अच्छा लगा ये जानकर संध्याकाल के प्रति ब्लॉगजगत सचेत है…कल अपनी पोस्ट देखो ! तुम भूल जाओगे (1) पर डॉ टी एस दराल सर और शिखा वार्ष्णेय की टिप्पणियां खास तौर पर अच्छी लगीं…
पहले डॉ दराल…
तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी !
बुढ़ापे में पति पत्नी ही एक दूसरे का सहारा होते हैं .
फिर सुनाई दे या न दे , याद रहे या न रहे
शिखा-
अगर साथ रहे तो कुछ गम नहीं ..परेशानी तो तब हो जब एक चला जाये.:(
वाकई इस स्टेज पर तो अगर कहीं ये गाना भी बज रहा हो कि ये इश्क इश्क है, इश्क इश्क, ये इश्क इश्क है, इश्क …वो अपनी धुन में सुनाई देगा…ये किश्न किश्न है, किश्न किश्न, ये किश्न किश्न है, किश्न …ज़ाहिर है इस उम्र में भक्ति भाव ज़्यादा जाग जाता है तो फिर तो यही सुनाई देगा न…
चलिए अब देखो ! तुम भूल जाओगे (2) कड़ी पर आते हैं…
एक बुज़ुर्ग दंपति दूसरे दंपति के घर डिनर पर गए…
खाने के बाद दोनों पत्नियां किचन में चली गईं…
टेबल पर दोनों बुज़ुर्ग पति ही बैठे रह गए…
पहला बुज़ुर्ग…कल रात को हम एक नए रेस्टोरेंट गए थे…बहुत ही बेहतरीन रेस्टोरेंट था….बड़ा अच्छा अनुभव रहा…मैं तो कहूंगा, आप दोनों भी एक बार ज़रूर वहां होकर आओ..
दूसरा बुज़ुर्ग…क्या नाम था उस रेस्टोरेंट का…
पहले बुज़ुर्ग ने रेस्टोरेंट का नाम याद करना शुरू किया…नहीं याद आया…दिमाग़ पर बहुत ज़ोर देने के बाद भी वो रेस्टोरेंट के नाम को याद नहीं कर सके…काफ़ी देर बाद उन्होंने दूसरे ब़ुज़ुर्ग से कहा…उस फ़ूल का क्या नाम होता है जो प्यार का इज़हार करने के लिए दिया जाता है…अरे वही जिसका रंग लाल होता है, जिस पर कांटे भी होते हैं…
दूसरा बुज़ुर्ग…क्या तुम्हारा मतलब रोज़ से है….
पहला बुज़ुर्ग ….हां, हां….वही वही…
ये कहकर पहले बुज़ुर्ग टेबल पर बैठे बैठे ही मुड़े और किचन की ओर ज़ोर से आवाज़ देकर कहा…
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रोज़ !!! डार्लिंग…उस रेस्टोरेंट का क्या नाम था, जहां हम कल रात गए थे…
(ई-मेल पर आधारित)
क्रमश :
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चलिए अभी तो इश्क-इश्क को इश्क-इश्क की तरह ही सुन लीजिए…
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