कल आधी रात को जर्मनी से राज भाटिया जी का फोन आया…बड़े सीरियस मूड में थे…कहने लगे कि कुछ ज़रूरी बात करनी है…मैं घबरा गया…अचानक ऐसा क्या हो गया…फिर भी हिम्मत करके बोला…बताइए राज जी, ऐसी क्या बात करनी है….राज जी ने सीधे काम की बात पर आते हुए कहा कि एक फिल्म बनाना चाहता हूं, उसी के बारे में डिस्कस करना है…मैंने कहा…मेरा अहोभाग्य, मुझे आपने इस क़ाबिल समझा…बताइए मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं…
राज जी ने अब विस्तार से अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताना शुरू किया…उन्होंने ये पहले ही साफ़ कर दिया वो हॉलीवुड स्टैंडर्ड की फिल्म बनाना चाहते हैं, इसलिए क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करेंगे…पैसा चाहे कितना भी लगे, वो फाइनेंस की कोई कमी नहीं आने देंगे…राज जी पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहते जा रहे थे…उन्होंने आगे साफ़ किया कि उनका इरादा ब्लॉगवुड के लिए शोले जैसी मास्टरपीस का रीमेक बनाने का है…क़ानूनी तौर पर रीमेक में कोई अड़चन ना आए, इसके लिए दिनेश राय द्विवेदी जी भाई अजय कुमार झा के साथ मिलकर सारी ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं…राज जी के मुताबिक उन्होंने फिल्म का भी सोच लिया है…‘ब्लॉगोले’…राज जी अच्छी बिज़नेस सोच वाले शख्स हैं…दरअसल उनकी योजना हॉलीवुड और बॉलीवुड की तरह ब्लॉगवुड को खड़ा करने की है…
राज जी ने मुझे साथ ही फिल्म की कास्टिंग का ज़िम्मा भी दे दिया…उन्होंने साथ ही ताकीद किया कि मल्टीस्टारर फिल्म बना रहे है, इसलिए उन्हें इसके लिए ब्लॉगवुड से टॉप स्टार ही चाहिए…राज जी ने ये कहकर और धर्मसंकट में डाल दिया कि उन्हें फिल्म की स्टारकास्टिंग एक दिन में ही चाहिए…’ब्लॉगोले’ की कास्टिंग पर मैंने तत्काल सोचना शुरू किया और अपने करीबियों से एक दो घंटे में ही अपने सुझाव भेजने का आग्रह किया…
पहला सुझाव ही मेरे लिए किसी बम फटने से कम नहीं था…ये सुझाव एक परिचित महिला से मिला…उनका कहना था कि भूल जाइए, शोले का रीमेक बनता हो तो इस फिल्म में कोई महिला कलाकार काम करेगी…मैंने पूछा कि ऐसा क्यों भई…जवाब मिला कि शोले की कास्टिंग में पचास फीसदी के अनुपात से महिला कलाकारों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था, इसलिए शोले का रीमेक बनता है तो कोई महिला उसमें काम नहीं करेगी...बात में दम था…शोले में महिला पात्र ही कितने थे…बसंती, राधा और मौसी…बस…
वाकई इस एंगल से तो कभी सोचा ही नहीं गया था…मैंने राज जी को फौरन ये जानकारी दी…राज जी ने कहा…कोई बात नहीं…’ब्लॉगोले’ तो बन कर ही रहेगी…चाहे फिल्म सारी मेल कास्ट को ही लेकर क्यों ना बनानी पड़े…राज जी ने आगे हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि आज से ठीक सौ साल पहले दादा साहेब फाल्के ने ‘राजा हरिश्चन्द्र’ बनाई थी तो उनके सामने भी यही दिक्कत आई थी…तब फिल्म मे तारामति का महिला पात्र उन्हें सालुंके नाम के एक पुरूष कलाकार से कराना पड़ा था…मैंने राज जी को समझाया कि ये सौ साल पहले का ज़माना नहीं है…आज के युग में ऐसा नहीं हो सकता…झट से दर्शक पहचान जाएंगे…राज जी ने कहा तो ठीक है हमारी ब्लॉगोले बिना महिला किरदारों के ही बनेगी…
चलिए एक बड़ी दिक्कत दूर हुई…अब आते हैं ब्लॉगोले की स्टार-कास्ट पर…सबसे बड़ा चुनौती का काम था…ब्लॉगोले के लिए गब्बर सिंह को ढूंढना…इस पर मशक्कत कर ही रहा था कि मेरी पिछली पोस्ट पर आई डॉ अरविंद मिश्र की इस टिप्पणी ने मेरा ध्यान खींचा…
अब गब्बर दो ही हो सकते हैं -ऐसा करते हैं अनूप शुक्ल जी ये पदवी मझे अता कर दें और मैं इसे उन्हें समर्पित!
