खुसदीप भाई हमेशा झूठ ही बोलते हैं…खुशदीप





भला हो ब्लॉग बुलेटिन का जिन्होंने मेरी
कल की पोस्ट पर सादर आभार और चर्चा के लिंक के साथ ये टिप्पणी की…

आज की ब्लॉग बुलेटिन जलियाँवाला बाग़ की यादें – ब्लॉग जगत के विवाद – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !

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चर्चा को बांचने गया तो वहां अपनी पोस्ट
के लिंक के नीचे एक और लिक देखा…शीर्षक मज़ेदार लगा…


उत्सुकतावश इस लिंक को खोला तो ये डॉ संतोष
कुमार यादव
अन्वेषक जी के ब्लॉग ‘खाली-पीली’ का था…मैं आभारी हूं डॉक्टर साहब का कि उन्होंने अपने ब्लॉग
की पहली पोस्ट ही मेरे
सफ़ेद झूठ पर लिखी…ये मेरा झूठडॉक्टर
साहब  की उन दो टिप्पणियों के बारे में था,
जो इन्होंने 12 अप्रैल को डॉ संतोष कुमार यादव और अन्वेषक दो अलग-अलग नामों से मेरी पोस्ट पर की थीं…ये दोनों टिप्पणियां ही बिना प्रोफाइल की गईं थीं…इनके ब्लॉग पर
आने पर पता चला कि डॉ संतोष कुमार यादव
अन्वेषक एक ही व्यक्ति
का नाम है…

वैसे कल  से ही डॉक्टर साहब ने मेरे फेसबुक वॉल पर फ्रेंड
रिक्वेस्ट भी भेज रखी है…लेकिन मैं उन्हीं की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार करता हूं,
जिनसे मैं परिचित होता हूं...डॉक्टर साहब के फेसबुक वॉल पर जाओ तो वहां इन्होंने अपना
नाम डॉ संतोष कुमार ही लिख रखा है…


मैं शुक्रगुज़ार हूं कि मेरे लिए डॉक्टर
साहब को कितनी मेहनत करनी पड़ी…बिना प्रोफाइल से दो-दो टिप्पणी करनी पड़ी…फिर  अपने ब्लॉग पर पहली पोस्ट भी लिखनी पड़ी…

ख़ैर आता हूं अब अपने ‘सफ़ेद झूठ’ पर…डॉक्टर  साहब का कहना है कि मैंने कल इनकी करीब दो  घंटे  के
अंतराल पर की गई टिप्पणियों को डिलीट कर दिया…यानि टिप्पणियां स्पैम में नहीं गई
थीं…डॉक्टर साहब ने अन्वेषक नाम से की गई दूसरी टिप्पणी का स्क्रीन शॉट भी ले लिया…मुझे
पौने चार साल ब्लॉगिंग करते हो गए, लेकिन स्क्रीन शॉट लेना नहीं सीखा…डॉक्टर साहब
ने  अपनी पहली पोस्ट में ही पूरी दक्षता के
साथ स्क्रीन-शॉट लगाया..यानि दूसरी टिप्पणी के साथ ही ये पूरी तैयारी के साथ बैठे थे
कि मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी आते ही उसका स्क्रीन शॉट लेना है…

स्पैम में जाने की वजह से इनकी पहली टिप्पणी
12121444मेरी पोस्ट से करीब छह घंटे और दूसरी टिप्पणी करीब चार घंटे गायब रहीं…इसी
को आधार बनाते हुए इन्होंने आज यानि 13 अप्रैल को पोस्ट लिखी…लेकिन मैने 12 अप्रैल
को रात को ही इंटरनेट खोलने पर इनकी दोनों टिप्पणियों को स्पैम से निकाल कर अपनी पोस्टपर प्रकाशित कर दिया था…इसके बाद ज़्यादा से ज़्यादा लोग डॉक्टर साहब की टिप्पणियों
को पढ़ सकें, इसके लिए बाकायदा एक पूरी नई पोस्ट भी बना दी…अब कुछ घंटे के लिए ही
टिप्पणियों को डिलीट करना था तो फिर मैं ये सारा टंटा क्यों करता…

अब आता हूं…एक तकनीकी पेंच पर…स्पैम
में जाने वाली कोई भी टिप्पणी कुछ सैंकड्स या मिनट के लिए पोस्ट पर दिखती ज़रूर है…शायद
तभी डॉक्टर साहब दूसरी टिप्पणी का स्क्रीन शाट ले सकें…पहली टिप्पणी का नहीं ले सके
क्योंकि पूरी तैयारी से नही बैठे थे…और जब तक कोई टिप्पणी फॉरएवर डिलीट ना की
जाए, उसका ब्लॉकेज का लिंक कॉमेन्ट-बॉक्स पर दिखता रहता है…और जो टिप्पणी फॉरएवर
डिलीट कर दी जाए, उसका कहीं नामों-निशान तक नहीं रहता…

एक संभावना और हो सकती है…उपरोक्त दोनों
टिप्पणियों को मैंने 12 अप्रैल को डिलीट कर दिया…लेकिन रात आते-आते मुझे पता चल
गया कि 13 अप्रैल को डॉक्टर साहब मेरी इस कारस्तानी पर अपनी पहली-पहली पोस्ट लिखने
जा रहे हैं…मेरा माथा ठनका और मैंने 12 अप्रैल की रात को ही  फॉरएवर डिलीट की गई दोनों टिप्पणियों को
जादू-मंतर से दोबारा बुलाया और अपनी पोस्ट पर प्रकाशित कर दिया…साथ ही इन्हीं
दोनों टिप्पणियों पर एक नई पोस्ट भी बना दी…

अब एक बात और…पौने चार साल की ब्लॉगिंग
में मेरा अपनी पोस्ट पर ऐसी टिप्पणियों को डिलीट करने का लंबा चौड़ा इतिहास रहा
है, जो मेरी मनमर्ज़ी की नहीं होती या जिनमें मेरी ज़रा सी भी आलोचना होती है…इस
बात की गवाही हर ब्लॉगर दे सकता है…

ते कि मैं झूठ बोलया…

(नोट- मैं बॉब्स पुरस्कारों के लिए एक
नामांकित ब्लॉग को सिर्फ वोट देने की अपील कर रहा हूं…इसका ये मतलब कैसे हो सकता
है कि मैं दूसरे नामांकित ब्लॉग्स का विरोध कर रहा हूं…विडंबना ये है कि कुछ लोग
अपने पसंद के ब्लॉग के लिए वोट करने की अपील से ज्यादा एक दूसरे नामांकित ब्लॉग के
विरोध पर ज़ोर दे रहे हैं…)


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