वाकई ब्लॉगिंग का ट्रांजिशन पीरियड चल रहा है…किसी की चिंता है ब्लॉगिंग का ट्रैफिक फेस बुक की ओर मुड़ गया है…कोई गूगल प्लस से रास न आने पर खुद को वहां से हटाने की बात कर रहा है…ट्विटर की चींचीं की ओर भी ब्लॉगर्स का झुकाव बढ़ रहा है…किसी की फ़िक्र है टिप्पणियों की धारा दिल्ली की यमुना नदी की तरह सूखती जा रही है…और कहीं एक दिन सरस्वती नदी की तरह पूरी तरह विलुप्त ही न हो जाए…
वाकई आज टैक्नोलॉजी के आगे मानव नतमस्तक है, वही टैक्नोलॉजी जिसे मानव ही हर दिन उन्नत से उन्नत करता जा रहा है…हिंदी ब्लॉगिंग, इंग्लिश ब्लॉगिंग, फेसबुक, गूगल प्लस, ट्विटर, दखल मैंने भी हर जगह दे रखा है, लेकिन हालत वही जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स, मास्टर ऑफ नन जैसी है…फेसबुक पर जाने का वैसे तो कम ही मौका मिलता है लेकिन किसी पोस्ट पर मल्टीपल चैट की तरह कई लोग जुड़ जाएं तो आनंद भी खूब आता है…गूगल प्लस लगता है फेसबुक की बढ़ती लोकप्रियता को टक्कर देने के लिए ही बनाया गया है…अभी इसे जमने में थोड़ा वक्त लग सकता है…
ट्विटर बेसिकली सेलेब्रिटीज़ का शगल है…लोग बड़े बड़े नामों का फॉलोअर बनकर खुद को धन्य समझते हैं…हां इसका ये फायदा ज़रूर है कि आप नामी हस्तियों से जो कहना चाहते हैं, वो ट्विटर के माध्यम से उन तक पहुंचा सकते हैं…मुझे तो ये भी लगता है कि ये बड़े नाम इतने ऊंचे मकाम पर पहुंच गए हैं कि इन्हें हमारे जैसे घर-बार चलाने के लिए हाथ-पैर मारने जैसी कोई चिंता नहीं है…तभी तो बौद्धिक जुगाली की चीं-चीं के लिए इतना वक्त निकाल लेते हैं…
इस सारी उठापटक से कोई भी कनफुजिया सकता है…फिर सोचता हूं कि नेट के इस मकड़जाल में कौन सा रास्ता ठीक रहेगा…ये सोच ही रहा था कि पुरानी किसी पोस्ट का सुनाया ये किस्सा याद आ गया…
कई सदियों पहले की बात है…एक सिद्ध पुरुष अपने चेले के साथ भ्रमण पर निकले हुए थे…घूमते-घूमते एक गांव में पहुंचे…वहां पूरा गांव सिद्ध पुरूष की सेवा में जुट गया…कोई एक से बढ़ कर एक पकवान ले आया…कोई हाथ से पंखा झलने लगा…कोई पैर दबाने लगा…किसी ने नरम और सुंदर बिस्तर तैयार कर दिया…सुबह उठे तो फिर वही सेवाभाव…सिद्ध पुरुष का गांव से विदाई लेने का वक्त आ गया…गांव का हर-छोटा बड़ा उन्हें विदा करने के लिए मौजूद था…सिद्ध पुरुष ने गांव वालों के लिए कहा…जाओ तुम सब उजड़ जाओ…यहां से तुम्हारा दाना-पानी उठ जाए…
सिद्ध पुरुष के मुंह से ये बोल सुनकर उनके चेले को बड़ा आश्चर्य हुआ…ये महाराज ने गांव वालों की सज्जनता का कैसा ईनाम दिया लेकिन चेला चुप रहा…गुरु और चेला, दोनों ने फिर चलना शुरू कर दिया…शाम होने से पहले वो एक और गांव में पहुंच गए…
ये गांव क्या था साक्षात नरक था…कोई शराब के नशे में पत्नी को पीट रहा है…कोई जुआ खेलने में लगा है…कोई गालियां बक रहा है…यानि बुराई के मामले में हर कोई सवा सेर…सिद्ध पुरुष को देखकर कुछ गांव वालों ने फब्तियां कसना शुरू कर दिया…ढोंगी महाराज आ गया…सेवा तो दूर किसी ने गांव में पानी तक नहीं पूछा…खैर गांव के पीपल के नीचे ही किसी तरह सिद्ध पुरुष और चेले ने रात बिताई…विदा लेते वक्त सिद्ध पुरुष ने गांव वालों को आशीर्वाद दिया…गांव में तुम सब फूलो-फलो…यहीं दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करो…यहीं तुम्हे जीवन की सारी खुशियां मिलें…
