सतीश सक्सेना: ब्लॉगिंग के दिलीप कुमार…खुशदीप

फिल्म इंडस्ट्री में दिलीप साहब से ऊंचा वकार ( कद) किसी का नहीं है…अदाकारी की यूनिवर्सिटी कोई है तो वो सिर्फ और सिर्फ दिलीप कुमार ही हैं…आज भी जब खाली होता हूं तो कोशिश यही रहती है दिलीप साहब की कोई यादगार फिल्म देखूं…शायद दिलीप साहब अकेले ऐसे कलाकार होंगे जिन्होंने अपनी पहली फिल्म से आज तक बालों का एक जैसा ही स्टाइल रखा…हां कॉस्ट्यूम या पीरियड फिल्मों में करेक्टर की डिमांड हुई तो उन्होंने विग ज़रूर लगाए…कल सतीश सक्सेना भाई जी की पुरानी पोस्टों को बांच रहा था…इन पोस्टों में अलग अलग फोटों में सतीश भाई की बानगी देखकर मुझे यकायक दिलीप साहब के दिलकश स्टाइल याद आ गए…ऐसे में सतीश भाई को ब्लॉगिंग का दिलीप कुमार न कहूं तो क्या कहूं…आप भी ज़रा इस फोटो फीचर में गोता लगाइए और फिर कहिए…के मैं झूठ बोल्या…
गिली-गिली छू, खेल होता है शुरू…

कसम से बस पैमाना ही है, अंदर निर्मल जल है…

सादगी भी कयामत की चीज़ होती है…

अंधेरे में जो बैठे है, ज़रा नज़र उन पर भी डालो, अरे ओ रौशनी वालों…



नहीं भई, मैं फिल्म ज़ंज़ीर का शेर ख़ान नहीं हूं…



मैं चुप रहूंगा…

ये जो चिलमन है, दुश्मन है हमारी…

लक्स सौंदर्य का कमाल…

जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें…शायद इनसान…

फोटो ऑफ द मिलेनियम…
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