नैरोलेक पेंट का एड शायद आपने भी देखा होगा…हर घर कुछ कहता है…ज़िंदगी का हिस्सा बन चले ब्लॉगवुड की बात करूं तो यहां भी हर ब्लॉग अपने खास अंदाज़ में कुछ कहता है…आपको बस दिल से सुनना होता है…पढ़ना होता है…आज मैंने एक पोस्ट पढ़ी जिसमें अलग अलग विषयों का उल्लेख करते हुए पांच-पांच शीर्ष ब्लॉगों के नाम सुझाने की गुज़ारिश की गई थी…पहले तो मैं इस पोस्ट का औचित्य ही नहीं समझ पाया…ये कोई क्लास नहीं है, जहां पांच-पांच टॉप स्टूडेंट्स को छांटा जाए….दूसरी बात ब्लॉग्स को विषय की हदों में बांधना भी मुझे ऐसा लगता है जैसे बहते पानी पर बांध बना देना…अरे जो जी में आता है बिंदास लिखिए….जो जीवन आप जी रहे हैं, उसमें कई बातें आप दूसरों से बांट नहीं पाते…अंदर ही दबा लेते हैं…ब्लॉग आपको मौका देता है दिल के गुबार को बाहर लाने का…
यहां मैं नज़ीर देना चाहूंगा जवां खून वाले दो छोटे ब्लॉगर भाइयों की…एक महफूज़ और दूसरा सागर…महफूज़ तो आलराउंडर है, कविता, गद्य, शोध….कुछ भी रवानगी के साथ कह सकता है…लेकिन सागर ज़्यादातर कविता में ही अपने भावों को व्यक्त करता हूं…बोल्ड अंदाज़ में कुछ भी लिख जाता है…साफ़-सपाट…महफूज़ और सागर, दोनों में एक बात बड़ी अच्छी है, दोनों अपनी कमज़ोरियों को बिल्कुल नहीं छुपाते…डंके की चोट पर लिखते हैं…यकीन मानिए यही चीज़ इंसान को अपने पर भरोसा करना सिखाती है…कई बार आप ये सोच कर कि लोग क्या कहेंगे, चुप रहते हैं…या फिर अपने को वैसा दिखाने की कोशिश (प्रीटैंड) करते हैं जो कि असल में आप है नहीं…मैं कहता हूं निकाल फेंकिए अपने अंदर से इस हिचक को…बेबाक अंदाज़ में अपने को अभिव्यक्त कीजिए…अपनी खामियों को भी और अपनी खूबियों को भी…आप देखेंगे कि जितना अपने बारे में आप सच लिखेंगे, उतना ही पाठकों में ज़्यादा पसंद किए जाएंगे…
जब भी कोई नया ब्लॉगर आता है तो उसकी यही ख्वाहिश होती है कि रातों-रात उसकी पहचान बन जाए…पांच महीने पहले मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो मेरे साथ भी यही हुआ था…मैं खुशकिस्मत रहा…मुझे थोड़े वक्त में ही ब्लॉगवुड में बुज़ुर्गों से आशीर्वाद, हमउम्र साथियों से प्रोत्साहन और छोटों से भरपूर प्यार मिल गया…इससे मेरा हौसला बहुत बढ़ा…यही हौसला है जो मुझे, चाहे मैं कितना भी थका क्यों न हूं…कुछ न कुछ नया लिखने की शक्ति दे देता है…कमेंट्स के ज़रिए मुझे ब्लॉगवुड का प्यार भी हाथोंहाथ मिल जाता है…अगर कोई मेरे विचारों से असहमति जताता है तो उसे मैं अपने लिए और अच्छी बात मानता हूं…इसे इसी तरह लेता हूं कि मेरी पोस्ट ने सभी को कुछ न कुछ कहने को उद्वेलित किया…इस मामले में मैं प्रवीण शाह भाई का बड़ा कायल हूं…वो विरोध भी जताते हैं तो बड़े संयम और शालीन तरीके से…उनसे संवाद (विवाद नहीं) कायम कर आनंद आ जाता है…यही तो ब्लागिंग का मज़ा है…हां, एक बात मैं ज़रूर अपने युवा साथियों से कहना चाहता हूं…ब्लॉगिंग पर्सन टू पर्सन ट्यूनिंग की बात है…आपको ब्लॉग विशेष के ज़रिए उस ब्लॉगर के मिज़ाज को समझने की कोशिश करनी चाहिए…कमेंट्स देते हुए भी अपने शब्दों का चयन पूरी तरह तौल-मोल के बाद करना चाहिए…एक गलत शब्द भी आपके बारे में गलतफहमी खड़ी कर सकता है…ब्लॉगिंग भी एक किस्म का रेडियो पर कमेंट्री सुनने जैसा है…जैसे कि आप कमेंट्री सुनते समय अपने अंदाज़ से दिमाग में चित्र बनाते रहते हैं, ऐसे ही ब्लॉग पर आपकी लेखनी (टाइपिंग) से आपके व्यक्तित्व के बारे में दूसरों के बीच पहचान बनती है..
