दिल्ली के ‘बूबी ट्रैप’ में ‘आप’…खुशदीप



आपने बूबी ट्रैप के बारे में सुना होगा? किस तरह उसमें दुश्मन को फंसाया जाता है। चलिए वो भी छोड़िए। आपने घर में चूहे का पिंजरा तो ज़रूर देखा होगा। कैसे रोटी का टुकड़ा रखकर चूहे को ललचाया जाता है। मैं समझता हूं दिल्ली की राजनीति में भी यही हो रहा है। भला कैसे? आप ये जानना चाहेंगे?


‘आप’ को दिल्ली की सत्ता में दोबारा आए महज़ एक महीना ही हुआ है। पिछली बार दिल्ली में ‘आप’  सत्ता में आई थी तो 49 दिन में बोरिया-बिस्तर समेट कर चलती भी बनी थी। अल्पमत की जो सरकार बनाई थी। लेकिन इस बार ‘आप’ ये भी नहीं कर सकती। प्रचंड बहुमत की जो सरकार है।


एक महीना होते ही आम आदमी पार्टी की सरकार की ‘चीड़फ़ाड़’ होने लगी है। एक एक मंत्री, एक एक विधायक का रिपोर्ट कार्ड मीडिया दिखाने लगा है। एक एक विधायक के इलाके में जाकर सवाल करने लगा है कि ‘आप’ सरकार आने के बाद क्या बदलाव हुआ है? विधायक-मंत्री दिन में कितने घंटे आम लोगों से मिलते हैं? बुनियादी सुविधाएं मिलने की स्थिति क्या है?


ज़ाहिर है लोगों ने ‘आप’ के नेताओं पर सत्ता मिल जाने के बाद बदल जाने की शिकायतें करना भी शुरू कर दिया है। कहने लगे है कि ‘आप’ के नेताओं ने भी दूसरे राजनीतिक दलों की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा ‘आप’ के अंदरुनी घमासान ने भी आम लोगों के साथ पार्टी के वॉलन्टियर्स को भी निराश किया है।


लेकिन दिल्ली में ‘आप’ के ख़िलाफ़ इसी चिल्ला चिल्ली में किसी ने ध्यान दिया कि केंद्र की सत्ता में बीजेपी सरकार को आए कितने दिन हो गए। मैं एनडीए सरकार नहीं कह रहा क्योंकि सहयोगी दल बीजेपी पर किसी तरह का दबाव डालने की स्थिति में नहीं है। ख़ैर, मेरा सवाल दूसरा है। केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुए 9 महीने, 20 दिन हो गए हैं। ‘आप’ से तो एक महीने में ही मीडिया सवाल करने लगा है, क्या किसी ने केंद्र की सरकार को लेकर भी बीजेपी से ऐसे चुभते सवाल किए हैं। किसी बीजेपी सांसद के इलाके में जाकर उसका रिपोर्ट कॉर्ड पेश किया है।

आज मीडिया का पूरा फोकस कहां है? अरविंद केजरीवाल बेंगलुरू में अपना प्रिय गाना गा रहे हैं। छींक रहे हैं। दिल्ली में ‘आप’ नेता झगड़ रहे हैं। केजरीवाल समेत ‘आप’ नेताओं के ख़िलाफ़ स्टिंग्स की भरमार है। एक साल पहले के गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं। कांग्रेस के तत्कालीन विधायकों को पटा कर दोबारा सरकार बनाने की कोशिश की गई थीं। मुसलमानों को ‘आप’ को वोट देना मजबूरी बताया गया था…वगैरहा…वगैरहा…


लेकिन इसी आपाधापी में किसी ने ध्यान दिया कि ‘आप’  पर मैग्नीफाइंग ग्लास होने से सबसे ज़्यादा राहत किसको मिली? साफ़  है कि अब किसी का इस बात पर ध्यान नहीं है कि 2014 में केंद्र की सत्ता में आने से पहले चुनाव में बीजेपी ने लोगों से क्या क्या वादे किए थे। उन पर अब तक कितना अमल हुआ है।


चाणक्य नीति कहती है कि बड़ी बाज़ी जीतने के लिए कभी कभी छोटी बाज़ी हारनी भी पड़ती है। क्या दिल्ली में भी ऐसा ही हुआ था? पिछले महीने दिल्ली के नतीजे आने के फौरन बाद लिखे गए इस लेख में शायद आपको कुछ सवालों के जवाब मिल जाए।


क्या बीजेपी दिल्ली में जानबूझकर हारी?

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Ahir
10 years ago

Nice Article sir, Keep Going on… I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.

Unknown
10 years ago

आयुर्वेदा, होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, योगा, लेडीज ब्यूटी तथा मानव शरीर
http://www.jkhealthworld.com/hindi/
आपकी रचना बहुत अच्छी है। Health World यहां पर स्वास्थ्य से संबंधित कई प्रकार की जानकारियां दी गई है। जिसमें आपको सभी प्रकार के पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों तथा वनस्पतियों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी पढ़ने को मिलेगा। जनकल्याण की भावना से इसे Share करें या आप इसको अपने Blog or Website पर Link करें।

Manoj Kumar
10 years ago

बहुत सही !

डॉ टी एस दराल

इस एंगल से तो कभी सोचा ही नहीं गया !

Dr Parveen Chopra
10 years ago

बिल्कुल सही फरमाया आपने….
आपकी सरल भाषा हमें झट से समझ में आ जाती है।

Satish Saxena
10 years ago

काली दाढ़ी आँख दबाये मुस्काये
अब तो जल्दी पंख लगे अरमानों को !

0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x