
एक ख़बर पढ़ कर मन व्यथित है। ताज्जुब भी है कि इस ख़बर पर अधिक लोगों का ध्यान क्यों नहीं गया। ख़बर भारतीय सेना में शामिल प्रशिक्षित कुत्तो के बारे में है। बम हो या नशीले पदार्थ, सूंघ कर पहचानना। घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करना। युद्धकाल हो या शांतिकाल या फिर कोई प्राकृतिक आपदा, ये ट्रेंड डॉग्स पूरे जी-जान से देश सेवा में लगे रहते हैं। ये दायित्व निभाने में सेना के घोड़े भी पीछे नहीं रहते। लेकिन जैसे ही ये कुत्ते या घोड़े सेवा से रिटायर होते हैं तो इनके साथ जो होता है, वो बहुत हिला देने वाला है।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में सेना ने कहा है कि कुत्तों और घोड़ों
को रिटायरमेंट के बाद इच्छामृत्यु (?) दे दी जाती है। यानी बिना दर्द के मौत की नींद सुला देना। यही बर्ताव उनके साथ ड्यूटी में रहते हुए तब भी किया जाता है जब ये पता चल जाए कि वे एक महीना से अधिक समय तक अनफिट रहेंगे।
को रिटायरमेंट के बाद इच्छामृत्यु (?) दे दी जाती है। यानी बिना दर्द के मौत की नींद सुला देना। यही बर्ताव उनके साथ ड्यूटी में रहते हुए तब भी किया जाता है जब ये पता चल जाए कि वे एक महीना से अधिक समय तक अनफिट रहेंगे।
सेना के जवाब में ये कहा गया है- “सेना के घोड़ों और कुत्तों को ड्यूटी में प्रदर्शन के दौरान उनकी फिटनेस से आंका जाता है। जो पशु एक महीने से अधिक समय तक सक्रिय सेवा के लिए फिट नहीं पाए जाते उन्हें मानवीय Euthanasia (इच्छामृत्यु) से हमेशा के लिए सुला दिया जाता है।“
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि कुत्तों को इस तरह मारने की दो वजह हो सकती हैं- एक तो इनके सेवा में रहते हुए इनका रखरखाव बहुत खर्चीला होता है। दूसरा इन्हें संवेदनशील ठिकानों की जानकारी होती है, इसलिए उनके दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इन्हें आम नागरिकों के हवाले कर दिया जाए तो इनकी क्षमताओं का ग़लत इस्तेमाल भी हो सकता है।
भारतीय सेना लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड और बेल्जियन शेफर्ड डॉग्स को कमीशन करती है। वेटेनरी कॉर्प्स मेरठ तथा चंडीगढ़ स्थित नेशनल ट्रेनिंग सेंटर फॉर डॉग्स एंड एनिमल में ट्रेनिंग के बाद इन्हें सेना में शामिल किया जाता है।
अब कुत्तों और घोड़ों के साथ रिटायरमेंट या अनफिट होने पर इस तरह का बर्ताव हैरान करने वाला है।
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से भी इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि इन बेजुबानों के साथ गोलाबारूद के खाली खोलों जैसा व्यवहार करना अति दुर्भाग्यपूर्ण है।
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से भी इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि इन बेजुबानों के साथ गोलाबारूद के खाली खोलों जैसा व्यवहार करना अति दुर्भाग्यपूर्ण है।
कुत्तों और घोड़ों को इस तरह की ‘इच्छामृत्यु’ देने पर कुछ सवाल ज़ेहन में उठना लाज़मी है-
1. प्रीवेंशन ऑफ क्रूएल्टी टू एनीमल एक्ट कहता है कि किसी भी पशु को तब तक नहीं मारा जा सकता है जब
तक कि उसे बचाने की संभावना पूरी तरह खत्म हो गई हो और वो अत्यधिक पीड़ा में हो। सेना के कुत्तों और घोड़ों को रिटायरमेंट के बाद मौत की नींद सुला देने पर ये एक्ट क्या कहता है?
तक कि उसे बचाने की संभावना पूरी तरह खत्म हो गई हो और वो अत्यधिक पीड़ा में हो। सेना के कुत्तों और घोड़ों को रिटायरमेंट के बाद मौत की नींद सुला देने पर ये एक्ट क्या कहता है?
2. ये दलील कि इन को बाहर छोड़ने या आम नागरिकों को सौंपने से इनके ग़लत इस्तेमाल का ख़तरा हो सकता है। इस संभावना से बचने के लिए इन्हें मार देने की जगह क्या और कोई विकल्प नहीं ढूंढा जा सकता है। क्या कोई ऐसा सेंटर नहीं बनाया जा सकता जहां इन बेज़ुबानों को रिटायरमेंट के बाद रखा जा सके। जहां वे अपनी प्राकृतिक मौत तक जी सकें। बेशक ये सेंटर सेना की निगरानी में ही रहे। क्या सिर्फ खर्च की वजह से इस विकल्प पर काम नहीं किया जा सकता। क्या इनके लिए हमारा कोई दायित्व नहीं जिन्होंने अपने प्राइम टाइम में पूरी मुस्तैदी के साथ सरहद और देश के भीतर अपनी ड्यूटी को अंजाम दिया। रिटायर या अनफिट होते ही दूध की मक्खी जैसा व्यवहार क्यों?
3. Euthanasia (इच्छामृत्यु) जैसे शब्द का इस्तेमाल क्यों? क्या ये बेज़ुबान खुद ऐसी इच्छा जताते हैं?
4. ये पशु विशेष तरह के दक्ष होते हैं, इन्हें सवेदनशील ठिकानों की जानकारी होती है, इसलिए इनके ग़लत इस्तेमाल की संभावना हो सकती है। अगर ये दलील इन बेज़ुबानों के लिए दी जा सकती है तो ये संभावना तो इनसानों के मामले में भी हो सकती है।
5. जिन्होंने अपना प्राइम टाइम ड्यूटी को पूरी मुस्तैदी से दिया, क्या रिटायरमेंट या अनफिट होने के बाद उनकी सम्मानजनक देखभाल देश का कर्तव्य नहीं?
आखिर में एक सवाल केंद्रीय मंत्री और पशु कल्याण पुरोधा मेनका गांधी से, आपका इस मुद्दे पर क्या कहना है?
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