अपनी पोस्ट पर खुद टिप्पणी करते रहना कितना जायज़…खुशदीप

रवींद्र प्रभात जी की पोस्ट से पता चला कि परिकल्पना ब्लॉग उत्सव 2010, 15 अप्रैल से शुरू होने जा रहा है…रवींद्र जी के मुताबिक उत्सव के दौरान सारगर्भित टिप्पणी करने वाले टिप्पणीकार को भी विशेष रूप से सम्मानित किया जाएगा…इसी से पता चल जाता है कि ब्लॉगिंग में सारगर्भित टिप्पणियों का कितना महत्व होता है…

मैं इस पोस्ट में ये नहीं लिखने जा रहा कि ब्लॉगिंग टिप्पणियों के लालच में नहीं की जानी चाहिए…मैं ये भी नहीं लिखने जा रहा कि गंभीर और अच्छे लेखों पर टिप्पणियों का अकाल पड़ा रहता है…मैं ये भी नहीं लिखने जा रहा कि टिप्पणी का स्वरूप कैसा होना चाहिए…क्या सिर्फ वाह-वाह कर ही अपने पाठक धर्म की इतिश्री कर लेनी चाहिए…ये सब वो सवाल हैं जिन पर अनगिनत पोस्ट लिखी जा चुकी हैं…

जिस तरह टीवी पर एक कोल्ड ड्रिंक की एड आती है...डर सभी को लगता है…डर से मत डरो….डर के आगे बढ़ो…डर के आगे ही जीत है…इसी तरह मेरा भी यही मानना है कि टिप्पणी को देखकर कहे चाहे कोई कुछ भी लेकिन सभी को असीम संतोष और आनंद मिलता है…अब इसके लिए तर्क कुछ भी दिए जाएं…और नए ब्लॉगर के लिए तो टिप्पणी टॉनिक से कम अहमियत नहीं रखती…

लेकिन इस पोस्ट को लिखने का मेरा मकसद दूसरा है…मेरा आपसे सवाल है कि क्या खुद की पोस्ट पर खुद ही टिप्पणियां करना नैतिक दृष्टि से सही है…अगर किसी की टिप्पणी आपके ब्लॉग पर आती है, तो बिना मतलब हर टिप्पणी देने वाले का शुक्रिया अदा करने के लिए खुद की पोस्ट पर ही टिप्पणियां बढ़ाते जाना, क्या कुछ खटकता नहीं है…ये बात ठीक है कि अगर कोई टिप्पणीकर्ता आपसे सवाल पूछता है, या किसी मुद्दे पर किसी ख़ामी की ओर इंगित करता है, या निर्मल हास्य के तहत चुटकी लेता है, तब तो उसका टिप्पणी के ज़रिए जवाब देना समझ आता है…पोस्ट लिखने के बाद अगर आपको याद आता है कि कोई अहम बिंदु छूट गया है…उसकी भी टिप्पणी के ज़रिए जानकारी दी जा सकती है…लेकिन हर टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी देकर टिप्पणियों की संख्या बढ़ाते जाना, कुछ जमता नहीं…

यहां अपने गुरुदेव समीर लाल जी समीर को पढ़-पढ़ कर सीखे एक पाठ का ज़िक्र करना चाहूंगा…समीर जी की किसी भी पोस्ट पर उनकी खुद की टिप्पणी रेयरेस्ट ऑफ रेयर (दुर्लभ में भी दुर्लभतम) ही मिलती है…वो भी तभी जब उनसे सीधे कोई सवाल पूछा गया हो…या समीर जी ने किसी चुटीले संदर्भ का उल्लेख करना हो…मुझे सात महीने में सिर्फ एक बार ही ऐसा दुर्लभ मौका मिला है जब समीर जी ने अपनी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी के जवाब में खुद की टिप्पणी के ज़रिए अपने उदगार व्यक्त किए थे…

अब तय कीजिए कि अपनी पोस्ट पर खुद टिप्पणियां देते रहना कितना जायज़ है…बाकी इस विषय पर आप सब की राय ज़रूर जानना चाहूंगा…

स्लॉग चिंतन

एक गांव सूखे की मार से बेहाल था…




सारे गांव ने चौपाल पर एकत्र होकर इंद्रदेवता को मनाने के लिए सामूहिक प्रार्थना करने का फैसला किया…




सब प्रार्थना के लिए पहुंच गए…






एक बच्चा छाता भी साथ लेकर आया…

इसे कहते हैं विश्वास की हद…