इनसान है शीशे के, पत्थर का ज़माना है….खुशदीप

हिंदी सिनेमा ने कई ऐसे मधुर गीत दिए हैं जो फिल्म के पिट जाने की वजह से ज़्यादा पॉपुलर नहीं हो पाए…ऐसा ही मेरी पसंद का एक गीत है फिल्म फ़लक (द स्काई) से…ये फिल्म 1988 में आई थी…के.शशिलाल नायर ने इसे डायरेक्ट किया था…फिल्म में राखी गुलज़ार, जैकी श्रॉफ़ और माधवी की मुख्य भूमिकाएं थीं…जिस गीत का यहां मैं ज़िक्र कर रहा हूं इसे निदा फ़ज़ली साहब ने लिखा है…कल्याणजी आनंदजी के संगीतबद्ध किए गए गीत को मोहम्मद अज़ीज़ की आवाज़ ने निखार बख्शा है…आप भी पढ़िए, सुनिए, देखिए ये गीत…

चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोय

दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए…

इक रोज़ हसाना है, इक रोज़ रूलाना है,
इक रोज़ हसाना है, इक रोज़ रूलाना है,
इनसान से किस्मत का, इनसान से किस्मत का,
ये खेल पुराना है,
इक रोज़ हसाना है, इक रोज़ रूलाना है…


हालात के हाथों में हर कोई खिलौना है,
हर कोई खिलौना है,
माथे पे जो लिखा है हर हाल में होना है,
हर हाल में होना है,
इनसान है शीशे के, इनसान है शीशे के,
पत्थर का ज़माना है…
इक रोज़ हसाना है, इक रोज़ रूलाना है…


जीवन के ये पल, ये आज, ये कल मेरे हैं न तेरे है,
होठों की हंसी आंखों की नमी, सब वक्त के घेरे है.
जो वक्त से लड़ता है,
जो वक्त से लड़ता है,
पागल है…दीवाना है….
इक रोज़ हसाना है, इक रोज़ रूलाना है,
इनसान से किस्मत का ये खेल पुराना है…

निदा फ़ज़ली
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