लो जनाब आ गया 2010 भी…आधी रात को माहौल देखना था…ऐसे जैसे घड़ी की सुइयां बारह पर पहुंचेंगी तो न जाने क्या कुछ अनोखा हो जाएगा…देवदूत आसमां से नीचे उतर आएंगे…देवदूत तो क्या उतरते हां गले से गैलन के गैलन सोमरस ज़रूर उतर रहा था..चलिए आपको नए साल के तीन अक्स दिखाता हूं…आप सोचिएगा कौन से अक्स के करीब हैं या कौन से अक्स का दर्द करीब से जानना चाहते हैं…
अक्स नंबर 1
महानगर का पांचसितारा होटल…रंगीन जलती बुझती रौशनियों से नहाया समां…चारों ओर फिज़ा में फैली हुई एक से बढ़कर एक विदेशी परफ्यूम की खुशबू…तरह की तरह खुशबू मिलकर नथुनों को चीरती हुई बेहोश कर देने की हद तक पहुंच रही थी…वैसे भी यहां होश में कौन था…रात 11 बजकर 30 मिनट…डीजे का शोर कान फाड़ने वाले डेसीबल्स तक पहुंच गया था…नौजवान जोड़े इस तरह चिपक कर नाच रहे थे कि बीच से हवा को गुज़रने की भी जगह न मिले…उन्मुक्त व्यवहार सार्वजनिक वर्जनाएं तोड़ने की सीमा तक पहुंच चुका है…कपड़े ऐसे कि शरीर ढकता कम दिखता ज़्यादा…जो कपड़े मुश्किल से टिके भी हुए हैं वो भी सरकने को तैयार…जश्न में मौजूद अधेड़ सब कुछ देखते हुए भी नज़रअंदाज कर रहे हैं…तभी स्टेज पर वो पहुंच चुकी है़ जिन्हें इस मौके के लिए खास तौर पर थिरकता देखने को सभी बेचैन थे…बैचेन क्यों न हो हज़ारों खर्च कर सिर्फ एक झलक जो मिलनी थी…जी हां यहां बात बॉलीवुड की एक सेक्सी सुपरस्टार की हो रही थी…जिसे बीस-पच्चीस मिनट तक ठुमके दिखाने के लिए दो करोड़ रुपये में साइन किया गया था…अब बारह बजने में बस 5 मिनट रह गया है…सभी का जोशोखरोश अब चरम पर है…सब इस इंतज़़ार में कि बारह बजते ही न जाने वो कौन सी दुनिया में पहुंच जाएंगे…बारह बजने को हैं…बत्तियां बंद कर दी जाती हैं…हैप्पी न्यू ईयर का हर गले से ऐसे शोर उठता है कि सिवाय हल्ले के कुछ सुनाई नहीं देता…दो-तीन मिनट तक अंधकार रहता है…इस अंधकार में कई सार्वजनिक वर्जनाएं भी टूट गई हो तो कोई बड़ी बात नहीं…बिजली आ जाती है..कई गुब्बारे फूटते हैं…गुलाब की पंखुडियों से फर्श अट जाता है…अब कई शैंपेन एक साथ खुल जाती है…एक दो घंटे तक ज़ोर-ज़ोर से हाथ-पैर मारने का खेल (जिसे हिपहॉप, रैप, सालसा न जाने क्या क्या नाम देकर डांस कहा जाता है) चलता है…इसके बाद सब निढ़ाल होते जा रहे हैं…कुछ ऐसे भी हैं जो मदहोश होकर पैरों पर चलने लायक ही नहीं रह गए हैं…जो खुद गिर रहे है वही दूसरों को सहारा दे-देकर गाड़ियों तक ले जा रहे हैं..घर सही सलामत पहुंच जाएं…वही बड़ी बात है…
अक्स नंबर 2
नोएडा के मशहूर चौराहे के पास फुटपाथ…वक्त रात दो बजे…चाय वाले के खोखे के पास कुछ मज़दूर मुंह तक चादर ओढ़े अलाव सेंक रहे हैं…थोड़ी थोड़ी देर बाद अलाव में गत्ते कागज डालकर आग को न बुझने देने की मशक्कत भी चल रही है…उन्हीं के बीच से एक अधेड़ कहता है ओस में भीगकर मरे ये गत्ते भी जलने का नाम नहीं ले रहे हैं…सर्द हवा ऐसी कि शरीर को अंदर तक चीरे जा रही है...दूसरा हां में हां मिलाते कहता है…अब तो कई बरस की सर्दी झेल झेल कर ये कमबख्त गरम चादर भी सूत हो गई है….