फरीदाबाद में ब्लॉगर्स मीट से लौट कर सबसे पहला काम पोस्ट पर टिप्पणियां देखने का किया…सोचा था आते ही सबसे पहले आपको ब्लॉगर्स मीट का आंखो देखा हाल सुनाऊंगा…लेकिन कुछ टिप्पणियां देखने के बाद मन कर रहा है पहले आइकन वाली पोस्ट को लेकर अगर कुछ गलतफहमी हैं, उन्हें दूर कर दूं…जहां तक ब्लॉगर्स मीट का सवाल है, वहां इतना कुछ हुआ, उसे एक पोस्ट में समेटना बड़ा मुश्किल काम है, फिर भी कोशिश करूंगा..अब धर्मसंकट में हूं पहले अपनी पिछली पोस्ट पर स्थिति साफ करूं या ब्लॉगर्स मीट का हाल सुनाने का आपसे किया गया वादा पूरा करूं…आखिर में इसी नतीजे पर पहुंचा कि आइकन पोस्ट पर दोबारा अपनी बात कहने का मसला कल तक टाल दूं, पहले आपको वहीं पढ़ाऊं, जिसका आप बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं….चलिए लीजिए पेश है ब्लॉगर्स मीट की आंखो देखी कहानी…
रात को देर से सोने के बावजूद सुबह जल्दी उठ गया…पत्नीश्री के बाज़ार के बताए कुछ काम थे…वो भी जल्दी-जल्दी पूरे कर दिए ताकि कोई शिकायत का मौका न बचे…तैयार हो गए, समस्या ये कि फरीदाबाद जाया कैसे जाए…हम तो चेतक की सवारी करते हैं (राणा प्रताप वाले चेतक नहीं बजाज वाले चेतक)…अब स्कूटर तो स्कूटर है…बदरपुर बार्डर पर जो जाम लगता है, उसे सोचकर अभी से पसीने आ रहे थे…तभी देवदूत की आवाज़ बन पत्नीश्री ने सुझाव दिया…आप ऐसा क्यों नहीं करते, पड़ोस वाले देशवालजी को आज आगरा जाना है…वो रास्ते में आपको फरीदाबाद उतार देंगे…बात जच गई..और आधे घंटे बाद हम देशवालजी के साथ कार मे हवा से बातें कर रहे थे…तब तक बारीश की हल्की फुहार भी पड़नी शुरू हो गई थीं…ब्लॉगर्स भाइयों से जल्दी ही साक्षात भेंट होने की बात सोच-सोच कर दिल गार्डन-गार्डन हो रहा था…अविनाश वाचस्पति जी ने सुबह साढ़े दस बजे का टाइम दिया था…लेकिन जाम से निकलते-निकलते साढ़े ग्यारह फरीदाबाद के मेन हाइवे तक ही पहुंचने में लग गए…मैंने हाइवे से ही देशवाल जी को आगरा के लिेए विदा किया और रिक्शा लेकर मार्डन स्कूल की तरफ बढ़ चला…स्कूल तक पहुंचते-पहुंचते 12 बज गए..स्कूल चल रहा था…मैंने स्कूल के एक सज्जन से साहित्य शिल्पी और ब्लॉगर्स मीट के बारे में पूछा तो उन्होंने एक हाल तक पहुंचा दिया…उस वक्त राजीव रंजन जी साहित्य शिल्पी के कार्यकलापों के बारे में स्लाइड शो के ज़रिए विस्तार से बता रहे थे…मैंने गेट के पास ही कोने की सीट पकड़ना बेहतर समझा…बहुत ढूंढने की कोशिश करता रहा कि कोई जाना-पहचाना चेहरा दिख जाए, लेकिन नाकामी हाथ लगी…दरअसल अविनाशजी से भी मुझे पहली बार मिलना था…बस उनके ब्लॉग पर फोटो ही देखी थी…लेकिन सिर्फ फोटो के सहारे ही किसी को पहचान लेना कितना मुश्किल होता है, ये आज पता चल रहा था…खैर राजीव रंजन की चर्चा में ही दिल लगाने की कोशिश की…लेकिन गूढ़ साहित्य की बातें अपने छोटे से भेजे में मुश्किल से ही घुसती हैं…तब तक राजीव जी मुख्य