यहां याद रखना चाहिए कि बंदूक से निकली गोली और ज़ुबान से निकले बोल, कभी वापस नहीं आते…इसलिए ऐसी बात कही ही क्यों जाए, जिस पर बाद में पछताना पड़े…और रही बात आपकी पहचान बनने की, तो वो सिर्फ आपका लेखन ही बनाएगा…दूसरा ओर कोई शार्टकट यहां काम नहीं करता…एक बार आपका रेपुटेशन बन जाए तो फिर उसी मानक के अनुरूप आपको अच्छा, और अच्छा लिखते रहने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए…आप ईमानदारी से ये काम करेंगे तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती…
चलिए स्लॉग ओवर में आपको आज रेपुटेशन की अहमियत पर ही एक किस्सा सुनाता हूं…लेकिन पहले आप सभी से एक सवाल…मैंने तीन-चार पोस्ट पहले लिखी अपनी पोस्ट…महफूज़ इक झूमता दरिया...में समूचे ब्लॉग जगत या बिरादरी के लिए ब्लॉगवुड शब्द का इस्तेमाल पहली बार किया था…अदा जी ने इसे पसंद करते हुए कमेंट भी किया था…आज दीपक मशाल ने भी अपनी पोस्ट में इस शब्द का इस्तेमाल किया तो मुझे बहुत अच्छा लगा…आप सब को ब्लॉग जगत के लिए ब्लॉगवुड नाम कैसा लगता है…अगर अच्छा लगता है तो इसे ही इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए…एक बार ये प्रचलन में आ गया तो बॉलीवुड को भी टक्कर देने लगेगा…लेकिन पहले आप अपनी राय बताइए कि ब्लॉगवुड शब्द कैसा है…
स्लॉग ओवर
रॉल्स रॉयस कार पिछली सदी की शुरुआत में बनना शुरू हुई थी…ये कार रखना तभी से दुनिया भर में स्टेट्स-सिंबल माना जाता रहा है…ऑफ्टर सेल्स सर्विस में भी इस कार को बनाने वाली कंपनी का जवाब नहीं है…
देश को आज़ादी मिलने से पहले की बात है…एक भारतीय सेठ ने शहर में अपना रूतबा दिखाने के लिए विलायत से रॉल्स रॉयस कार मंगाने का फैसला किया…शिप के ज़रिए कार भारत आ भी गई…कार आते ही सेठ का घर-घर में चर्चा होने लगा…लेकिन एक महीने बाद कार में खराबी आ गई…कार चलने का नाम न ले…ये देख सेठ को बहुत गुस्सा आया…सेठ ने फौरन कार बनाने वाली कंपनी को टेलीग्राम भेजा…किस बात का आपका नाम है….एक महीने में आपकी रॉल्स रॉयस कार ने जवाब दे दिया…अब बताओ क्या करूं मैं इसका...टेलीग्राम पढ़ने के बाद कंपनी में हड़कंप मच गया…आखिर दुनिया भर में साख का सवाल था…अगले ही दिन कंपनी ने इंजीनियरों की पूरी टीम भारत रवाना कर दी…टीम ने सेठ के पास आकर रॉल्स रॉयस कार का मुआयना किया…कार का बोनट खोलते ही इंजीनियर हंसने लगे…सेठ को ये देखकर और भी गुस्सा आया…बोला..मैंने आपको यहां हंसने के लिए नहीं कार का नुक्स ठीक करने के लिए बुलाया है…इस पर इंजीनियरों की टीम के हेड ने कहा…सॉरी सेठ जी, हमें बताते हुए खुद शर्म आ रही है कि इस कार को बनाते वक्त हम इसमें इंजन डालना ही भूल गए थे…इस पर सेठ ने कहा…ये कैसे हो सकता है, कार तो एक महीना चली है…इस पर इंजीनियरों की टीम के हेड ने कहा…वो एक महीना तो कार अपने नाम के रेपुटेशन से ही चल गई…..