कल मैं बीएसएनएल ब्रॉडबैंड का बिल जमा कराने के लिए गया…वहां जाकर देखा तो लंबी लाइन लगी हुई थी…मुझे फिक्र हुई कहीं ड्यूटी पर लेट न हो जाऊं…लेकिन बिल की भी आखिरी तारीख थी, इसलिए जमा कराना ही था सो लाइन में लग गया…लाइन में कोई बीस-बाइस लोग थे…उनमें तीन-चार को छोड़कर सभी सीनियर सिटीजन (65 से ऊपर) थे…वहां कुर्सियां दो-तीन ही पड़ी थी…जो बुज़ुर्ग ज़्यादा देर तक नहीं खड़े हो सकते थे, वो वहां बैठे हुए थे…
सब बिल के बारे में बातें करते हुए…इतनी भीड़ होने के बावजूद बिल जमा कराने के लिए एक ही विंडो खुली हुई थी…उस पर बैठा क्लर्क खरामा-खरामा बिल जमा करने में लगा हुआ था…साथ ही बीच-बीच में आने वाले परिचित-दोस्तों के साथ ठहाके भी लगा रहा था…एक सिक्योरिटी गार्ड भी अंटी में कुछ बिलों को दबाए हुए क्लर्क के पास आकर खड़ा हो गया…ये देखकर मेरे आगे खड़े एक बुज़ुर्ग (सेना के कोई रिटायर अफसर) का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया…उन्होंने वहीं से क्लर्क और सिक्योरिटी गार्ड की क्लास लेना शुरू कर दिया…
मैंने नोटिस किया वहां जितने भी बुज़ुर्ग थे, वो यही बातें कर रहे थे कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता…सब भ्रष्ट और निकम्मे हैं…बुज़ुर्ग ये सब बोले जा रहे थे…मैं कुछ और ही सोच रहा था…ये गुस्सा शायद देश के माहौल पर कम बुज़ुर्गों को अपनी हालत पर ज़्यादा था…जब उन्हें घर में ही इस उम्र में भी बिल जमा कराने जैसे कामों पर लगाया हुआ है…बेशक स्टिक लेकर मुश्किल से ही चलते हों…क्योंकि घर में जो जवान हैं, उन्हें फुर्सत ही कहां हैं..ऐसे में जब बुजुर्गों की अपने घरों में ही नहीं चलती तो देश में भला कहां चलेगी…ऐसे में गुस्सा और हताशा चेहरे से न फूटे तो कहां फूटे…
प्रणब बाबू ने इस बार बजट में बुज़ुर्गों के लिए जो ऐलान किए हैं, उनमें सीनियर सिटीजन की आयकर छूट की सीमा 2.40 लाख से बढाकर 2.50 लाख करना, उम्र 65 की जगह 60 करना, अति वरिष्ठ की एक नई कैटेगरी बनाकर अस्सी से ऊपर के बुज़ुर्गों की पांच लाख तक की आय पर कोई इनकम टैक्स नहीं लगाना, निराश्रित बुज़ुर्गों की पेंशन 200 से बढ़ाकर 500 करना…अब यहां ये गौर करने काबिल हैं देश में अस्सी से ऊपर पांच लाख की आमदनी रखने वाले कितने बुज़ुर्ग होंगे…होंगे भी तो या तो बड़े उद्योगपति होंगे या फिर राजनेता…दूसरे कुछ घरों में भी टैक्स बचाने के लिए बुज़ुर्गों की सिर्फ कागज़ों में पांच लाख से ज़्यादा की आय दिखाई होगी…वरना देश में ऐसे खुशकिस्मत बुज़ुर्ग कहां जो आर्थिक मामलों में भी खुद फैसले लेते हों और जिनकी घर में भी चलती हो…मेरे हिसाब से मेजोरिटी ऐसे बुजुर्गों की ही है जो बिल की लाइन में लगे हुए थे…अब चाहे स्टिक लेकर चलते हों या लंबी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हों, घर वालों की भला से…
वाकई मेरा देश महान है…
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