कोई दोस्त है न रक़ीब है…खुशदीप


कोई दोस्त है न रक़ीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है
[ रक़ीब = दुश्मन ]
वो जो इश्क़ था वो जुनून था,
ये जो हिज्र है ये नसीब है
[ हिज्र = विरह ]
यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूं,
यहाँ कौन इतना करीब है
मै किस से कहूं मेरे साथ चल,
यहाँ सब के सर पे सलीब है

​क्या ये बात ब्लागिंग के शहर पर भी सटीक बैठती है…
राणा सहरी​ 

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