बताऊंगा, बताऊंगा…इतनी जल्दी भी क्या है…जिसे जल्दी है वो पोस्ट के आखिर में स्लॉग ओवर में अच्छी पत्नियों को ढूंढ सकता है…अब ढूंढते ही रह जाओ तो भइया मेरा कोई कसूर नहीं है…लेकिन पहले थोड़ी गंभीर बात कर ली जाए…बात एक बार फिर रुचिका की…क्या रुचिका के गुनहगार को सज़ा दिलाना इतना आसान है जितना कि शोर मच रहा है…
रुचिका गिरहोत्रा केस में घटनाक्रम तेज़ी से होने लगा है…उन्नीस साल तक जांच में जो नहीं हुआ वो पिछले नौ दिन से हो रहा है…देश के केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली कह रहे हैं कि रुचिका के गुनहगार को फांसी या उम्र कैद भी हो सकती है…लेकिन क्या ये इतना आसान है…अदालतें हमारी-आपकी सोच से नहीं चलतीं…अदालतों को ठोस सबूत चाहिए होता है….
आज रुचिका केस में दो अहम बातें हुईं…पहली, वीरप्पा मोइली का बयान और दूसरा, पंचकूला पुलिस ने रुचिका के परिवार की शिकायत पर दो एफआईआर दर्ज की हैं…रुचिका के परिवार को धमकाने की और रुचिका के भाई आशु को अवैध हिरासत में रखने और प्रताड़ित करने की…साथ ही सबूत मिटाने की भी धारा है…इनमें कोई भी धारा वो नहीं है जिस पर राठौर पर रुचिका को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बन सके…
आईपीसी की धारा 305 और 306 में खुदकुशी के लिए उकसाने की सज़ा का प्रावधान किया गया है…धारा 305 नाबालिग को खुदकुशी के लिए उकसाने पर लगती है…इसके तहत जुर्म साबित होने पर फांसी या उम्रकैद हो सकती है…वहीं 306 बालिग को खुदकुशी के लिए उकसाने पर लगती है…धारा 306 में दस साल की सज़ा हो सकती है…देश के कानून मंत्री का कहना है कि निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील में जाकर रुचिका को इंसाफ़ दिलाया जा सकता है…
अब यहां जनभावना से अलग हट कर तकनीकी तौर पर विशुद्ध कानूनी बात की जाए…रुचिका के गुनहगार राठौर को बचाने के लिए उनके क्या-क्या तरीके निकल सकते हैं…पहली बात तो राठौर को जिस धारा 354 में छह महीने की सज़ा और एक हज़ार रुपये जुर्माना सुनाया गया था वो छे़ड़छाड़ के अपराध से जुड़ी है…इस फैसले के खिलाफ ही अपील की जाए तो राठौर की सज़ा अगर बढ़ेगी तो मामूली तौर पर ही बढ़ेगी…अदालत के हाथ यहां बंधे हुए हैं…हां, अगर राठौर के ख़िलाफ़ नए सिरे से कड़ी सज़ा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत मामला दर्ज होता है तो राठौर के लिए फांसी, उम्रकैद जैसी सज़ा भी मुमकिन है…लेकिन यहां जिस बात का राठौर सबसे ज़्यादा फायदा उठा सकता है वो है अपराध को हुए बहुत अर्सा बीत जाना…रुचिका के परिवार या राठौर के खिलाफ गवाही देने आने वाले दिलेर लोगों से पूछा जा सकता है कि वो इतने साल ख़ामोश क्यों रहे…मान लीजिए अगर राठौर को दस साल की भी सज़ा मिलती है तो अपराध को उन्नीस साल हो गए हैं…इसलिए केस कालातीत होने की वजह से राठौर को सज़ा नहीं दी जा सकेगी...हां, राठौर एक ही सूरत में अपने अंजाम तक पहुंच सकता है…वो है नाबालिग को खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप अदालत में धारा 305 के तहत साबित हो जाए…यानि सज़ा फांसी या उम्रकैद हो…
और जहां तक अपराध को हुए लंबा समय हो जाने की बात है तो रुचिका का परिवार ये तर्क दे सकता है कि पहले वो डरा हुआ था…धमकियां मिलने की वजह से उन्हें अपनी जान जाने का ख़तरा था…अब हालात बदल गए हैं…इसीलिए इंसाफ़ पाने के लिए उनमे नए सिरे से हिम्मत जुटी है….सिर्फ इसी तर्क के आधार पर केस के कालातीत होने वाले पेंच को खारिज किया जा सकता है…
ये प्रश्न तो तब का है जब जांच करने वाले उन्नीस साल पुराने मामले में ईमानदारी और तत्परता से पुख्ता सबूत जुटा कर राठौर के खिलाफ चार्जशीट दायर करें और दिन-प्रतिदिन की सुनवाई के ज़रिए फास्ट ट्रैक कोर्ट रूचिका के गुनहगार को अंज़ाम तक पहुंचाए…यहां एक सवाल ये भी है कि अभियोजन को चार्जशीट दाखिल करने के लिए भी तीन या छह महीने की समयसीमा होती है…अगर तब तक चार्जशीट नहीं दाखिल हो पाती तो ये राठौर को क़ानून के शिकंजे से बचने के लिए सेफ पैसेज देने के समान होगा…
चलिए देखिए आगे आगे होता क्या है…जांच अधिकारियों ने लचर सबूत पेश किए तो अदालत में पहली सुनवाई में ही राठौर के खिलाफ मामला फुस साबित हो जाएगा…आपके जैसे मेरे भी मन में यही सवाल उमड़ रहा है कि कई दिग्गज वकीलों की सेवाएं लेकर राठौर बच तो नहीं निकलेगा…या फिर वाकई 16 साल से तड़प रही रुचिका की रूह को पूरा इंसाफ़ मिलेगा…
चलिए….उम्मीद पर दुनिया कायम है…दुनिया का ज़िक्र आया तो चलिए छोटे से क्यूट स्लॉग ओवर पर….
स्लॉग ओवर
अच्छी पत्नियां दुनिया के हर कोने (कॉर्नर) में पाई जानी चाहिएं…लेकिन करें तो करें क्या जनाब…बदकिस्मती से धरती पर कोई कॉर्नर ही नहीं है…दुनिया गोल जो ठहरी…
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आज मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग Mr Laughter पर है…
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