Lavish Lucknow…मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में है…खुशदीप

क्या किसी शहर की तहज़ीब बदल सकती है, मिजाज़ बदल सकता है…क्या वक्त किसी शहर को भी बदल सकता है…

नखलऊ…मुआफ़ कीजिए लखनऊ…नाम लेते ही दिल को कैसा सुकून मिलता है…बातचीत का वो शऊर जो गैर से गैर को भी अपना बना ले…अवध की शाम…किस्सागोई की महफ़िलें…

लेकिन सत्ता की धमक कैसे किसी शहर को अपने आगोश में लेती है, यही आपको आज इस पोस्ट में दिखाता हूं दो वीडियो के ज़रिए…

लेकिन पहले दिल को चीर देने वाले सिएटल, अमेरिका में बसे अभिनव शु्क्ल के ये अल्फाज़…

जिनके अपनों की कब्रें हैं,
फूल चढ़ा लेने दो उनको,
जब झगड़ा था, तब झगड़ा था,
अब कोई टकराव नहीं है,
मौसम बदल चुका है सारा,
मज़ारों पर जूता चप्पल,
मेहमानों पर ईंटा पत्थर,
ये लखनऊ की तहज़ीब नहीं है…

पहले देखिए वो लखनऊ जो हमारे दिलों में बसा है…

अब देखिए मायावती का लखनऊ…

वाकई लखनऊ बदल गया है…बुत ही बुत नज़र आते हैं…इनसान कहीं छुप गए हैं या छुपा दिए गए लगते हैं…

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Khushdeep Sehgal
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Ragini
14 years ago

Phir bhi…."Khuda aabad rakhe Lucknow ko"………

Pankh Initiative
14 years ago

humari peedi ne toh lucknow k yeh shakal dekhe nahi toh bahut shukriya hume khoobsurat aitihāsika lucknow k ser karane k liye.

डॉ टी एस दराल

यू पी का बौद्धिकरण हो रहा है ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

हम्म
जब मुग़लों ने वो बिल्डिंगें बनावाई होंगी तो भी ब्लागपोस्टें यूं ही लिखी गई होंगी…

प्रवीण पाण्डेय

सच में बहुत बदलाव हुआ है।

मुकेश कुमार सिन्हा

lucknow ghumna achchha laga..

Unknown
14 years ago

deshnama par lakhnaw ka butkhana

………………………………………

jai baba banaras…..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

लखनऊ अभी भी अच्छा है..

Khushdeep Sehgal
14 years ago

@अजित जी,
आपकी टिप्पणी मे्ं ही तो जवाब छुपा है…

विकास बुतों का हुआ है, इनसानों का नहीं…

जय हिंद…

अजित गुप्ता का कोना

खुशदीपजी, तुलना समझ नहीं आयी।

वाकई लखनऊ बदल गया है…बुत ही बुत नज़र आते हैं…इनसान कहीं छुप गए हैं या छुपा दिए गए लगते हैं…
यह वाक्‍य भी समझ नहीं आया। पहले वीडियो में भी बुत ही बुत हैं और दूसरे में भी बुत हैं लेकिन साथ में इसान भी दिखायी दे रहे हैं। इन वीडियो को देखकर तो नहीं कह सकते कि मायावती ने विकास नही किया। भरपूर विकास दिखायी दे रहा है। बाकि की माया तो माया ही जाने।

Rakesh Kumar
14 years ago

वो लखनऊ के उस सरदार का क्या हुआ खुशदीप भाई.
माया महा ठगनी हम जानी,माया का ही तो सब खेल है,
लेकिन,सिकंदर भी आये,कलंदर भी आये,ना कोई रहा है न कोई रहेगा.
लखनऊ की तहजीब और दिल को कौन बदल सकता है.

Arvind Mishra
14 years ago

नोस्टाल्जिया और कन्टमप्ररी का कंट्रास्ट मुखर है -आभार इस अनुभव के लिए १
और हाँ ,काफी दिनों से लखनऊ पर नजरे हैं जनाब की ..खरीदने का इरादा तो नहीं है ? 🙂

अरुण चन्द्र रॉय

ऐसे ही सारी दुनिया बुत हो जाएगी…

Udan Tashtari
14 years ago

कभी बचपन के चन्द सुकूनी लम्हात गुजारे थे उस लखनऊ में…फिर कुछ भागते दौड़ते तीन साल पहले गुजरे उसी लखनऊ से…बस, नाम एक सा रहा…और कुछ नहीं.

Sushil Bakliwal
14 years ago

समझ नहीं आ रहा है शहरे लखनऊ को सलाम करें या मायावती की माया को ।

दिनेशराय द्विवेदी

एक नगर था। जीते जागते लोग रहा करते थे वहाँ। एक जादूगर आया, उस ने छड़ी घुमाई और सारे आदमी औरतें पत्थर के हो गए …

संजय भास्‍कर

hum to kabhi gaye hi nahi
par jaane ki chahat bahut hai

Satish Saxena
14 years ago

देशनामा पर लखनऊ की चर्चा और महफूज़ का नाम नहीं…..??
खुदा महफूज़ रखे हर बला से…

ब्लॉ.ललित शर्मा

हमने देखे हैं सारे बुत और बुत खाने लखनऊ के, मायावती जी के सौजन्य से।

मुस्कुरा रहे हैं कि कभी हम लखनऊ में थे।

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