बच्चे कहें कि आज खोशी (मेरा निक नेम) का बर्थडे है…मम्मी कहें, ये 18 जुलाई इतनी जल्दी कैसे आ गई…उन्होंने कहा कि नहीं आंटी वो हम सब को खुद घर पर कह कर आया है…तब तक कुछ बच्चे अपनी मम्मियों को भी बुला लाए थे…किसी तरह मुझे छत से ढूंढ कर निकाला गया…अब वो सारे मुझे गिफ्ट देने पर आमादा…मम्मी ने मना किया कि जब बर्थडे ही नहीं तो गिफ्ट कैसी…फिर मम्मी को वाकई सारा सामान रेडीमेड बाज़ार से मंगाना पड़ा…गिफ्ट तो एक नहीं लिया सब बच्चों को मम्मी को पार्टी और करानी पड़ गई…उसके बाद सब बच्चों ने हैप्पी बर्थडे कहने की जगह मेरे घर के बाहर खड़े होकर एक सुर में गाया- अप्रैल फूल बनाया, तुमको गुस्सा आया, हमारा क्या कसूर, ज़माने का कसूर…वो झूठ का जन्मदिन आज भी मुझे साफ़-साफ़ याद है…