राजनीतिक पार्टियां हलकान है्ं…
क्राउड मैनेजमेंट करने वाली कंपनियां हैरान हैं…
रिसर्च हो रही हैं कि आखिर अन्ना हजारे के अनशन के दौरान इतना जनसमर्थन जुटा तो जुटा कैसे…
राजनीतिक रैलियों के लिए जो काम पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद नहीं किया जा सकता, वो जंतर मंतर पर पांच अप्रैल से लेकर नौ अप्रैल तक हुआ कैसे…वो भी तब जब पूरा देश क्रिकेट वर्ल्ड कप दूसरी बार जीतने के खुमार में था…लेकिन जो हुआ वो पूरी दुनिया ने देखा…अ्न्ना ने जादू की छड़ी तो घुमाई नहीं थी जो पूरे देश को अपने पीछे कर लिया…
ये सच बात है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने जन लोकपाल बिल के लिए लोगों का समर्थन जुटाने के लिए कड़ी मेहनत की…महीनों पहले ही इसका प्रचार शुरू कर दिया..माउथ पब्लिसिटी कितनी असरदार हो सकती है वो लोगों के खुद-ब-खुद जंतर-मंतर की ओर बढ़ने से पता चला…लेकिन इस आंदोलन की सफलता का असली हीरो न्यू मीडिया है…आईटी की नई तकनीक है…ब्लॉगिंग, एसएमएस, ई-मेल, फेसबुक, ट्विटर, आरकुट, बज़, माइक्रोसाइट्स, सोशल फोरम सभी ने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ऐसा माहौल तैयार किया जिसका सीधा फायदा इंडिया अंगेस्ट करप्शन की मुहिम को मिला…करीब साढ़े तीन दशक पहले जेपी के आंदोलन के बाद ये पहला मौका था कि लोगों में सत्ता के गलियारों के ख़िलाफ़ इतना गुस्सा देखने को मिला…ऐसा दबाव बना कि चार दिन में सरकार को अन्ना हज़ारे की मांगें माननी पड़ीं…
यहां ये ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि पिछले तीन-चार महीने में ट्यूनीशिया, मिस्र जैसे देशों में जास्मिन क्रांति के ज़रिए लोगों ने दशकों से जमे तानाशाहों के पैर उखड़ते देखे…जास्मिन क्रांति यानि वो क्रांति जिसका कोई राजनीतिक रंग न हो…न्यू मीडिया ने लोगों के दबे हुए गुस्से को बाहर निकलने के लिए आउटलेट दिया…वो अक्स भी देश वालों के ज़ेहन में ताजा थे…देश की जनता में कहीं न कहीं ये संदेश गया कि एकजुट होकर सत्ता को झुकाया जा सकता है…
फिर देश ने पिछले एक डेढ़ साल में जितने घोटाले देखे, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था…लाखों करोड़ों की बंदरबांट से देश की जनता को यही लगा कि भ्रष्ट नेता दोनों हाथों से देश का पैसा लूटने में लगे हैं और केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है…टू-जी घोटाले के आरोपी ए राजा के मंत्री बनने के पीछे प्रधानमंत्री का गठबंधन धर्म की मजबूरी का हवाला देना किसी भी देशवासी के गले नहीं उतरा…नीरा राडिया टेप बमों से बरखा दत्त, वीर सांघवी जैसे दिग्गज पत्रकारों की साख को बट्टा लगते देखा तो स्थापित मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान लगे…ऐसे में न्यू मीडिया के ज़रिए लोगों को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम मिला…ऐसा माध्यम जिसकी अपनी कोई लाइन नहीं, लोगों को हर तरह की भावनाओं को जताने के लिए मंच मिला…मुद्दों पर जैसी ज्वलंत बहस यहां दिखी, वो अभूतपूर्व थी…
न्यू मीडिया की ताकत का देश ने पहली बार किस शिद्दत के साथ अहसास किया, इसे सबसे अच्छी तरह लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में इंगित किया है…आडवाणी देश में सबसे बड़े विरोधी दल के सबसे वरिष्ठ सक्रिय राजनेता हैं…अगर वो भी मानने लगें कि आईटी ने सभी को पीछे धकेल दिया है तो आप खुद ही समझ सकते हैं कि न्यू मीडिया आने वाले वक्त में देश की तकदीर तय करने में कितनी प्रभावी भूमिका निभाने वाला है…आडवाणी ने लिखा है…
