अनूप शुक्ल, द कैटेलिस्ट ऑफ ब्लॉगवुड…खुशदीप

कल मैंने समीर लाल जी को लेकर ‘द साउंड ऑफ साइलेंस’ सुनाई थी…

जिसे आप पसंद करते हैं उसके बारे में सार्वजनिक तौर पर अपने विचार प्रकट करना रस्से पर संतुलन बनाने के समान होता है…शिष्य या चाटुकार, कोई भी तमगा आपके माथे पर चस्पा हो सकता है…समीर लाल जी पर लिखना मुश्किल है तो अनूप शुक्ल जी पर लिखना और भी ज़्यादा मुश्किल है…वो भी मेरे जैसे अनाड़ी के लिए…

मैंने जब ब्लॉगिंग शुरू की थी तो अनूप जी और समीर जी के रिश्ते मेरे लिए किसी पहेली से कम नहीं थे…मैंने एक पोस्ट भी लिखी थीब्लॉगिंग की काला पत्थर… इसमें समीर जी ने एक टिप्पणी के माध्यम से विस्तार से अनूप जी के साथ अपने रिश्तों के बारे में बताया था…समीर जी ने अनूप जी को प्रोस (गद्य) में अपना गुरु बताया था…समीर जी को मैंने अपने ब्लांगिग के पहले दिन से ही गुरुदेव मान रखा है…अब समीर जी ने अनूप जी को अपना गुरु बताया तो अनूप जी मेरे लिए महागुरुदेव हो गए…उस पोस्ट के बाद दोनों के रिश्तों को लेकर मेरे मन में जो भी आशंकाएं थीं, समाप्त हो गईं…

लेकिन अब फिर एक बार दोनों को लेकर ब्लॉगवुड में महाभारत मचा हुआ है…ये सुनामी इलाहाबाद के संगम तट से आई है…कल मैंने समीर जी की प्रकृति पर वो लिखा था, जैसा कि मैं उनके बारे में सोचता हूं…आज महागुरुदेव अनूप शुक्ल की बारी है…मेरी नज़र में अनूप जी ब्लॉगवुड के कैटेलिस्ट (उत्प्रेरक) हैं…कैमिस्ट्री में मैंने पढ़ा था कि किसी भी रासायनिक क्रिया को तेज़ करने के लिए कैटेलिस्ट की आवश्यकता होती है…कैटेलिस्ट दो प्रकार के होते हैं पॉज़िटिव और नेगेटिव…पॉज़िटिव रासायनिक क्रिया को तेज़ करते हैं तो नेगेटिव धीमा…अनूप जी में ये दोनों ही गुण हैं…अब इसे मौज कहिए या कुछ और अनूप जी कभी ब्लॉगवुड को नीरस नहीं होने देते…

अनूप जी ने इस साल के शुरू में अचानक नोएडा मेरे घर आकर मुझे सुखद आश्चर्य दिया था

आप दाल बिना तड़के लगे खाए तो आपको कैसा स्वाद आएगा…ब्लॉगवुड में तड़के के लिए अनूप जी के पास मसालों का विशाल भंडार है…अब इन मसालों से लैस होकर अनूप जी जब भी अपने लेखन का कौशल दिखाते हैं, वो बस कमाल ही होता है…अब तड़के में किसी को तीखी मिर्च भी लग सकती है…इसमें अनूप जी का क्या कसूर…

समीर जी का अनूप जी के साथ पुराना साथ रहा है, इसलिए वो अनूप जी के लेखन की पाक-कला से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं…लेकिन मेरे जैसे नौसिखिए दो गुरुओं की जुगलबंदी के कुछ और ही निहितार्थ निकालने लगते हैं…बेहतर है हम दोनों के संबंधों की चिंता दोनों पर ही छोड़ दें…

वैसे अनूप जी को लेकर न जाने क्यों एक महात्मा जी से उनकी तुलना करने का मन कर रहा है…महात्मा जी का किस्सा आप भी पढ़िए…

एक बार महात्मा जी अपने एक शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले…चलते-चलते शाम हो गई…उन्होंने सोचा, पास के गांव में ही रात को डेरा डाल लेते हैं…आगे की यात्रा पर सुबह निकलेगे…महात्मा ने जैसे ही गांव में प्रवेश किया, लोग उनके पांव छूने लगे…सब महात्मा जी के स्वागत सत्कार में लग गए…रात को बढ़िया खाना…आरामदायक बिस्तर की व्यवस्था…सुबह भी महात्मा जी के प्रस्थान करते वक्त सारा गांव इकट्ठा हो गया…महात्मा जी ने विदाई लेते हुए गांव वालों से कहा…तुम सब यहां से उजड़ जाओ…ये सुनकर महात्मा के शिष्य को बड़ा अजीब लगा…लेकिन वो बोला कुछ नहीं…चुपचाप साथ चलता रहा…फिर शाम हुई…फिर महात्मा ने पास के गांव में चलकर रात बिताने का फैसला किया….महात्मा गांव में घुसे तो देखा कि चौपाल पर जुआ चल रहा है…कोई अपनी पत्नी को पीट रहा है…कोई अपशब्द निकाल रहा है…महात्मा को देखकर भी वो कहने लगे…देखो आ गया ढोंगी बाबा…गांव में किसी ने महात्मा को खाना तो दूर पानी का गिलास तक नहीं पूछा…खैर किसी तरह महात्मा ने शिष्य के साथ उस गांव में रात काटी…सुबह चलने लगे तो एक भी गांव वाला उन्हें विदा करने के लिए नहीं आया…महात्मा ने फिर भी गांव की चौपाल पर जाकर सारे गांव वालों को आशीर्वाद दिया…खुश रहो, सब यहां आबाद रहो…महात्मा ने गांव छोड़ा तो शिष्य पूछ ही बैठा…गुरुदेव ये कहां का न्याय है…सज्जन गांव वालों को आपने उजड़ने की बददुआ दे दी और दुष्ट गांव वालों को आबाद होने की…ये सुनकर महात्मा मुस्कुराए और बोले…सज्जन उजड़ कर जहां भी पहुंचेंगे, उसी जगह को चमन बना देंगे और दुर्जन अपनी जगह छोड़कर चमन में भी पहुंच गए तो उसे नरक बना देंगे…





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