अतिथि- प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार ड़ॉ प्रेम जनमेजय जी को दो शब्द कहने के लिेए बुला चुके थे…प्रेम जी ने बड़े रचनात्मक ढंग से साहित्य शिल्पी की पहली वर्षगांठ को बाहर हो रही वर्षा के साथ जोड़ा…प्रेम जी ने कहा कि वर्षा की एक-एक बूंद साहित्य की सेवा में साहित्य-शिल्पी की ओर से किए जा रहे श्रम की एक-एक बूंद की प्रतीक है…प्रेमजी के बाद कार्यक्रम के सूत्रधार की ज़िम्मेदारी प्रसिद्ध व्यंग्य कवि दीपक गुप्ता ने संभाली…दीपक जी ने अपनी चुटकियों से उपस्थित जनों को खूब गुदगुदाया..दीपक जी ने बताया कि अब वो कुछ कवियों को आमंत्रित करेंगे, लेकिन इस अनुरोध के साथ कि कविता-पाठ को टेस्ट मैच न समझ कर वनडे या 20-20 की तरह लिया जाए…दीपक जी ने ये भी साफ किया कि कविता-पाठ के बाद ब्लॉगर्स भाइयों से मिलाया जाएगा…वैसे तब तक कुछ ब्लॉगर्स के चेहरों पर बेचैनी झलकने लगी थी…
ये बॉय वन, गेट थ्री वाला मामला जो होता जा रहा था..ब्लॉगर्स मीट के साथ साहित्य चर्चा और कवि सम्मेलन मुफ्त में…कुछ कवियों की दो-एक अच्छी पंक्तियां याद रही, पेश हैं आपके लिए…
डॉ सुभाष कक्कड़
वोट दूंगा, अवश्य दंगा
पहले गधे को घोड़ा तो हो जाने दो
पवन चंदन
एक प्रश्न है मेरा,
क्या तुमने कभी देखा है अंधेरा
योगेश समदर्शी
आप लाए थे तूफां से कश्ती निकाल के,
फिर ये विघटन की प्रक्रिया कहां से आई
आपके रहते महोदय, ये विकृतियां कहां से आईं
अनिल बेताब
दिल सभी का फूल की मानिंद खिलना चाहिए
जख्म हो चाहे किसी का दोस्त, सिलना चाहिए
मीनाक्षी
मां की अपेक्षा दुनिया
मेरे लिए छोटा सा रहस्य है
नमिता राकेश
कैसे-कैसे गुल खिलाता जा रहा है आदमी
आदमी से दूर होता जा रहा है आदमी
वेद व्यथित
नज़र बचा कर निकलना है, निकल जाओ
मैं आईना हूं, मेरी तो ज़िम्मेदारी है
अब्दुल रहमान मंसूर
हम शोहरत न खजाने के लिए लिखते हैं
सिर्फ तहज़ीब बचाने के लिए लिखते हैं
बंदिशें जब भी लगी उड़ानों पर
हम नज़र आए आसमानों पर
वीरेंद्र कंवर
इत्र कितना भी छिड़क लो गुलदानों पर
तितलियां नहीं आएंगी कागज़ के फूलों पर
आखिर में प्रसिद्ध कवि दिनेश रघुवंशी सस्वर कविता सुनाकर समारोह की जान बन गए…
मेरे दिल में सभी के लिए मुहब्बत है
तेरे अलावा ये जाना किसने
गीत तुम्हारे तुमको सौंप सकूं शायद
बस्ती-बस्ती गीत लिए फिरता हूं
प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, ब्लॉगर योगेंद्र मुदगल जी ने भी कविता सुनाई, लेकिन तब पॉवर कट होने की वजह से ठीक से सुन नहीं सका…