चेला वहां तो चुप रहा लेकिन गांव की सीमा से बाहर आते-आते अपने को रोक नहीं पाया…बोला…महाराज ये कहां का इंसाफ है…जिन गांव वालो ने सेवा में दिन-रात एक कर दिया, उन्हें तो आपने उजड़ने की बद-दुआ दी और जो गांव वाले दुष्टता की सारी हदें पार कर गए, उन्हें आपने वहीं फलने-फूलने और खुशहाल ढंग से बसे रहने का आशीर्वाद दे दिया…
ये सुनने के बाद सिद्ध-पुरुष मुस्कुरा कर बोले…सज्जनों में से हर कोई जहां भी उज़ड़ कर जाएगा, वो उसी जगह को चमन बना देगा…और इन दुर्जनों में से कोई भी स्वर्ग जैसी जगह भी पहुंचेगा तो उसे नरक बना देगा…इसलिए अच्छा यही है कि वो जहां है, वहीं बसे रहे…इससे और दूसरी जगह तो बर्बाद होने से बची रहेंगी…
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यह सच है कि बहुत से लोग ब्लॉग से हट गए और उनमें से एक मैं भी हूँ. दूसरों को तो नहीं कह सकता लेकिन मेरे हटने के पीछे एक कारण था जो शायद एक मनोवैज्ञानिक समस्या बन गया. ब्लॉग से पूरी तरह न हटने के बावजूद हटा ही कहा जाएगा क्योंकि न तो फिर कहीं जाना हुआ और न ही पोस्ट ही डीहंग से हुई. मैं ने फेसबुक पर खुद को रखने का प्रयास किया जो आज ६ माह बाद भी जारी है.
ब्लॉग मेरे विचारों का एक माध्यम था परन्तु बहुत कुछ ऐसा घटित हुआ जो मेरे लिए सहनीय नहीं था. कब लौटूंगा, पता नहीं.
baat sahi hai… aur jaha rahi socal-networking sites ki baat… to pahle orkut aaya, fir facebook, twitter, tag, aur bhi kai… aur ab G+… orkut n facebook ki ek baat bahut acchi lagi, purane bichhde dost-yaar mil gae… par orkut ko fb ne overcome kar liya… fb ki ek baat, ek info bas apni wall pe post kiya aur sab tak pahuch gai khabar… baaki G+ to aanan-faanan ki paidaish laage hai manne to… par blogging apni jagah aur social networking sites apni jagah…
हमे तो ब्लाग के सिवा कुछ अच्छा नही लगा। हर जगह घूम फिर कर देख लिया। । एक काम करो ब्लागर्ज़ को भी कुछ छुट्टियों का बन्दोाबस्त करो । दोचार दिन अगर अपनी मर्जी से छुट्टी ले लो तो वापिस आने पर सब अजनबी से बन जाते हैं। हर माह दो तीन छुट्टियां तो हों। नही तो रोज़ थका दे3ने वाला काम उबाऊ होने लगता है। शुभकामनायें।
इन दुर्जनों में से कोई भी स्वर्ग जैसी जगह भी पहुंचेगा तो उसे नरक बना देगा…इसलिए अच्छा यही है कि वो जहां है, वहीं बसे रहे…इससे और दूसरी जगह तो बर्बाद होने से बची रहेंगी…
हा हा हा, खुशदीप भाई हम तो यहीं रहेंगे, फलेंगे फूलेंगे यहीं पर सभी खुशियां भोगेंगे… हां कभी कभी घुमाई के लिए उधर भी हो आएंगे, लेकिन बने ब्लॉगर ही रहेंगे, आप कहां जा रहे हैं 🙂
जलाये जा बुझाये जा,बुझाये जा जलाये जा
कि हम तेरे चिराग हैं
जलाये जा बुझाये जा.