भला हो उस रहमदिल सेठ का जिसने कभी दान मे ये चादर दी थी….ये सब चल ही रहा था कि सामने से नागिन की तरह बल खाती एक चमचमाती बड़ी सी कार ज़ोरदार ब्रेक के साथ झटके से रुकती है…कार में फुल वोल्यूम में स्टीरियो चल रहा है और अंदर बैठे लड़के लड़कियों मस्ती में एक दूसरे के ऊपर लुढ़के जा रहे है…तभी एक रईसजादा कार से मुंह निकाल कर अलाव सेंक रहे मज़दूरों से तंज के लहजे में कहता है…विश यू वैरी हैप्पी टू थाउसेंड टेन…कार फिर तेज़ी से बैक कर निकल जाती है…एक कम उम्र का मज़दूर बड़ों से पूछता है…चचा क्या कह रहे थे ये बबुआ…एक बुज़ुर्ग जवाब देता है…कुछ नहीं भैया, सब अमीरों के चोंचले हैं…हम गरीबों के लिए क्या नया और क्या पुराना साल…हमारे लिेए तो हर साल इस वक्त ठंड मुसीबत बन कर आए है…पिछले साल सरकार ने रात को चौराहे पर लकड़ियां जलवाने का इंतज़़ाम करवाया था, इस बार वो भी गायब…
अक्स नंबर तीन
एक मिडिल क्लास फैमिली का लिविंग रूम…घर के सभी लोग बेड और सोफे पर धंसे फ्लैट टीवी स्क्रीन पर नववर्ष के प्रोग्राम देख रहे हैं…बीच-बीच में चाय, कुरकुरे और मुंगफली-गुड़पट्टी के दौर भी चल रहे हैं…रिमोट के ज़रिेए बीच-बीच में चैनल भी बदले जा रहे हैं…साथ ही सब की रनिंग कमेंट्री भी चल रही है…एक चैनल पर गोवा के रिसॉर्ट से नववर्ष का कार्यक्रम लाइव दिखाया जा रहा है…अंगूर खट्टे है की तर्ज पर एक आवाज़ सुनाई देती है…हद हो गई भई बेशर्मी की…कैसे कैसे अश्लील स्टैप्स दिखाए जा रहे हैं…क्या होगा इस देश का...लेकिन यहां भी सिर्फ जुबानी खर्च ही हो रहा है…टीवी को स्विच-ऑफ कोई नहीं कर रहा…घर का एक युवा ख्याली पुलाव बना रहा है कि शायद इस साल अच्छी नौकरी मिल जाए तो अगले नववर्ष पर ज़रूर किसी न्यूईयर पार्टी का टिकट खरीदूंगा…
ये तीन अक्स जो मैंने खींचे…करीब करीब देश के हर बड़े शहर में कल रात देखने को मिले होंगे…अब कुछ कहने का नहीं सोचने का वक्त है…अगले नववर्ष के आने में अभी पूरा एक साल बाकी है…क्या इतने वक्त में हमारी सोच में ऐसा कोई बदलाव आएगा कि हम नए साल के स्वागत को कोई सार्थक आयाम दे सके…अनाथालय, वृद्धाश्रम या ऐसे ही वंचितों-पीड़तों के किसी संस्थान के बाशिंदों के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान ला सकें…विश्वास करिए ये मुस्कान बिपाशा बसु के दो करोड़ रुपये के ठुमके से कहीं ज़्यादा कीमती होगी….
स्लॉग ओवर
एक साल में…
बारह महीने…
365 दिन…
8760 घंटे…
52560 मिनट…
3153600 सेकंड…
सिर्फ आपको ही याद किया…
और सिर्फ दो मिनट लगे इस झूठ को टाइप करने में….
(मज़ाक एक तरफ़….आप सभी को मेरी ओर से नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं…आप से अगली मुलाकात अब 4 जनवरी को होगी…तब तक ब्रेक तो बनता है न बॉस…)
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आज मेरे अंग्रेज़ी ब्लॉग Mr Laughter पर है
हमारे पुरखे रूसी-अमेरिकियों से ज़्यादा आधुनिक थे…
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