Goodbye आजतक/ इंडिया टुडे…Love You…खुशदीप

जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-ओ-शाम…

यही जीवन है… किसी आरंभ के बाद अंत…और किसी अंत के बाद आरंभ…

आजतक/इंडिया टुडे के साथ मेरी
5 साल की पारी का अंत ग्रुप से न्यूज़ एडिटर के तौर पर रिटायरमेंट के साथ गुरुवार को बड़े खुशनुमा माहौल
में हुआ.

आज तक के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल और मैं फेयरवेल के दौरान

किसी संस्थान के साथ काम करते करते जुड़ाव हो जाना स्वाभाविक है. जो आपका लंबे
समय से रूटीन चला आ रहा हो, उससे एक झटके में अलग हो जाना आसान नहीं होता. जिन
साथियों से दिन-रात का उठना बैठना हो, ख़बरों के लिए
गरमा-गरम बहस करना हो,
फिर अगले ही पल माहौल को हल्का करते हुए एक दूसरे से चुटकी लेना हो,
सब दिनचर्या का हिस्सा
हो जाता है.

फिर एक दिन आपको पता चलता है कि आप जिस माहौल को दिन-रात जीते चले आ रहे
थे, आप उसका हिस्सा नहीं रहे. फिर विदाई का वक्त आता है. उसी वक्त आप सही तरह से
जान पाते हैं कि आपके साथियों के मन में आपके लिए क्या राय थी. आपके बॉसेज आपके
बारे में क्या सोचते थे. ये सब आप तब नहीं जान पाते जब आप रोज़ साथ काम कर रहे
होते हैं.

गुरुवार को मुझे ऐसा ही सुखद अनुभव हुआ. फिल्म सिटी नोएडा में
मीडियाप्लेक्स में मेरी विदाई पर बॉस राहुल कंवल
( न्यूज डायरेक्टर आजतक/ इंडिया टुडे) की अगुआई में साथियों ने मेरे
सम्मान में लंच रखा.

आज तक के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल और मैं फेयरवेल के दौरान

 सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा गया बस खाते हुए ही चेहरे
से मास्क उतारे गए.


अभिजीत सर, सीमा गुप्ता, स्नेहांशु शेखर, हरमीत शाह सिंह, पाणिनि आनंद समेत
वरिष्ठ साथियों ने मेरे बारे में जो भी कहा, उसके लिए दिल से उनका शुक्रिया.

आज तक/इंडिया टुडे के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ फेयरवेल के दौरान

इस अवसर मुझे भी बोलने के लिए कहा गया. मैंने सबसे पहले अपनी टैगलाइन का
जिक्र किया.
दिल की बात दिल से कही
जाए तो लोगों के दिलों तक जाती है.

युवा पत्रकारों के लिए मेरी बात

फिर मैंने युवा पत्रकार साथियों के लिए कहा कि किसी भी स्टोरी को डील करते वक्त
एक अच्छे शेफ को ध्यान में रखना चाहिए. अच्छा शेफ बस डिश को तैयार कर देने में ही
अपने काम की इतिश्री नहीं करता. उसका काम डिश के लिए रॉ मैटीरियल से ही शुरू हो
जाता है. वो चेक करता है कि ये बढ़िया क्वालिटी का हो. डिश तैयार हो जाने के बाद
भी शेफ की पैनी नजर रहती है कि डाइनिंग टेबल पर उसे किस सलीके के साथ पेश किया जा
रहा है क्योंकि प्रेजेंटेशन भी बहुत मायने रखता है. इसी तरह पत्रकार को अपनी
स्टोरी को शुरू से आखिर तक ओन (
Own) करना चाहिए.

वरिष्ठों के लिए मेरा आग्रह

इसके बाद मैनेजिंग पोजिशन वाले बॉसेज के लिए भी मैंने एक बात रखी. कहा-
कोयला और हीरा दोनों कार्बन (
C’) कैमिकल एलीमेंट के बने होते हैं बस दोनों में कार्बन की सीक्वेंस यानि
कार्बन चक्र का अंतर होता है. इसे बदल दिया जाए तो कोयला हीरा और हीरा कोयला में बदला
जा सकता है. हर आदमी में प्लस और माइनस दोनों होते हैं. अब ये काम लेने वाले पर है
कि वो कैसे प्लस अधिक निकलवा सकता है. अगर आप मछली से कहें कि पेड़ पर चढ़ जाए तो
ये संभव नहीं है.

इस लंच के आयोजन से पहले ही सीनियर्स और साथी सहयोगियों के मुझ तक मैसेज आ
चुके थे जिन्हें पढ़ कर लगा कि मेहनत सफल रही और ग्रुप में अपने काम को ठीक
ठाक अंजाम दे सका. चंद ऐसे ही मैसेज-

राहुल कंवल, न्यूज़ डायरेक्टर, आजतक/इंडिया टुडे

 

 सुप्रिय प्रसाद, न्यूज़ डायरेक्टर, TVTN

 

राहुल श्रीवास्तव, नेशनल अफेयर्स एडिटर , इंडिया टुडे टीवी


सचिन सिंह, सीनियर एडिटर, TVTN


 श्रीनारायण झा, सीनियर प्रोड्यूसर, TVTN

 

 

जैसे कि मैंने ऊपर
कहा कि हर आरंभ के बाद अंत होता है और हर अंत के बाद आरंभ. 

अब मेरा आरंभ क्या?

ऐसे में 1984 में आई
फिल्म
मशालके लिए जावेद अख्तर का लिखा और किशोर कुमार का गाया गाना याद आ रहा है.

लिए
सपने निगाहों में,

चला
हूँ तेरी राहों में,

ज़िन्दगी
आ रहा हूँ मैं…

 

कई
यादों के चेहरे हैं
, कई किस्से पुराने हैं,

तेरी
सौ दास्तानें हैं
, तेरे कितने फसाने हैं,

मगर
इक वो कहानी है
, जो अब मुझको सुनानी है

ज़िंदगी
आ रहा हूँ मैं…



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