#MeToo का शोर, एक गंगापुत्र की मौत और राज कपूर…खुशदीप

2018:  स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रोफेसर जी डी
अग्रवाल)

 2011:  स्वामी निगमानंद


गंगा की धारा को अविरल और निर्मल
देखने के लिए दोनों ने प्राणों की आहुति दे दी…ऐसा करने से पहले दोनों ने आमरण
अनशन किया…जो देश के कथित कर्णधार हैं
, उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी…2011 में भी और
अब
2018 में भी…
 जो 2014 में गंगा मैया ने बुलाया हैजैसे बोल देकर, गंगा को साफ करने के बड़े बड़े
वायदे कर सत्ता में आए
, उन्होंने भी अनशन पर बैठे गंगापुत्रस्वामी सानंद की सुध लेना आवश्यक नहीं
समझा…
111 दिन के अनशन के बाद स्वामी सानंद ने ऋषिकेश के
एम्स में
11 अक्टूबर की दोपहर दम तोड़ दिया…
22 जून से हरिद्वार के उपनगर कनखल
में अनशन पर बैठे स्वामी सानंद ने
9 अक्टूबर से जल का भी
त्याग कर दिया था…उनका स्वास्थ्य तेजी से गिरने पर पुलिस-प्रशासन ने उन्हें अनशन
स्थल से उठाकर ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में भर्ती करा दिया था…



स्वामी सानंद की तपस्या के साथ जैसा
हुआ वैसा ही कुछ स्वामी निगमानंद के साथ भी हरिद्वार में ही
2011 में हुआ था…(उस पर मैंने ‘देशनामा’ पर 14 जून 2011 को लिखा था, वो आप यहां विस्तार से पढ़ सकते हैं)…
गंगा के लिए स्वामी सानंद के प्राणों
के बलिदान के बाद एक-दो दिन शोर मचेगा ठीक वैसे ही जैसे कि
2011 में स्वामी निगमानंद के दुनिया से जाने के बाद मचा
था…फिर सब ढर्रे पर आ जाएगा…
#MeToo के खुलासों के बीच स्वामी
सानंद के अनशन पर हमारे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की नज़र भी जाती तो जाती
कैसे…आखिर ये कौन सोचता कि स्वामी सानंद के अनशन के दौरान ही उनकी बातो को सुनने
के लिए सरकार पर दबाव बनाया जाता…
7 साल पहले स्वामी निगमानंद चले
गए…अब स्वामी सानंद चले गए…गंगा वैसी ही मैली की मैली है…सरकार के करोड़ों
करोड़ खर्चने के दावों के बाद भी…
ये संयोग है या दुर्योग, राज कपूर ने अस्सी के दशक में अपने निर्देशन में जो
आखिरी फिल्म
‘’राम तेरी गंगा मैली’’ बनाई
थी
, उसका थीम आज देश में गंगा और नारी को लेकर जो मौजूदा
परिदृश्य है
, उसमें बड़ा प्रासंगिक नज़र आता है….
राज कपूर खुद निर्विवाद नहीं
रहे…अपनी फिल्मों की हीरोइनों से उनके कथित संबंधों को लेकर बॉलिवुड की फिजा में
कई तरह के किस्से तैरते रहे…लेकिन राज कपूर ने
‘’राम तेरी गंगा मैली’’ में नारी के शोषण की जो तुलना
गंगा के मैली होने से की
, वो बेमिसाल थी…गंगा अपने उद्गम
स्थल गोमुख (गंगोत्री) से निकलती है तो दूध की तरह उजली होती है…लेकिन बंगाल में
गंगा सागर में आकर मिलने से पहले इनसानों के पाप धोते धोते इतनी मैली हो जाती है
कि किसी बड़े नाले के समान हो जाती है..
राज कपूर ने इसकी अनेलजी (Analogy)  के
लिए फिल्म की नायिका मंदाकिनी का नाम फिल्म में
गंगा रखा”…देवभूमि की रहने वाली नायिका को मैदानी इलाके में आने पर किस किस तरह के
शोषण का सामना करना पड़ता है
, इसे राज कपूर ने गंगा नदी के
गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक के प्रवाह से जोड़ा था…
#MeToo  पर चिंतन के इस दौर में ये भी शाश्वत सत्य है….गंगा वैसे ही मैली
है…इलाके ग्रामीण हों या शहरी
, नारी को अब भी शोषण और
भेदभाव का सामना करना पड़ता है…
और गंगा को अविरल और निर्मल देखने की
चाहत में निगमानंदों और सानंदों को अनशन के बाद ऐसे ही मौत को गले लगाना होता
है…
#हिन्दी_ब्लॉगिंग