टीम अन्ना के लिए मंगलवार बड़ा घटनापूर्ण रहा…एक ही दिन में ये सब कुछ घटा…
सुबह-
रालेगण सिद्धि गांव के सरपंच जयसिंह राव मापारी का राहुल गांधी से मिले बिना गांव लौटना….
दोपहर-
टीम अन्ना की कोर कमेटी के दो सदस्यों-गांधीवादी पी बी राजगोपाल और वाटरमैन राजेंद्र सिंह का इस्तीफ़ा
शाम-
लखनऊ में टीम अन्ना की कोर कमेटी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर चप्पल चलना…
रालेगण सिद्धि गांव के सरपंच के दिल्ली से बैरंग लौटने का मैं पिछली पोस्ट में भी ज़िक्र कर चुका हूं…इसलिए आगे बात बढ़ाता हूं…एकता परिषद के बैनर तले गरीब मजदूर आदिवासियों के लिए ज़मीन के हक़ की लड़ाई लडने वाले राजगोपाल मंगलवार को केरल में थे…वहीं से टीम अन्ना कोर कमेटी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को चिट्ठी लिखकर अलग होने की जानकारी दे दी…रेमन मैगासायेसाये पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने टीम से अलग होते वक्त कहा कि उन्होंने कोर कमेटी की सदस्यता के लिए कोई आवेदन नहीं किया था, इसलिए इस्तीफ़ा देने की भी कोई ज़रूरत नहीं है…राजगोपाल और राजेंद्र सिंह दोनों ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के राजनीतिक दिशा में मुड़ जाने को कारण बताते हुए खुद को टीम अन्ना से अलग किया…ये भी कहा कि हिसार में पार्टी विशेष के खिलाफ वोट न देने की अपील करने का फैसला लेने से पहले कोर कमेटी में उनकी राय नहीं जानी गई थी…इसी बात पर टीम अन्ना के अहम सदस्य जस्टिस संतोष हेगड़े भी नाखुशी जता चुके हैं…
चलिए मान लेते हैं इतनी बड़ी कमेटी है, इतना बड़ा आंदोलन है, सभी सदस्यों को साथ लेकर चलना संभव नहीं हो सकता…मतभेद होंगे तो कुछ लोग अलग भी होंगे….लेकिन सवाल यहां भी ये हो सकता है कि टीम अन्ना की तरफ से सारे रणनीतिक फैसले क्या दो-तीन लोग ही ले रहे हैं और उन पर बिना कोर कमेटी में आम सहमति बनाए अमल भी शुरू कर दिया जाता है…शायद यही स्थिति भ्रम पैदा कर रही है…और लगता है रालेगण में बैठे अन्ना तक भी सही संदेश नहीं पहुंच पाता…प्रशांत भूषण का उदाहरण सामने है…कश्मीर पर प्रशांत के बयान को लेकर अन्ना उनकी कोर कमेटी से विदाई के हक़ में नज़र आते हैं…लेकिन ऐसा हो नही पा रहा है…
अब बात अरविंद केजरीवाल को लखनऊ में चप्पल से निशाना बनाने की…जालौन के जितेंद्र पाठक ने ये हरकत की…जितेंद्र पाठक की धुनाई कर पुलिस के हवाले कर दिया गया…मंच से अरविंद ने चप्पल चलाने वाले पाठक को माफ करने का भी ऐलान किया…बाद में यूपी पुलिस ने दावा किया कि जितेंद्र पाठक ने खुद को कांग्रेस सेवा दल का पूर्व सदस्य बताया है…पुलिस के मुताबिक पाठक का कहना था कि अरविंद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं, इसीलिए उसने उन पर निशाना साधा…एक हफ्ता पहले दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण के चैंबर में उन पर हमला किया गया था तो हमलावरों में से एक तेजिंदर सिंह बग्गा के बारे में कहा गया था कि वो कभी भारतीय जनता युवा मोर्चा से जु़ड़ा रहा था…कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने फौरन बग्गा के इस कनेक्शन को तूल देने में देर नहीं लगाई थी…आज लखनऊ में केजरीवाल पर चप्पल चलाने वाले पाठक पर यूपी की बीएसपी सरकार ने मौके को भुनाने में देर नहीं लगाई…देर रात को ही डीआईजी से प्रेस कान्फ्रेंस करा के पाठक के कांग्रेस कनेक्शन के बारे में बताया…
टीम अन्ना के आमंत्रित सदस्य सुनीलम ने रालेगण सिद्धि में केजरीवाल पर हमले के लिए कांग्रेस पर ही उंगली उठाई…अन्ना ने खुद भी कहा है कि वो सेहत ठीक होने पर खुद भी लखनऊ जाएंगे…अन्ना रालेगण में मीडिया वालों के लगे परमानेंट मेले से खुद ही परेशान हैं…दिन-रात के सवालों से तंग अन्ना ने मौन पर जाना ही बेहतर समझा…
खैर ये तो सब चलता ही रहेगा…अब एक दो ज़रूरी सवालों पर बात कर ली जाए…केजरीवाल कह रहे हैं कि यूपी में मायावती और मुलायम के हाथ में कुछ नहीं है, जनलोकपाल बिल पास कराना सिर्फ सोनिया गांधी के हाथ में है…इस पर मेरा कहना है- मुलायम और मायावती के हाथ में क्या नहीं है…दोनों के पास लोकसभा में 43 सीटें हैं…अगर दोनों आज बाहर से दिया जा रहा यूपीए को समर्थन हटा दें तो आज ही मनमोहन सिंह सरकार गिर जाएगी…फिर टीम अन्ना इन्हें क्यों बख्श रही है…