अब मैंने इन दोनों नामों पर विचार किया तो कद-काठी के हिसाब से अरविंद जी में ही मुझे परफेक्ट गब्बर नज़र आया...लीजिए अरविंद जी ने खुद ही अपना नाम प्रपोज़ कर मेरा आधा काम आसान कर दिया…
इसके बाद जय और वीरू की जोड़ी के लिए ब्लॉगवुड से स्टार ढूंढने शुरू किए तो दो नाम बिजली की तरह जेहन में कौंधे…गुरुदेव समीर लाल और महागुरुदेव अनूप शुक्ल ….जय यानी धीर-गंभीर लेकिन वक्त आने पर गज़ब की कॉमेडी में भी सक्षम…इस पात्र के लिए समीर जी मुझे बिल्कुल फिट लगे…वीरू के मस्तमौला किरदार के लिए फुरसतिया मौज के महारथी अनूप शुक्ल से बेहतर और कौन हो सकता था…अब इस कॉस्ट पर राज जी ने सहमति की मुहर लगा दी तो मुझे सबसे ज़्यादा इंतज़ार उस क्लाईमेक्स सीन का रहेगा जहां गब्बर और वीरू की भिड़ंत होती है…डॉ अरविंद मिश्र और अनूप शुक्ल आमने-सामने लाइव…
तीन मुख्य पात्रों की मेरी चिंता तो ख़त्म हुई…लेकिन अभी एक और अहम किरदार बचा था…ठाकुर बलदेव सिंह का…अब ये यक्ष प्रश्न सामने था कि ब्लॉगवुड में ऐसा कौन है जो संजीव कुमार जैसी संजीदगी के साथ ही इस पात्र से न्याय कर सके…बहुत सोचा कुछ समझ नहीं आया…लेकिन फिर मेन्टॉस की तरह दिमाग़ की बत्ती जली…अरे बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा…ब्लॉगोले के ठाकुर साहब मेरे घर से बामुश्किल दो किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं…यानी मेरे और सबके अज़ीज़…बड़े भाई सतीश सक्सेना….
अब शोले फिल्म ही ऐसी थी कि इस में निभाया गया हर छोटा-बड़ा किरदार फिल्म के रिलीज़ होने के 38 साल बाद ही हर एक के दिलो-दिमाग़ में ताजा है…जैसे कि अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर….अबे जब हम नहीं सुधरे तो तुम क्या सुधरोगे...इसके लिए मैंने बहुत सोचा…इस रोल के लिए ‘हंसते रहो’ के राजीव तनेजा भाई से माकूल मुझे और कोई नज़र नहीं आया…
इसके बाद नंबर आया…सूरमा भोपाली का…वहीं सूरमा भोपाली...दो रुपये में पूरा जंगल खरीदोगे जनाब वाले...अब इस बेहतरीन करेक्टर से कौन न्याय कर सकता था…इसके लिए मेरी नज़र टिकी अपने ब्लॉगवुड के अन्ना भाई यानी अविनाश वाचस्पति पर…
चलिए अहम किरदार तो सारे हो लिए…लेकिन अभी सांभा, कालिया, रहीम चाचा, अहमद के पात्रों के लिए कास्टिंग बाकी है…इतना सन्नाटा क्यों है भाई वाले रहीम चाचा के लिए जी के अवधिया जी मुझे फिट नज़र आ रहे हैं…इन सब पात्रों के लिए या ऊपर मेरे सुझाये गये अहम किरदारों के लिए ब्लॉगवुड से और ज़्यादा दमदार आपके जेहन में हो तो फौरन अपना प्रस्ताव भेजिए…मुझे होली से पहले ही ब्लॉगोले की स्टारकास्ट फाइनल कर राज जी को जर्मनी भेजनी है…जिससे वो हॉलीवुड में अपने सलाहकारों से और टेक्निकल पाइंट्स डिस्कस कर सकें…
राज भाटिया प्रेजेंन्ट्स ‘ब्लॉगोले’
स्टारकास्ट….
ठाकुर बलदेव सिंह….सतीश सक्सेना
वीरू….अनूप शुक्ल
जय….समीर लाल
गब्बर सिंह…डॉ अरविंद मिश्र
जेलर…राजीव तनेजा
सूरमा भोपाली….अविनाश वाचस्पति
रहीम चाचा…जी के अवधिया
रामू काका…चंद्र प्रकाश
सांभा…संतोष त्रिवेदी (अर्चना जी को नीचे टिप्पणी में ये नाम सुझाने के लिेए साधुवाद)
कालिया…संजय झा (खुद उन्होंने सुझाव दिया)
अहमद…अंतर सोहेल (अदा जी का सुझाव ) या केवल राम (राज भाटिया जी का सुझाव ) या दीपक मशाल (मेरा सुझाव )
हथियारों का कबीलाई डीलर…ललित शर्मा
काशीराम…भारतीय नागरिक
वीरू की अंग्रेज़ी पर सवाल करने वाला ग्रामीण…गिरीश बिल्लौरे
……………….
राधा…हरकीरत हीर (खुद उनका अपना सुझाव)
मौसी…निर्मला कपिला जी ( राज भाटिया जी का सुझाव)
बसंती…कोई तैयार नहीं हुआ (अब लगता है अदा जी के सुझाव के अनुसार मुझे ही ये रोल करना पड़ेगा, जैसे दादा साहेब फाल्के ने भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र में तारामति के पात्र के लिेए पुरुष कलाकार सालुंके से अभिनय कराया था)
(होली पर निर्मल हास्य)
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