इसके बाद शुरू हुआ ब्लॉगर्स का दो दो शब्द कहने का सिलसिला…टाइम ज़्यादा हो रहा था…इसलिए भोजन भी साथ शुरू करा दिया गया…सबसे पहले गाहे-बगाहे के विनीत कुमार ने मंच संभाला…विनीत कुमार के मुताबिक ब्लॉग सिर्फ टाइम पास या मनोरंजन के लिए ही नहीं लिखा जा रहा…धीरे-धीरे अब इसमें मैच्युरिटी आ रही है…बेशक अभी संख्या कम है लेकिन आने वाले वक्त में ब्लॉगिंग जन-संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उबरेगा…मीडिया मंत्र के पुष्कर ने भी जोर देकर कहा कि ब्लॉगिंग को सिर्फ टाइम पास के साधन के तौर पर ही न लिया जाए…सार्थक सृजन के सुरेश यादव ने कहा कि हर ब्लॉगर को अपनी भूमिका किसी जिम्मेदार पत्रिका के संपादक के तौर पर देखनी चाहिए…नमिता राकेश ने फरीदाबाद की होने के नाते खुद को मेजबान बताते हुए बाहर से आए सभी ब्लॉगर्स का आभार जताया…सुलभ सतरंगी ने हिंदी के अधिक से अधिक प्रयोग पर ज़ोर दिया..लखनऊ से आए युवा कवि और ब्लॉगर अमन दलाल ने कविता के ज़रिेए अपने विचार व्यक्त किए…व्यंग्यकार और हंसते रहो के ब्लॉगर राजीव तनेजा ने हीरो शीर्षक से अपनी बात रखी…हल्द्वानी से आई शैफाली पांडे ने स्वाइन फ्लू और अरहर की दाल को जोड़ते हुए बेहतरीन व्यंग्य रचना सुनाई जो आज देश के हालात पर तीखा कटाक्ष था…इरशादनामा के इरशाद अली, विनोद कुमार पांडेय और तन्हा सागर ने भी इस मौके पर दो-दो शब्द कहे…अविनाश वाचस्पति और अजय कुमार झा जी का ध्यान हर वक्त व्यवस्था संभालने और बाहर से आए मेहमानों की आव-भगत में ही लगा रहा…कार्यक्रम को सफल बनाने में मार्डन स्कूल की हिंदी प्राध्यपिका और कवियत्री शोभा महेंद्रू और स्कूल के बच्चों के अथक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता…प्रसिद्ध कवि पवन चंदन ने ब्लॉगिंग के महत्व को समझते हुए कहा कि वो जल्द ही दिल्ली में फिर ऐसे ही कार्यक्रम का आयोजन करेंगे…जो ब्लॉगर बंधु फरीदाबाद का कार्यक्रम मिस कर गए, वो अभी से दिल्ली मीट की तैयारी शुरू कर दें…कार्यक्रम का समापन डॉ प्रेम जनमेजय जी के मास्टर स्ट्रोक के साथ हुआ…दरअसल एक ब्लॉगर भाई कविता सुनाने की इजाज़त मांग रहे थे…तब प्रेम जी ने कहा कि जब और नहीं रूके, तो तुम क्यों रूको…आज के स्लॉग ओवर में समारोह में दीपक गुप्ता की कुछ चुटकियां…
स्लॉग ओवर
एक कवियत्री के बारे में दीपक गुप्ता ने कहा कि वो फरीदाबाद आईं तो उन्होंने यहां के किसी अच्छे मॉल से पति के लिए शर्ट खरीदने की इच्छा जताई…दीपक जी उन्हें स्टोर में ले गए…सेल्समैन ने कवियत्री से पूछा कि पति के कॉलर का नाप क्या है…कवियत्री ने कहा नाप तो नहीं पता लेकिन मेरे दोनों हाथों में उनकी गर्दन आ जाती है…
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मार्डन बच्चे से पूछो कि उसकी फेवरिट बुक कौन सी है…
जवाब होगा- पिताश्री की चेक-बुक और पास-बुक
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एक पत्रकार को दुविधा थी कि प्रेमिका से प्रणय-सूत्र में बंधने के लिए कौन से धारदार शब्दों का इस्तेमाल करे जो लीक से पूरी तरह हट कर हों…कई दिनों की कोशिश के बाद पत्रकार महोदय ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया वो ये थे…प्रिय, क्या तुम मुझे अपनी चिता में आग लगाने का अधिकार दोगी…
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