दूसरी बात राजनीति से टीम अन्ना को इतना परहेज़ क्यों…लोहे को जब लोहा ही काट सकता है तो फिर क्यों नहीं खुद भी राजनीति में उतरा जाए…राजनीति के गटर को साफ़ करना है तो गटर में उतरना ही पड़ेगा…बाहर खड़े रह कर शोर मचाते रहने और राजनीतिक दलों से खुद ही अपनी गंदगी साफ करने की उम्मीद करना बेमानी है…मेरी राय में तो हिसार में टीम अन्ना को कांग्रेस का विरोध करने की जगह खुद अपना उम्मीदवार खड़ा करना था…संसद में चाहे टीम अन्ना का एक ही आदमी पहुंचे, सदन में आवाज़ तो उठाएगा…अब भी टीम अन्ना रणनीति बदले और आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में प्रतीकात्मक तौर पर कुछ सीटों पर वहीं से लोकल ईमानदार आदमियों को चुनकर चुनाव लड़ाए…अगर जनता वाकई इन लोगों के साथ आ गई तो चुनाव लड़ने के लिए खर्च के इंतज़ाम के साथ वोट भी देगी…जिसे जनता जिताने पर आ जाए उसे कोई नहीं हरा सकता…इसके आगे बाहुबल और धनबल भी हार जाते हैं…
तीसरा सवाल मेरी टीम अन्ना से पहले से ही एक आशंका से जु़ड़ा है…जिसकी वजह से उस पर खांटी राजनेता निशाना साध रहे हैं…और वो है सभी वर्गों को साथ लेकर चलना…अगर टीम अन्ना अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और दलितों के कल्याण को लेकर खुल कर अपना चिंतन नहीं जताती तो इन वर्गों में उसके लिए आशंकाएं बनी रहेंगी और वो अन्ना के पीछे लगे लोगों को खाए पिए अघाए लोगों का ही अखाड़ा मानते रहेंगे…
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जब तक,एक और चाण्क्य अवतरित ना होगा,देश से भ्रष्टाचार की अमर बेल नष्ट ना होगी.
बेशक लोहे को लोहा काटता है
लेकिन
फर्क है इस बात में भी
कि
'गर्म' लोहे को 'ठंडा' लोहा ही काट पाता है
गर्म?
ठंडा?
पैचान कौन?
🙂
आप तो एक दक्ष राजनीतिक विवेचक बन गए हैं इस पोस्ट में मगर क्या सचमुच अन्ना के अभियान का राजनीतिकरण शुरू हो गया है ?
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खुशदीप जी
हा हा हा क्या आप को वाकई लगता है की मुलायम मायावती ये कर सकते है , वो तो खुद सी बी आई से अपनी गर्दन बचाने के लिए मज़बूरी में समर्थन दिए हुए है क्या वो कांग्रेस पर किसी भी तरह का दबाव डाल सकते है और मायावती तो इस कानून के ही खिलाफ है वो भला क्यों दबाव डालने लगी | आप खुद जानते है की जो दिखता है वैसा होता नहीं राजनीति में, अगर इस बारे में कोई कुछ कर सकता है तो वो है बस कांग्रेस, छोटे दलों पर दबाव डाल कर आप कुछ नहीं कर सकते है , ये अपने निजी फायदे के लिए तो सरकार के कान मरोड़ सकते है किन्तु किसी और काम के लिए नहीं | अब देखिये अब तक चुपचाप रहे पवार को भी महाराष्ट्र में एक सिट हारते ही नेतृत्व कमजोर लग रहा है | और सच तो ये है कि ईमानदारी से तो कोई भी राजनितिक दल इसे लागु ही नहीं करना चाहता है | और मान लीजिये अन्ना टीम मायावती और मुलायम पर कोई दबाव डालती भी है तो आप यही कहेंगे की देखो ये लोग सरकार गिराने का प्रयास कर रहा है |
@अंशुमाला जी,
आपने शायद मेरी इन पंक्तियों की ओर ध्यान नहीं दिया…
केजरीवाल कह रहे हैं कि यूपी में मायावती और मुलायम के हाथ में कुछ नहीं है, जनलोकपाल बिल पास कराना सिर्फ सोनिया गांधी के हाथ में है…इस पर मेरा कहना है- मुलायम और मायावती के हाथ में क्या नहीं है…दोनों के पास लोकसभा में 43 सीटें हैं…अगर दोनों आज बाहर से दिया जा रहा यूपीए को समर्थन हटा दें तो आज ही मनमोहन सिंह सरकार गिर जाएगी…फिर टीम अन्ना इन्हें क्यों बख्श रही है…
मुलायम और मायावती चाहें तो सरकार को अल्टीमेटम देकर मज़बूत लोकपाल बिल लाने के लिए मजबूर कर सकते हैं…
जय हिंद…
टीम अन्ना के पीछे जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन का कैडर है उसे अब खुलकर राजनीति में आना चाहिए… राजनीति के रंग में रंग तो गये ही है पूरी तरह
हिन्दी कॉमेडी- चैटिंग के साइड इफेक्ट
'मैं राजनीति नहीं करना चाहता'
यह कहना क्या राजनीति नहीं है?
