अमर ब्लॉगर डॉक्टर अमर कुमार के बिना 5 साल…खुशदीप



आज जिस तरह का
दौर है, उसमें कोई दूसरे की सुनने को तैयार नहीं है…राजनीति, धर्म, जाति से बंधी
अपनी विचारधाराएं हैं, जिनमें आलोचना सुनने का किसी के पास संयम नहीं है…सब अपने
मठाधीशों के पीछे हैं…मठाधीशों के अपने हित हैं, स्वार्थ है…ऐसे में इनसानियत,
मेल-मोहब्बत की बातों के लिए किसी के पास फुर्सत ही कहां हैं…करीब 6 साल पहले
मैंने ‘न हिंदू, न मुसलमान…वो बस इनसान’ नाम से एक  कहानी लिखी थी…उसी कहानी पर डॉक्टर अमर कुमार
की ये टिप्पणी मिली थी…डॉ अमर कुमार कौन
? 2011 से पहले के सारे हिंदी ब्लॉगर उन्हें जानते हैं…आज डॉक्टर साहब की 5वीं
पुण्यतिथि है…उनके बारे में और जानने से पहले उनकी टिप्पणी पढ़ लीजिए…


यदि यह कहानी ही
है
,
तो यह एक ठँडे मन और
शान्त चरित्र की कहानी है
,
किसी भी तरह का
उन्माद विवेक के सारे रास्तों पर नाकेबन्दी कर देता है ।
जब विवेकहीन या
कहिये कि कुटिल पथप्रदर्शक जान बूझ कर अनपढ़ बना कर रखे गये जनसमूह को यह नारा दें
कि
,
तर्क मत करो.. अपने
समर्पण को सिद्ध करो
,
तो कोई क्या
उम्मीद करे
?
खुशदीप, यहाँ अनपढ़ का अर्थ साक्षरता से कुछ अलग भी है !
लगता है, हम सब एक बड़े षड़यन्त्र के मध्य जी रहे हैं,
अपने स्वार्थों और
अहमन्यता के चलते बुद्धिजीवी वर्ग तटस्थता में ही अपना परिष्कार देखता है । फिर भी
तुम बस लगे रहो
,
लगे रहो खुशदीप
भाई ! तुम्हारे सँग सरकिट की भूमिका मैं निभा लूँगा ।

डॉक्टर साहब की
ये टिप्पणी मुझे 11 अप्रैल 2010 को अपनी इस पोस्ट पर मिली थी…डॉक्टर साहब का एक-एक
शब्द मायने रखता था…जीवन का सार लिए होता था…जिस किसी ब्लॉगर को भी पोस्ट पर
डॉक्टर साहब की ट्रेडमार्क इटैलिक टिप्पणी मिल जाती थी वो धन्य हो जाता था…

डॉ. अमर कुमार को
हमसे बिछुड़े आज पूरे 5 साल हो गए…डॉक्टर साहब ने 23 अगस्त 2011 को दुनिया को
अलविदा कहा…ये वो वक्त था जब हिंदी ब्लॉगिंग पूरे उफ़ान पर थी…फेसबुक तब आ तो
गया था लेकिन ऐसा दैत्याकार नहीं था, जैसा कि अब है. …जिसकी डॉयनासोर रूपी छाया
में ब्लॉगिंग भी दब कर रह गई…

ये मेरा
दुर्भाग्य था कि दीवाली वाले दिन 5 नवंबर 2010 को मेरे पिता का साथ छूटा था…और
साढ़े नौ महीने बाद डॉ अमर कुमार पंचतत्व में विलीन हो गए…मैं जीवन में कभी
डॉक्टर साहब को साक्षात नहीं देख सका…जनवरी 2011 की बात है, मैं भतीजी की शादी
में हिस्सा लेने लखनऊ गया था…वहीं डॉक्टर साहब का रायबरेली से फोन आया था कि
गाड़ी भेज देता हूं, आकर मिल जाओ…लेकिन लखनऊ में शादी के समारोहों में व्यस्तता
के चलते बहुत इच्छा होने के बाद भी डॉक्टर साहब से मिलने नहीं जा पाया…तब डॉक्टर
साहब से फोन पर मैंने माफ़ी मांगते हुए कहा था कि अगली बार जब लखनऊ आऊंगा, आपसे
मिलने ज़रूर आऊंगा…लेकिन मुझे क्या पता था कि वो दिन कभी नहीं आ पाएगा…

डॉक्टर साहब के
जाने के बाद मैंने अपनी एक पोस्ट में लिखा था-
  

मौत को भी
ज़िंदादिली सिखा देने वाले शख्स को आखिर मौत कैसे हरा सकती है…कैसे ले जा सकती
है ब्लॉग जगत के सरपरस्त को हम सबसे दूर…दर्द को भी कहकहे लगाना सिखा देने वाले
डॉ अमर कुमार का शरीर बेशक दुनिया से विदा हो गया लेकिन जब तक ये ब्लॉगिंग रहेगी
उनकी रूह
,
उनकी खुशबू हमेशा
इसमें रची-बसी रहेगी…टिप्पणियों में छोड़ी गई उनकी अमर आशीषों के रूप में…कहते
हैं इंटरनेट पर छोड़ा गया एक एक शब्द अमर हो जाता है…और उनका तो नाम ही अमर
था…अमर मरे नहीं
,
अमर कभी मरते
नहीं….डॉक्टर साहब अब ऊपर वाले की दुनिया को ब्लॉगिंग सिखाते हुए हम सबकी
पोस्टों को भी देखते रहेंगे…

मुझे तो आज भी हमेशा यही लगता है कि मेरी पोस्ट पर डॉक्टर साहब की टिप्पणी आएगी…ओए खुशदीपे या खुशदीप पुत्तर…



एक बात और, मैं पिछले 5
साल से डॉक्टर साहब के सुपुत्र डॉक्टर शांतनु के संपर्क में हूं…इस वक्त वो
दिल्ली में जिस हॉस्पिटल में कार्यरत है, वो मेरे घर के पास ही स्थित है…शांतनु
बेटा पर डॉक्टर साहब के संस्कारों की पूरी छाप है…दूसरों के काम आने का जज़्बा
उसमें भी कूट कूट कर भरा है…हो भी क्यों ना…इंसानियत का पाठ उसे विरासत में जो मिला है…

(इस लिंक पर जाकर आप
डॉक्टर साहब को उनकी टिप्पणियों से ही दी गई इन ब्ल़ॉगर्स की श्रद्धांजलियों को
पढ़ सकते हैं-  अनूप शुक्ल, सतीश सक्सेना, बीएस पाबला,
डॉ अनुराग आर्य, शिखा वार्ष्णेय, राजीव तनेजा, रचना, रश्मि रवीजा, ZEAL-डॉ दिव्या)
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