ज़िंदगी कितनी बदल गई…है ना…खुशदीप

सिर्फ़…

मैं उस वक्त में लौटना चाहता हूं जब…
मेरे लिए मासूमियत का मतलब,

सिर्फ खुद का असल होना था…

मेरे लिए ऊंचा उठने का मतलब,

सिर्फ झूले की पींग चढ़ाना था…

मेरे लिए ड्रिंक का मतलब,

सिर्फ रसना का बड़ा गिलास था…

मेरे लिए हीरो का मतलब,

सिर्फ और सिर्फ पापा था…

मेरे लिए दुनिया के शिखर का मतलब,

सिर्फ पापा का कंधा था…

मेरे लिए प्यार का मतलब,

सिर्फ मां के आंचल में दुबकना था…

मेरे लिए आहत होने का मतलब,

सिर्फ घुटनों का छिलना था…

मेरे लिए दुनिया की नेमत का मतलब,

सिर्फ बैंड बजाने वाला जोकर था…

अब वज़ूद की सर्कस में मै खुद जोकर हूं,

ज़िंदगी कितनी बदल गई…है ना…

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