एक सवाल का जवाब दीजिए…खुशदीप

वाकई माहौल बड़ा गरम है…कुछ भी कहना ख़तरे से खाली नहीं है…कौन बुरा मान जाए…कौन लाठी बल्लम निकाल ले…कुछ पता नहीं …जो नारी ममता की बरसात करती है…प्रेम और वात्सल्य का पर्याय मानी जाती है…पुरुषों के सब मुद्दों को सुलझाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलती है…लेकिन ब्लॉगवुड में उसी नारी को मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है…आप से बस एक सवाल के जवाब की उम्मीद करता हूं…

मेरा सवाल

सतयुग हो या कलयुग अग्निपरीक्षा हमेशा सीता को ही क्यों देनी पड़ती है ?

स्लॉग स्टोरी

एक और किस्सा आपको सुनाने का मन कर रहा है…शायद ब्लॉग पर ही कहीं पढ़ा है…याद नहीं आ रहा कहां…अगर इसे पढ़ने के बाद आपको याद आ जाए तो मुझे बता ज़रूर दीजिएगा…अफगानिस्तान में तालिबान की वहशी हुकूमत में महिलाओं को घरों में कैद करके रख दिया गया था…स्कूल जाना बंद…खेलों में हिस्सा लेना बंद, शरीर को पूरी तरह ढक कर रखना, मनोरंजन के सभी साधनों से दूर रहना…बहुत ज़रूरी हो तो घर के किसी पुरुष के साथ ही बाहर निकलने की इजाज़त…और भी न जाने क्या-क्या…

तालिबान का शासन अमेरिका ने खत्म करा दिया…फिर देखा गया कि पुरुषों के हमेशा पीछे चलने वाली महिलाएं अब पुरुषों के आगे चल रही थीं…सबने सोचा अफगानिस्तान बदल गया…अब इसकी हक़ीकत भी जान लीजिए…जगह जगह बिछी बारूदी सुरंगों का पता लगाने के लिए पुरुषों के पास और कोई ज़रिया नहीं था, इसीलिए महिलाओं को आगे रखा जा रहा था…

मतलब ये कि दौर कोई भी हो सोच नहीं बदलेगी…

स्लॉग गीत

चलिए छोड़िए ये सब टंटे, महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पास हो गया है, पहली बाधा तो दूर हुई, बेशक अभी और भी बहुत रुकावटें बाकी है…लेकिन अभी तो सेलिब्रेट करने का वक्त है…मेरी तरफ से पूरी मातृशक्ति के लिए ये गीत…

कांटों से खींच के ये आंचल

Khushdeep Sehgal
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