टीम अन्ना को पता है की लोकपाल बिल को कौन पास करा सकता है कांग्रेस तो सीधे उसी से दो दो हाथ किया जाये न की दूसरो से बहस कर अपना समय बेकार किया जाये | हमारा लोकतंत्र कोई जंगल का तालाब नहीं है जिसे साफ करने के लिए उसमे उतरना पड़े ये एक साफ सुथरा तैरने का पुल है जो कुछ लोगो द्वारा गन्दा कर दिया गया है जिसके कारण अच्छे लोग अब इसमे नहाने से परहेज कर रहे है | आप ने देखा होगा की पुल को साफ करने के लिए कभी इसमे उतरने की जरुरत नहीं पड़ती है उसे आप बाहर रह कर आसानी से साफ कर सकते है | एक बार उसे साफ हो जाने दीजिये फिर जिसकी इच्छा होगी सभी उसमे डुबकी लगा सकते है आसानी से और किसी के बदन पर गन्दगी भी नहीं लगेगी | इस बार इसमे लोकपाल जैसी कुछ फ़िल्टर लगा देते है जो अपने आप गन्दगी साफ करते चलेगा | और अच्छा हो की एक एक करके मुद्दे उठाये जाये और उन को लागु करवाने पर ध्यान दिया जाये एक साथ आप कई मुद्दों पर बोलेंगे तो वही कश्मीर के बयान की तरह आप कई विरोधी बना लेंगे और काम एक भी पूरा नहीं कर पाएंगे |
रतन सिंह जी की बात दमदार है !
शुभकामनायें आपको !
-ये एनजीओ वीर है बूढ़े अन्ना को आगे कर उसका दोहन करना चाहते है|
-राजनीति में आ जायेंगे तो इन्हें अपनी औकात पता चल जायेगी| भीड़ इकट्ठा करने और राजीनीति में आकर कुछ करने में भारी फर्क है|
– मुझे तो यही लगता है कि ये एनजीओ वीर ये सारी कवायद बेकडोर से संसद में पहुँचने के लिए कर रहे है यानी कोई दल इन्हें राज्यसभा सदस्य बना दे|
-कोई भी आंदोलन किसी के खिलाफ चलाना बहुत आसान है पर लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना दूसरी बात है|
– आपकी लोहे से लोहा काटने वाली बात में दम है जब अन्ना टीम कांग्रेस को हराने में जुट ही गयी है तो इन्हें खुले आम राजनीति में आ ही जाना चाहिए|
यह एक तरीक़ा होता है आदमी को मुददे से भटकाने का और उसके सहयोगियों में फूट डालने का।
फूट पड़ ही चुकी है।
इसके बावजूद भी कांग्रेस की मिटटी ख़राब ही होगी और जो पार्टी इसकी जगह आएगी, वह भी महंगाई और भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगा पाएगी।
वह कफनचोरों को साथ लाएगी।
काजल की कोठरी में…
राजनीति में परामर्श देना अलग बात है और स्वयं राजनीति करना अलग। किसी को हराने की अपील करना अलग बात है और किसी को जिताना अलग। जो दल बरसों से कूटनीति बल्के कुटिल नीति के सहारे राजनीति कर रहे हों, वे भला अन्ना टीम को कैसे माफ कर देंगे। उन्हें तो तोड़कर ही दम लेंगे ना।
बिना विवादों के भी कोई संगठन होता है क्या…घर के चार सदस्यों के बीच मतभेद हो जाता है ये तो लाखों का संगठन है…
नीरज
सही कहा। लोहा ही लोहे को काटता है।
राजनीति से परहेज की बात हो रही है पर आखिर तमाम तरह की राजनीति तो हो ही रही है टीम अन्ना में।
इसमे तो दो राय है ही नही कि लोहा ही लोहे को काट सकता है ……………आपकी बात से सहमत्।