समारोह और मेरे हिंदी ब्लॉगिंग छोड़ने का असली सच…खुशदीप

सोचा तो था ज़ुबान सिए रखूंगा…लेकिन कहते हैं न कोई बात दिल में दबाए रखो तो वो नासूर बन जाती है…इसलिए अंदर की सारी आग़ बाहर निकाल देने में ही सबकी भलाई है…तो आज आप भी दिल थाम लीजिए, ऐसा सच बताने जा रहा हूं, जिसकी आपने कल्पना-परिकल्पना कुछ भी नहीं की होगी…न नुक्कड़ पर और न ही चौपाल पर…अब यही सोच रहा हूं, कहां से शुरू करूं…ज़्यादा पीछे गया तो गढ़े मुर्दे उखाड़ने वाली बात हो जाएगी…इसलिए सीधे शनिवार, 30 अप्रैल पर ही आता हूं…यानि वो तारीख जिसका मैं भी दूसरे सारे ब्लॉगरों की तरह बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था….

30 अप्रैल की सुबह सतीश सक्सेना (जिनका अब तक मैं बड़ा सम्मान करता था, लिहाज़ करता था, अब क्या करता हूं, इसी पोस्ट में आगे पता चलेगा) ने मेरे साथ शाहनवाज के घर चलने का प्रोग्राम बनाया…शाहनवाज के घर ही दिनेशराय द्विवेदी जी पिछली रात से टिके हुए थे…सतीश जी ने अपनी गाड़ी से मुझे कॉलोनी के गेट से पिक किया और शाहनवाज के घर की ओर कूच किया…इस दौरान मैं देख रहा था कि सतीश जी के चेहरे पर बड़ी शातिर मुस्कान थी…इस तरह का भाव जैसे किसी बहुत बड़े मिशन के लिए निकले हो…मुझसे कहने लगे कि अगर मेरा साथ दो तो बहुत तगड़े नोट कमा सकते हो…मैं चौंका, आज तो सम्मान कमाने के लिए घर से निकला हूं…ये नोट कहां से आ गए…वैसे भी नोटों का नाम सुनकर किसके कान खड़े नहीं हो जाते…

सतीश जी….जैसे जैसे मैं कहता जाऊं, तुम्हें बस वैसे करते जाना है…बस एक बात का ध्यान रखना, अपना दिमाग़ कहीं नहीं लगाना है...

मैंने कहा… भाई जी मुझे करना क्या है, पहले ये बताओगे या भूमिका ही बांधे जाओगे…


सतीश जी को लगा कि मैं कहीं हत्थे से न उखड़ जाऊं, सीधा काम की बात पर आ गए…मुझे हिदायत देते हुए कहा…आज तुम समारोह में सम्मान नहीं लोगे और साथ ही हिंदी ब्लॉगिंग को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ने का ऐलान करोगे…

मैं….मुझे पागल कुत्ते ने काटा है, जो हिंदी ब्लॉगिंग छोडूंगा…

इस पर सतीश जी ने डॉन वाले अंदाज़ में लाल-लाल आंखों से मुझे घूरते हुए कहा…बेटा करना तो तुझे पड़ेगा ही, अब चाहे हंस कर निभा या रो कर…

सतीश जी के ये तेवर मैंने पहले कभी नहीं देखे थे…उनकी अंटी से निकल रहा रिवॉल्वर मुझे साफ नज़र आ रहा था…ये देखकर मेरी घिग्घी बंध गई और ज़ुबान से आवाज़ तक नहीं फूट रही थी…फिर भी हिम्मत करके पूछ ही लिया कि आखिर जनाब मेरा कसूर क्या है, जो मुझे आपने बंधक बना रखा है…ये सुनते ही वो शत्रुघ्न सिन्हा वाले स्टाइल में बोले… खामोश, मुझ से ज़ुबान लड़ाता है…काट कर चील-कौओं के आगे डाल दूंगा…

अब मैंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी…


सतीश जी ने प्रवचन जारी रखा…तमक कर बोले…बेटा आज आया है ऊंट पहाड़ के नीचे…तेरा तो मैं सर्कस जैसा हाल कर दूंगा और जगह जगह टिकट लगाकर कमाई करूंगा…इसके अलावा अंडरवर्ल्ड कनेक्शन ने भी तेरे ऊपर खूब पैसा लगा रखा है….ये सब सुनना, मेरे चकराने के लिए काफ़ी था….लेकिन अभी एटम बम गिरना बाकी था…सतीश जी आगे बोले…तेरे ब्लॉगिंग छोड़ देने से किसी पर असर पड़े या न पड़े लेकिन मेरी तिजौरी ज़रूर बढ जाएगी….

मैंने पूछा…कैसे….

जवाब मिला…जब तू ब्लॉगिंग छोड़ देगा तो कयास लगाए जाएंगे कि दोबारा शुरू करेगा या नहीं…बड़ों का आदेश और छोटों का प्यार मानेगा या नहीं….जब तक तू सोचने का काम करेगा तब तक पूरी दुनिया में अंडरवर्ल्ड के ज़रिए मुझे सट्टा लगाने का मौका मिलेगा…इस सट्टे को खेल का रुख देखकर ही मोड़ दिया जाएगा….यानि ये देखा जाएगा कि किस पहलु पर ज़्यादा दांव लगा है….फिर उसी हिसाब से सट्टे को फिक्स किया जाएगा…अभी तक का जो ट्रैंड है, उसके मुताबिक तेरे ब्लॉगिंग दोबारा शुरू कर देने से हमें छप्पर फाड़ दौलत कमाने का मौका मिलेगा…इसलिए जैसा बताया, बस वैसा ही तुझे करना होगा…

अब जब ये सुना तो मुझे सतीश भाई में एक साथ नीरा राडिया, अजहरूद्दीन नज़र आने लगे…लाइव फिक्सिंग की जीती-जागती मिसाल मेरी आंखों के सामने थी…अब मरता क्या न करता, सतीश भाई के हितों के लिए मुझे ये पोस्ट लिखनी पड़ रही है…वरना…वरना क्या…जानते नहीं सतीश भाई का गुस्सा कितना भयंकर है…

एक बात और ये शाहनवाज़ और द्विवेदी जी को भी आप भोला-भाला मत समझिए…ये भी बहती गंगा में हाथ धोने के लिए सतीश भाई के साथ हाथ मिलाए हुए हैं…सबने मिलकर मेरा पोपट बनाया हुआ है…यहां तक कि मेरे प्यारे मक्खन, मक्खनी, गुल्ली और ढक्कन का भी अपहरण कर लिया गया…कभी उन्हें कोटा में छुपाया जा रहा है तो कभी दिल्ली में…अब ब्लॉगर भाइयों आप ही निकालो मुझे डॉन सतीश सक्सेना के गैंग के चंगुल से…

नोट…कौन कहता है कि व्यंग्य को सीरियसली नहीं लिखा जा सकता…

सतीश भाई का अब मैं सम्मान ही नहीं करता बल्कि उन्होंने मुझे यार का दर्ज़ा भी दे दिया है…ऐसा कैसे हुआ, इसका राज़ कोई मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव ही बता सकता है….