अण्णा हजारे के केस में टी.वी. का स्थान आई.टी. ने ले लिया और इसने 73 वर्षीय पूर्व सैनिक को न केवल देश में अपितु दुनियाभर के भारतीयों में एक दूसरा नायक बना दिया। इसका तत्काल असर यह हुआ कि जिस जेपीसी को एनडीए सहित समूचे विपक्ष ने दो महीने के बाद हासिल किया और वह भी पूरे शीतकालीन सत्र में संसद को कोई कामकाज न करने देकर इतिहास बनाने के बाद; वहीं हजारे द्वारा आमरण अनशन की घोषणा करने के चार दिनों के भीतर उनके सीमित लक्ष्य कि और प्रभावी लोकपाल बनाया जाए, को हासिल करने में सफल रहे।
आडवाणी के इस बयान में कहीं न कहीं कसक दिखती है, सरकार की विफलता के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का जो काम अपोज़िशन नहीं कर पाया, उसे अन्ना हजारे के अनशन ने कर दिखाया…यानि जनता अब उसी की सुनेगी जो राजनीतिक स्वार्थ से हटकर वाकई देश के भले की बात सोचता हो…सोचता ही नहीं हो उसे अमल में ला कर भी दिखाता हो…आज तक देश में विरोधी दल भारत-बंद जैसे आह्वान तो करते आए हैं लेकिन उनका कभी कोई नेता किसी मुद्दे पर आमरण अनशन पर क्यों नहीं बैठा…यही सवाल अन्ना हज़ारे की ताकत बना…
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नयी मीडिया की इस ताकत को अब नकारा नहीं जा सकता।
new media swarti nahi hai…..bahut umda vichaar….
jai baba banaras….
न्यू मीडीया ने ह कुछ किया होगा वरना टी वी और अख़बार मीडीया तो कुछ करने से रही … ये सब सरकार का भौंप्पू ही लगते हैं …
निःस्वार्थ भाव,ईमानदारी तथा जनहित की भावना से किया गया कोई भी प्रयास असफल नहीं होता…बल्कि ऐसा हर प्रयास कुछ न कुछ सही बदलाव जरूर लाता है…इस न्यू मिडिया की ताकत तो आप जैसे लोग भी हैं..जिन्होंने इस मुहीम को मजबूती प्रदान की अपने ब्लॉग लेखन के जरिये..आशा है आने वाले वक्त में भी आप जैसे लोगों का सहयोग ऐसे मुहीम को मिलता रहेगा…
खुशदीप भाई जी,
हम सभी खरीददारी के समय भाव करने की विधा में इतने माहिर होते हैं कि यदि कोई वस्तु मुफ्त में मिल रही हो तो दो चाहिये की बारगेनिंग में जुटे दिखते हैं (भ्रष्टाचार भी) । लेकिन जब किसी दुकान पर रिजनेबल मूल्य पर एक भाव हाँ या ना की स्थिति देखते हैं तो खरीदी में न सिर्फ पहली प्राथमिकता उसे देते हैं बल्कि यह भी देखते हैं कि वह दुकान अन्य दुकानों से अधिक तेजी से सफल हो रही है । सारी भीड बारगेनिंग का मोह छोडकर खरीदी करने में उसी को प्राथमिकता देते दिखने लगती है । आपकी आजकी पोस्ट में आखिर अन्ना के आंदोलन में इतनी भीड जुटी तो जुटी कैसे ? वाले प्रश्न पर भी मेरी समझ में यही मनोविज्ञान चलता है और मेरी पोस्ट पर किस मिट्टी का टी. सी. है ये वाली आपकी जिज्ञासा पर भी मुझे इससे अलग कोई उदाहरण समझ में नहीं आता । जब अन्ना लोगों की नजरों में ईमानदारी का रोल माडल बन जाते हैं क्योंकि वहाँ मीडिया माध्यम उनके साथ जुड जाता है किन्तु ऐसे टी. सी. या वो रिक्शे वाले जो लाखों रु. के कीमती माल असबाब के बेग व अटेचियां ढूँढते हुए उनके वास्तविक मालिकों तक पहुँचाने अपना धंधा खोटी कर व जेब का पेट्रोल खर्च कर पहुँचाने पहुँच जाते हैं और बिना इनाम लिये लौट आते हैं ऐसे ही पागलों की तलाश (जो संख्या में चाहे जितने कम हों किन्तु हैं तो) में तो इस समय 100 में 99 बेईमान वाला हमारा पूरा देश लगा दिख रहा है या नहीं ?
सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय कार्यप्रणाली
निसंदेह ये मिडिया की जीत है , क्यूंकि वो भी सुधार चाहता है समाज में और हिस्सा है इस आन्दोलन का।
न्यू मीडिया की ताकत का अंदाजा सभी को लग गया..
यह क्षणिक न हो, बस..
न्यू मीडिया जनता की अपनी आवाज है तथा इसका प्रभाव व्यापक है, यह अन्ना को मिले समर्थन से साबित हो गया।
न्यू मीडिया को दरिया का वह सैलाब है जिसे बांध पाना कठिन ही नहीं नामुमकिन है।
जब हजारों हाथ जुटते हैं तो समुद्र पर पुल बन जाता है। काम वानर करते हैं नाम राम के नाम का और नल-नील का होता है।
सार्थक जानकारीपूर्ण अभिलेख.
आप 'पत्नी भक्त' की बातें कर रहें है.
इसमें भी आई टी मिडिया का ही तो हाथ है.
लगता है आप इस 'वाइरस' को फैला कर
वाइरस फीवर करके छोड़ेंगे,खुशदीप भाई.
न्यू मीडिया की बदौलत ही अन्ना जी को जन समर्थन मिला और उनकी हर एक बात आम व्यक्ति तक उसी रूप में पहुंची जिस रूप में उसे पहुंचना चाहिए था …आपने बहुत सटीक कहा है …आपका आभार
आने वाले समय में यह न्यू मिडिया ही तानाशाहों व भ्रष्ट शासकों का बैंड बजाएगा |
इस जनसमर्थन मे काग्रेस का सब से बडा हाथ हे, जिस ने हिन्दू मुस्लिम कुछ नही देखा सब को खुब लूटा ओर लोगो मे एक जवार भाटा अंदर ही अंदर जमा हे, जो कभी भी फ़ूट सकता हे, जब अन्ना हाजरे जी ने अनशन किया तो जिसे भी पता चला वो इसे काम्याब बनाने को उतावला था, बाकी काम आज की टेकनिक ने कर दिया, फ़ेस बुक, एमएस एम, एस एम एस, वा अन्य टेकनिक ने
मिश्र में हुस्नी का तख्ता पलटने हेतु इसी न्यू सोसियल मिडिया ने भूमिका निभाई | भारत में भी इसकी बानगी दिखाई दे गयी | आने वाला कल इसी न्यू मिडिया का है यह बात हमारे बिकाऊ मिडिया को भी समझ लेनी चाहिए और उन नेताओं को भी कि – मिडिया को तो ख़रीदा या मेनेज किया जा सकता है पर इस न्यू मिडिया को मेनेज करना व खरीदना असंभव है |
एकदम सच अन्ना के जनसमर्थन में न्यू मीडिया का बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका थी.