-खुशदीप सहगल
नई दिल्ली (15 जुलाई 2025)|
बापू फौजा सिंह जी नहीं रहे. दुनिया के सबसे उम्रदराज़ मैराथन रेसर फौजा सिंह को 14 जुलाई को जालंधर में एक तेज़ रफ्तार कार ने टक्कर मार दी. उस वक्त फौजा सिंह अपने गांव ब्यास पिंड के बाहर पठानकोट-जालंधर नेशनल हाइवे पर टहल रहे थे. उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया. जहां उन्होंने आखिरी सांस ली. फौजा सिंह की उम्र 114 साल थी.
बताया जा रहा है कि फौजा सिंह दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे घर से चाय पीकर हाइवे किनारे सैर करने के लिए निकले थे. उनका घर हाईवे के किनारे पर ही है. वो सड़क पार कर दूसरी ओर जाने लगे तभी तेज रफ्तार कार ने टक्कर मारी. ये टक्कर इतनी भीषण थी कि फौजा सिंह चार से पांच फीट उछलकर बीच सड़क में जा गिरे. इससे उनके सिर में गहरी चोटें आईं जिससे काफ़ी खून भी बहा.
टक्कर मारने वाला तेज़ी से कार चलाते मौके से फरार हो गया. फौजा सिंह को ब्यास पिंड के ही कुछ युवकों ने सड़क किनारे घायल अवस्था में पाया और उन्हें उपचार के लिए जालंधर के श्रीमन अस्पताल ले गए. वहां पर उपचार के दौरान शाम करीब साढ़े छह बजे उन्होंने दम तोड़ा.
फौजा सिंह के पारिवारिक सदस्यों ने बताया कि जहां उनका घर है वहां सड़क की दूसरी ओर भी उनकी जमीन है. वहां उन्होंने कुछ जमीन एक ढाबे वाले को किराये पर दे रखी थी. वह अक्सर सैर करने के दौरान सड़क पार कर ढाबे वाले के पास भी चक्कर लगाते थे.
फौजा सिंह को टर्बन्ड टोनार्डो के नाम से भी जाना जाता था. फौजा सिंह ने 100 मीटर से लेकर 5,000 मीटर तक की दौड़ में कई विश्व रिकॉर्ड तोड़े हैं, जबकि लंदन, ग्लासगो, टोरंटो, हांगकांग में कई मैराथन दौड़ में बड़ी उपलब्धियां अपने नाम की हैं. फौजा सिंह ने 89 वर्ष की उम्र में मैराथन दौड़ना शुरू किया और लंदन मैराथन में छह घंटे चौवन मिनट में दौड़ पूरी की.फौजा सिंह ने अपने जीवन में कई अंतरराष्ट्रीय मैराथन में हिस्सा लिया और सिख संस्कृति को विश्व स्तर पर बढ़ावा दिया.
भारतीय मूल के ब्रिटिश मैराथन एथलीट फौजा सिंह का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को जालंधर, पंजाब के ब्यास पिंड में हुआ. एक किसान परिवार के चार बच्चों में सबसे छोटे थे. उनका बचपन आसान नहीं था; पतले और कमजोर पैरों के कारण वे पांच साल की उम्र तक चल भी नहीं पाते थे, जिससे लंबी दूरी चलना उनके लिए मुश्किल था. बड़े होकर, उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए खेती करना शुरू किया. 1992 में, अपनी पत्नी जियान कौर के निधन के बाद, वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड चले गए और पूर्वी लंदन में बस गए.
अगस्त 1994 में, अपने पांचवें बेटे कुलदीप को खोने के गहरे दुख से उबरने के लिए फौजा सिंह ने जोगिंग शुरू की. 2000 में फौजा सिंह जब 89 साल की उम्र में, उन्होंने दौड़ने को गंभीरता से लेने का फैसला किया. उसी साल, उन्होंने अपनी पहली पूर्ण मैराथन, लंदन मैराथन, 6 घंटे 54 मिनट में पूरी करके सुर्खियां बटोरीं. इस असाधारण उपलब्धि ने 90-प्लस आयु वर्ग में पिछले विश्व के सर्वश्रेष्ठ समय में 58 मिनट की कटौती की. फौजा सिंह को उनके निजी ट्रेनर हरमिंदर सिंह का लगातार समर्थन मिला.
फौजा सिंह का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ मैराथन समय 2003 टोरंटो वाटरफ्रंट मैराथन में आया, जहाँ उन्होंने ’90 से अधिक’ श्रेणी में 5 घंटे 40 मिनट में दौड़ पूरी की. अपनी प्रतिस्पर्धी दौड़ के अलावा, फौजा सिंह ने विभिन्न चैरिटी के लिए सक्रिय रूप से धन जुटाया.
2011 में, 100 साल की उम्र में, फौजा सिंह ने कनाडा के टोरंटो में बर्चमाउंट स्टेडियम में विशेष ओंटारियो मास्टर्स एसोसिएशन फौजा सिंह इंविटेशनल मीट में एक ही दिन में आठ विश्व रिकॉर्ड (एज-ग्रुप) बनाए. कनाडाई अधिकारियों द्वारा समयबद्ध, उन्होंने एक ही दिन में अपने आयु वर्ग के लिए पांच विश्व रिकॉर्ड तोड़े, जबकि बाकी तीन के लिए पहले कोई निशान नहीं थे, क्योंकि उनकी उम्र में किसी ने भी उन रिकॉर्डों का प्रयास नहीं किया था. उनके कुछ समय तो 95 वर्षीय आयु वर्ग के मौजूदा रिकॉर्डों से भी बेहतर थे.
16 अक्टूबर, 2011 को, फौजा सिंह मैराथन पूरी करने वाले पहले सौ साल से ऊपर की उम्र के व्यक्ति बन गए, उन्होंने टोरंटो वाटरफ्रंट मैराथन 8 घंटे, 11 मिनट और 6 सेकंड में पूरी की.
बापू फौजा सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि…
इस स्टोरी का वीडियो यहां देखें-