खुशदीप भाई आपने एक चिराग जलाया है.
बुझाना चाहतें हैं तो बुझ जायेगा.
यहीं जमे रहिये भाईसाहब , बाकी जगह से लोग जब उब जायेंगें तो आपकी तरफ ही आयेंगें . जहाँ जाइएगा हमें पाईयेगा अजी ……………
कुछ के लिए सच्चा दोस्त है ब्लॉग.
तीखा-तड़का पर चखें
स्विस सेंट्रल बैंक "आरएसएस का आदमी"
सबका अलग-अलग आनंद है।
बलॉग में एक अलग ही मजा है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
खुशदीप भाई अब ब्लोगिंग का नहीं मैक्रो ब्लोगिंग का युग है. बड़े बड़े लेख लिखो और उसको पढने वाले कम हों तो ब्लोगेर को सोंचना पड़ता है इतने मेहनत का क्या फायदा? फेस बुक, ट्विट्टर , मैं मैक्रो ब्लोगिंग है. चार लाइन लिख दी ,यह भी आसान और टिप्पणी कर दी २ लाइन कि का समय कम हुआ तो लाईक कर दिया काम हो गया.
पढने और लिखने दोनों का शौक ही इसका हल है.
आपने कहानी के माध्यम अच्छा संदेश दिया है। हालात का असर जीवट वालों पर कम ही पड़ता है।
आपकी इस पोस्ट का चर्चा आपको आज सुबह मिलेगा ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ में।
आप सादर आमंत्रित हैं।
यह दौड़ पता नहीं कहां रुकेगी, किन्तु ब्लाग ठीक है.
अरविंद मिश्र जी,
अभी तो मैं जवान हूं…ये नहीं तो क्या, ये तो गा सकते हैं…
जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां…
जय हिंद…
जमे रहिये यहीं .अपुन का क्या ….मगर अब यहाँ रखा ही क्या ..रोमांस वोमांस के दिन तो लद गए …जो गला फाड़ गाते रहें -दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे ……
मुझे जबसे एहसास हुआ है कि हिंदी ब्लॉग्गिंग में टाइम वेस्टेज के सिवा कुछ नहीं है… मैं दूर हो गया … लिखने के लिए बहुत से प्लैटफॉर्म हैं…. जहाँ नाम और पैसा भी है… और टाइम वेस्टेज की फीलिंग भी नहीं होती… शर्त सिर्फ इतनी होती है की आपको उन जगहों पर काबिल होना पड़ता है… और यहाँ ????? ……..?????………?????
मुझे जबसे एहसास हुआ है कि हिंदी ब्लॉग्गिंग में टाइम वेस्टेज के सिवा कुछ नहीं है… मैं दूर हो गया … लिखने के लिए बहुत से प्लैटफॉर्म हैं…. जहाँ नाम और पैसा भी है… और टाइम वेस्टेज की फीलिंग भी नहीं होती… शर्त सिर्फ इतनी होती है की आपको उन जगहों पर काबिल होना पड़ता है… और यहाँ ????? ……..?????………?????
खुशदीप जी बात आपकी सोलह आने सच है लेकिन अपन तो पुराने ज़माने के आदमी है, सब पर हाथ अजमा लिया. ऑरकुट पर जब तक रहे ब्लोगिंग नहीं जानते थे. जब से ब्लोगिंग में आये तो फेसबुक देखा पहुँच तो गए लेकिन भेडचाल समझ से परे रही . अब जा ही नहीं पाते हैं. ब्लोगिंग सबसे अच्छी – टिप्पणी की सरिता सूखती जा रही है, फिर से हरी भरी हो जाएगी क्योंकि नए नए प्रयोग तो अच्छे लगते हैं लेकिन पुराने चावल की बात और ही होती है.
