28 साल बाद भारत का वर्ल्ड कप…सचिन का महा-शतक (शतकों का शतक)…आज रात तक साफ़ हो जाएगा कि धोनी की सेना कपिल के जांबाज़ों का 1983 का चमत्कार दोहरा सकती हैं या नहीं…सचिन अपने होम ग्रांउड पर सेंचुरी ऑफ सेंचुरी बना कर वर्ल्ड कप से विदाई ले पाते हैं या नहीं…वैसे सचिन चाहें और जैसी उनकी फिटनेस और फार्म चल रही है, उससे वो बड़े आराम से ऑस्ट्रेलिया-न्यूज़ीलैंड में होने वाला 2015 का वर्ल्ड कप खेलकर जावेद मियांदाद का सबसे ज़्यादा वर्ल्ड कप खेलने का रिकार्ड भी तोड़ सकते हैं…सचिन ने इस बार अपना छठा वर्ल्ड कप खेलकर जावेद मियांदाद के रिकार्ड की बराबरी की है…लेकिन सचिन अगर और सब जैसे हो जाएं तो वो फिर सचिन ही क्यों…मेरी अपनी राय है कि सचिन जब भी रिटायरमेंट लेंगे, अपनी टॉप फार्म में ही लेंगे…जब सचिन से सब सवाल करें…Why ?…सचिन ये कभी नहीं सुनना पसंद करेंगे…Why not ?…
सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के हिमालय हैं…क्रिकेट के भगवान का दर्ज़ा किसी को भी आसमान में उड़ने का दंभ दे सकता है…लेकिन सचिन ने पैर हमेशा ज़मीन पर रखना सीखा है…
“IT’S VERY SIMPLE TO BE HAPPY, BUT IT’S VERY DIFFICULT TO BE SIMPLE”
यूथ आइकन के नाते सचिन अपनी ज़िम्मेदारियों को भी अच्छी तरह समझते हैं…इसलिए शराब का एड ठुकराने में उन्होंने एक सेंकंड की भी देर नहीं लगाई…भले ही इसके एंडोर्समेंट के लिए बहुत मोटी रकम ऑफर की जा रही थी…लेकिन सचिन के लिए युवाओं पर पड़ने वाला नेगेटिव इफेक्ट ज़्यादा अहम था…मुझे लगता है, इस तरह की हस्तियां किसी भी काम से पहले अपने से ही सवाल करती हैं…उनके अपने नैतिकता के मानदंडों के हिसाब से वो काम करना सही है या नहीं…फिर दिल से उन्हें जो आवाज़ मिलती है, उसी को अमल में लाते हैं…
सचिन अपने पिता रमेश तेंदुलकर के साथ |
सचिन खिलाड़ी तो लाजवाब है हीं लेकिन इतना ऊंचा उठने के बाद भी सादगी पसंद और तड़क-भड़क से दूर रहने वाले इनसान है तो इस तरह की परवरिश के लिए ज़रूर उनके माता-पिता को भी पूरा श्रेय दिया जाना चाहिए…सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर मराठी कविता के जाना-माना नाम रहे हैं…उपन्यासकार होने के साथ उनकी पहचान मराठी साहित्य के श्रेष्ठ प्रोफेसर की भी रही है…खुद इतने बड़े स्कॉलर होने के बावजूद उन्होंने सचिन पर कभी पढ़ाई के लिए ज़ोर नहीं डाला…सचिन की क्रिकेट के प्रति दीवानगी में वो कभी बाधा नहीं बने…वो बच्चों को अपना करियर खुद चुनने की आज़ादी देने के प्रबल हिमायती थे…यही वजह है कि सचिन के कोच रमाकांत आचरेकर की सलाह पर उन्होंने सचिन का स्कूल बदलने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाई…सचिन मुंबई में पहले इंडियन एजुकेशन सोसायटी के न्यू इंग्लिश स्कूल में पढ़ते थे…लेकिन वहां न तो क्रिकेट का ग्राउंड था और न ही कोई कोच…रमाकांत आचरेकर की सलाह पर ही सचिन को 11 साल की उम्र में शारदा आश्रम विद्यामंदिर स्कूल में डाला गया…वहीं से सचिन ने बैटिंग में ऐसे धमाल करने शुरू किए कि फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा…
सचिन के पिता का 66 साल की उम्र में जब निधन हुआ, उस वक्त सचिन इंग्लैंड में 1999 का वर्ल्ड कप खेल रहे थे…सचिन कुछ भी भूल जाएं लेकिन हर सेंचुरी पर आसमान की तरफ़ देखकर पिता को नमन करना नहीं भूलते…और अगर सचिन को कल भी ऐसा करने का मौका मिलता है तो रमेश तेंदुलकर जिस लोक में भी होंगे, बेटे की महा-मानव वाली उपलब्धि देखकर सबसे ज़्यादा खुश होंगे…सचिन के पिता अपने ज़माने के प्रसिद्ध संगीतकार सचिन देव बर्मन के भी बड़े मुरीद थे…उन्हीं के नाम पर उन्होंने बेटे का नाम सचिन रखा…अब उन्हीं सचिन देव बर्मन का खुद की आवाज़ में संगीतबद्ध किया गया ये गाना सुनिए और फिर बताइए क्या इसका एक-एक शब्द सचिन तेंदुलकर के व्यक्तित्व पर सटीक नहीं बैठता….
कहां रे हिमालय ऐसा,
कहां ऐसा पानी,
यही वो ज़मीन,
जिसकी दुनिया दीवानी…