इस मुल्क की तो ले ली भईया…खुशदीप

जिसे देखो आता जाए, खाता जाए, पीता जाए,

क्या कहूं अपना हाल, ए दिल-ए-बेकरार,

सोचा है के तुमने क्या कभी,

सोचा है कभी क्या है सही,

सोचा नहीं तो अब सोचो ज़रा…
अरविंद गौड़ के निर्देशन में अस्मिता थिएटर ग्रुप दिल्ली और एनसीआर में जगह-जगह भ्रष्टाचार पर नुक्कड़ नाटक कर रहा है…मेरा मानना है कि देश के हर जागरूक नागरिक को ये नुक्कड़ नाटक ज़रूर देखना चाहिए…इसमें युवाओं के जोश को देखकर आपको भरोसा जगेगा कि अब भी देश में सब कुछ खत्म नहीं हुआ है…देश को लूट कर खाने वाले नेताओं को बस सबक सिखाने की ज़रूरत है…शिल्पी मारवाह समेत नुक्कड़ नाटक के एक-एक पात्र के जीवंत अभिनय ने इसे बेमिसाल बना दिया है…दिल्ली से बाहर रहने वालों की सुविधा के लिए लिंक दे रहा हूं, इस आग्रह के साथ, इसे ध्यान से और पूरा ज़रूर देंखें…अगर नेट की स्पीड तंग करे तो एक बार इसे पूरा डाउनलोड होने के बाद देखें…INDIA FOR CORRUPTION…KHUSHDEEP
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
वाणी गीत
13 years ago

युवाओं का यह जोश अच्छा लग रहा है …कल समाचारों में भी देखा !

rashmi ravija
13 years ago

एक समय नुक्कड़ नाटकों को लेकर युवाओं में बहुत जोश होता है…दुनिया बदल डालने का मंसूबा भी…पर फिर वही…दाल-रोटी के चक्कर में सारा जोश ठंढा पड़ जाता है.

पर जितना भी संदेश वे दे पाएं…लोगो तक पहुंचे यही कामना है.

Khushdeep Sehgal
13 years ago

अजित जी,
आप सही कह रही हैं, अन्ना हज़ारे ने जब अप्रैल में पहली बार अनशन किया था तब भी जागरूकता के लिए इस नुक्कड़ नाटक का ज़िक्र किया था…लेकिन तब इस नाटक की बहुत छोटी सी क्लिप लगाई थी, इस बार पूरी उपलब्ध थी तो वो पोस्ट पर लगा दी है…

जय हिंद…

अजित गुप्ता का कोना

इन नुक्‍कड़ नाटकों की जानकारी तो आपने पूर्व में भी दी थी।

राज भाटिय़ा

मै इसे नाटक नही एक आवाज मानता हुं एक सुंदर संदेश इस देश के सोये हुये लोगो को जगाने के लिये, सच कहा **अभी नही तो कभी नही*** जागो जागो…

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

खुशदीप जी, सोते का नाटक करने वाले कहीं जागते हैं..

Khushdeep Sehgal
13 years ago

दराल सर, ये मेरे शब्द नहीं है, बल्कि इसी नुक्कड़ नाटक में इस्तेमाल किया गया जुमला है…और देश की हालत जैसी हो चली है, उस पर इससे सटीक और कोई टाइटल नहीं हो सकता…मेरे लिए इसका मतलब मुल्क की जान से है…

जय हिंद…

डॉ टी एस दराल

खुशदीप भाई , आप भी आमिर खान की राह पर चल पड़े !
पोस्ट का शीर्षक डेल्ही बेली से प्रेरित लगता है । हम तो उसका बहिष्कार कर चुके हैं ।

प्रवीण पाण्डेय

वे कहते हैं, हाट लगी है,
सच तो यह है, बाट लगी है।

आशुतोष की कलम

सार्थक और प्रतिभा से न्याय करने का सर्वोत्तम कार्य

नीरज गोस्वामी

हम तो घनघोर नाटक प्रेमी हैं…अपने ज़माने में खूब नुक्कड़ नाटक किये भी हैं…इसे जरूर देखेंगे…

नीरज

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

दिनेशराय द्विवेदी

देखते हैं!

anshumala
13 years ago

मुंबई के लिए तो ये नया नहीं है कई बार आस पास होते देखा है और ये भी देखा है की मजमा लगा कर देखने वालो पर उसका कोई असर नहीं होता है उनके लिए तो ये ढंग का मनोरंजन भी नहीं है | कई बार नाटक में कही जा रही बाते ही लोगों को समझ नहीं आती है |

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x