जहाज का पंछी जाएगा कहाँ?
चमन हर जगह बने पर गाँव के बनने के बाद।
ऑर्कुट, फेसबुक, ट्विटर … अपुन को कुछ भी रास न आया।
ब्लागरी इन सब से अलग मंच है। इस का अपना स्वभाव है।
ये लो भाई हमने तो फेसबुक बंद कर दिया है . अब सिर्फ ब्लोगों पर ही रहेंगे . वैसे भी फेसबुक पर खाली देखते थे की क्या हो रहा है , लेकिन सब पागलपन लगा .
लेकिन थोडा रूककर साँस लेने से ताकत फिर आ जाती है .
सब का अपना अपना महत्व है … चाहे ब्लोगिंग हो चाहे फेसबुक या नया ताज़ा गूगल + या खास लोगो की आम पसंद ट्विटर … सब अपनी अपनी जगह है … मकसद एक ही है … अपनी बात सब तक पहुँचाना … हाँ यह बात अलग है कि कौन कहाँ कितना सक्रिय है …
जय हिंद !
अजय भईया,
सीएम शीला आंटी से कह कर वैसे ही लोहे के जाल की व्यवस्था करानी पड़ेगी जैसी यमुना नदी पर बने पुलों पर हो रखी है…
जय हिंद…
संजय भाई कहेंगे कि , हमरा नकल टीपे हैं इसलिए तीसरा भी धर ही दे रहे हैं
बात लंबर दो , ये कि अभी अभी पोस्ट पर पढा कि टिप्पणियां सूखती जा रही हैं , सो अब एक फ़ौरन से बढिया पिलान ये बनाया है कि संजय की तरह टिप्प्णी हम भी जोडे , तिगोडे से ही करेंगे
एक सिद्ध पुरुष अपने चेले के साथ भ्रमण पर निकले हुए थे..
देखिए बकिया तो बाद में निपटाएंगे लेकिन पहली बात ई है कि ..ई सिद्द बबा आपही को काहे भेटाते हैं हो बारबार ..इनको बोलिए कभी कभी लक्ष्मीनगर मेट्रो रूट पर भी मार्निंग वाक किया करे जी
टिप्पणियों का अपना मिजाज होता है, किसी विषय पर विचार विमर्श की सम्भावनाएं अपार रहती हैं लेकिन कुछ विषयों पर कम होती है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग विमर्श पसन्द नहीं करते इसकारण व्यक्ति का स्वभाव जानने के बाद टिप्पणियां भी कम हो जाती है। कथा और पोस्ट की समानता समझ नहीं आयी।
देवेंद्र भाई,
खुशदीप की जगह कुलदीप, इसी को तो ट्रांजिशन कहते हैं…खैर मज़ाक एक तरफ़…
टिप्पणियां यमुना की तरह सूखती जा रही हैं…आपने अनौपचारिक टिप्पणियों की बात की, तो ये ठीक वैसे ही जैसे हम पूजा करने के बाद सारे अवशेष पॉलीथीन की थैली में भरकर नदी में बहा आते हैं…ये कितना नुकसानदेह होता है, सब जानते हैं…
जय हिंद…
काफी हद तक ठीक कह रहे हैं आप ! शुभकामनायें !
क्षमा कीजियेगा खुशदीप साहब की-बोर्ड जरा फिसल गया आपको कुलदीप लिख बैठा.
भाई कुलदीप साहब!
आपका कहना एक हद तक सही है. लेकिन मुझे लगता है कि ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक विकासशील माध्यम है जो धीरे-धीरे शैशव अवस्था से किशोरावस्था की और बढ़ रहा है. यह उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है जब तरह-तरह के बदलाव परिलक्षित होने लगते हैं. यही हो रहा है. मेरा मानना है कि गीता के कर्मयोगी की तरह फल की चिंता किये बगैर अपना कर्म करते जाना चाहिए. टिप्पणियों या ट्रैफिक की चिंता करनी ही नहीं चाहिए. वैसे भी औपचारिक टिप्पणियों का कोई अर्थ नहीं होता.
बात तो सही कही है।