पहले अच्छी ख़बर…
दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव मे जन्मे, सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़े और अब अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर-कैंसर फिजीशियन डॉक्टर सिद्धार्थ मुखर्जी को प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार से नवाज़ा गया है…मुखर्जी को ये पुरस्कार कैंसर पर उनकी चर्चित पुस्तक ‘The Emperor of All Maladies: A Biography of Cancer’ के लिए दिया गया…पुलित्जर पुरस्कार राशि के रूप में लेखक को 10,000 डॉलर की राशि दी जाती है…इस पुस्तक में मुखर्जी ने सदियों पहले कैंसर की स्थिति के बारे में प्रकाश डाला है और बीमारी के ऐतिहासिक परिदृश्य को आज के दौर के साथ समेटने की कोशिश की है… मुखर्जी ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और हारवर्ड मेडिकल स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ाई की है…
40 साल के मुखर्जी का कहना है- “भारत समेत दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में कैंसर आश्चर्यजनक रूप से बढ़ रहा है…भारत में कैंसर के बढ़ रहे मामलों से निपटने के लिए धूम्रपान निरोधी एक मजबूत अभियान चलाया जाना चाहिए…साथ ही स्तन कैंसर की जांच को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए…मुखर्जी की इस उपलब्धि से दिल्ली में उनके पिता सिबेश्वर मुखर्जी और माता चंदाना मुखर्जी बहुत खुश हैं…मुखर्जी से पहले सिर्फ तीन भारतीयों को ही पुलित्जर पुरस्कार मिला था-1937 में पत्रकारिता के लिए गोबिंद बिहारी लाल, 2000 में फिक्शन राइटर झुंपा लाहिरी और 2003 में पत्रकार गीता आनंद…डॉक्टर मुखर्जी को इस उपलब्धि के लिए बहुत बहुत बधाई…
अब बुरी ख़बर…
पानीपत में कल रात दो छोटे बच्चों की मां सोनी खाना बनाते वक्त बुरी तरह झुलस गई…नब्बे फीसदी से ज़्यादा जली सोनी को पानीपत ज़िला अस्पताल ले जाया गया…वहां बस नाम की फर्स्ट एड देने के बाद उसे रोहतक पीजीआई के लिए रेफर कर दिया गया…अब रात के वक्त सोनी को इस हालत में उसका पति रामबीर रोहतक कैसे ले जाता…उसने ज़िला अस्पताल के स्टॉफ़-डॉक्टरों से गुहार लगाई कि सरकारी एंबुलेंस से सोनी को रोहतक पहुंचा दिया जाए…सोनी दो घंटे तक अस्पताल के बाहर दर्द से चीखें मारती रही लेकिन ज़िला अस्पताल के कर्ताधर्ताओं का दिल नहीं पसीजा…सोनी का चार साल का मासूम बेटा ड्रिप की बोतल हाथ में पकड़े बैठा था…अस्पताल वालों को जब याद दिलाया गया कि गरीब मरीजों के लिए सरकारी एंबुलेंस की सुविधा जुटाई जाती है तो उलटे रामबीर से कहा गया कि वो पहले साबित करे कि वो गरीब है…साथ ही गरीबों को दिए जाने वाला बीपीएल कार्ड भी दिखाए…एक फैक्ट्री में पेंटर रामबीर काफी देर तक हाथ-पैर जोड़ता रहा…बाद में पानीपत के एक धर्मार्थ जनसेवा संस्थान की एंबुलेंस से सोनी को रोहतक पहुंचाया गया…वहां अब वो आईसीयू में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही है…
आपने दोनों ख़बरें पढ़ लीं…दोनों का आपस में कोई जुड़ाव नहीं है…लेकिन अगर ये दोनों ख़बरें जुड़ें तो भारत के हेल्थ सेक्टर की तस्वीर में क्या सुधार नहीं आएगा…डॉक्टर मुखर्जी जब भारत में थे तो उन्होंने एक कैंसर मरीज़ को अपने घर तक में ठहरा लिया था…लेकिन अब डॉक्टर मुखर्जी भारत के नहीं अमेरिका के नागरिक हैं…उनकी किताब से बेशक भारत समेत दुनिया भर के लोगों को लाभ मिलेगा…लेकिन कैंसर फिजीशियन के नाते वो अपनी सेवाएं अमेरिका में ही दे रहे हैं…यही भारत की त्रासदी है…डॉक्टर मुखर्जी ने भारत के ही मेडिकल कॉलेज से डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद अमेरिका का रुख किया होगा…निश्चित रूप से उन्होंने अमेरिका में आगे पढ़ाई और करियर के अच्छे प्रोस्पेक्ट देखते हुए ही अमेरिका जाने का फैसला लिया होगा…ऐसे प्रतिभावान को अमेरिका भी हाथों-हाथ लेने में देर नहीं लगाता…यहां कहने का तात्पर्य यही है कि जो पौधा भारत में परवान चढ़ा और जब उस पर फल लगने का वक्त आया तो अमेरिका उसका लाभ उठाने लगा…क्या डॉक्टर मुखर्जी और विदेशों में बसे दूसरे होनहार डॉक्टरों की आज भारत को ज़्यादा ज़रूरत नहीं है…कैंसर के पीड़ितों की भारत में संख्या बढ़ रही है तो यहां कैंसर के चिकित्सक भी बड़ी संख्या में चाहिए…कैंसर का महंगा इलाज गरीबों के बस से बाहर की बात है…तो क्या डॉ मुखर्जी जैसे रहमदिल डॉक्टर के भारत आने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा…बेशक अमेरिका जैसी सुख-सुविधाएं यहां नहीं मिलेंगी…लेकिन सम्मानजनक जीवन जीने के लिए यहां भी मौके कम नहीं है…
ऊपर पानीपत में सोनी की आपबीती मैंने इसीलिए सुनाई कि यहां गरीबों के साथ किस तरह का अमानवीय व्यवहार किया जाता है…अगर डॉक्टर मुखर्जी जैसे डॉक्टर भारत में होंगे तो कैंसर से पीड़ित कुछ गरीबों को तो राहत मिलेगी…बूंद-बूंद से सागर बनता है…बस डॉक्टर मुखर्जी जैसी प्रतिभाओं को ज़रूरत है भारत के लिए कुछ करने का जज़्बा दिखाने की…यकीन मानिए यहां आकर गरीबों के चेहरे पर खुशी लाने का अहसास पुलित्जर पुरस्कार से कहीं बड़ा होगा…
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