दिल ने अगर चराग जलाए तो क्या किया…
हम बदनसीब प्यार की रुसवाई बन गए,
खुद ही लगा के आग़ तमाशाई बन गए,
दामन से अपने शोले बुझाए तो क्या किया,
दिल ने अगर चराग जलाए तो क्या किया…
सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया…
ले ले के हार फूलों के आई तो थी बहार,
नज़रें उठा के हम ने ही देखा न एक बार,
आंखों से अब ये पर्दे हटाए तो क्या किया…
दिल ने अगर चराग जलाए तो क्या किया…
सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया…
गायक- तलत महमूद, संगीतकार- रवि, गीतकार-प्रेम धवन, फिल्म- एक साल (1957 )
गायक तो भारतीय सिनेमा में एक से बढ़ कर एक हुए हैं, लेकिन तलत साहब की मखमली आवाज़ में लहर के साथ जो जादू था, वो बेमिसाल था…24 फरवरी 1924 को मंजूर अहमद के तौर पर नवाबों के शहर लखनऊ में जन्म लिया…बचपन से ही गायकी के शौकीन…घर में इच्छा जताई तो अब्बा हुजूर ने फरमान सुना दिया…गायकी या घर में से एक को चुनना पड़ेगा…तलत साहब ने गायकी को चुना…सोलह साल की उम्र से ऑल इंडिया रेडियो पर गाना शुरू कर दिया…1941 में एचएमवी ने तलत साहब की गज़लों का पहला रिकार्ड जारी किया…तलत साहब ने उस वक्त कलकत्ता का रुख किया…जहां के एल सहगल, उस्ताद बरकत अली ख़ान जैसे दिग्गज गज़ल गायकों का डेरा था…कुछ साल तक तलत ने वहीं अपने को मांजा…तब तक उनकी प्रसिद्धी पूरे देश में फैल चुकी थी…चालीस के दशक के मध्य में हिंदी फिल्मों में गाना शुरू किया तो फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा…1949 में आरजू के लिए तलत साहब का गाया गाना…ए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहां कोई न हो…पूरे देश की ज़ुबान पर चढ़ गया था…तलत साहब ने सोलह फिल्मों में अभिनय भी किया…1992 में तलत साहब को पद्मभूषण मिला… 9 मई 1998 को 74 साल की उम्र में तलत साहब का मुंबई में निधन हुआ…
तलत साहब के कुछ प्रसिद्ध गाने…
हमसे आया न गया…(देख कबीरा रोया, 1957)
जाएं तो जाएं कहां….(टैक्सी ड्राईवर, 1954)
तस्वीर बनाता हूं…(बारादरी, 1955)
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है…(मिर्ज़ा गालिब, 1954)
इतना न मुझसे तू प्यार जता (छाया, 1961)
शाम ए गम की कसम (फुटपाथ, 1953)
जलते हैं जिसके लिए (सुजाता, 1959)
मेरी याद में तुन न आंसू बहाना (मदहोश, 1951)
फिर वही शाम, वही गम, वही तन्हाई ( जहां आरा 1964)
ए मेरे दिल कहीं और चल (दाग़, 1952)
अंधे जहां के अंधे रास्ते (पतिता, 1953)
वैसे ऊपर वाले गाने के बोलों को लेकर अब भी कुछ शुबहा हो तो तलत साहब का शमशाद बेगम के साथ फिल्म बाबुल (1950) के लिए गाया ये प्यारा सा गीत सुन लीजिए…शकील बदायूनीं के बोलों को नौशाद ने सुर दिए थे…(वैसे ब्लॉगिंग से भी अपना इश्क इससे कुछ कम नहीं)….
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बहुत सुंदर लेख तलत जी के बारे जान कर बहुत अच्छा लगा, इन के सभी फ़िल्मी गीत मेरे पास हे, मेरे पसंद के गायक भी हे, आप का धन्यवाद
तलत साहब के नग्मों के द्वारा उनके संक्षिप्त जीवन परिचय को आपकी लेखनी के द्वारा जानना अच्छा लगा ।
तलत साहब हमेशा से पसंदीदा गायक रहे हैं…अब सारे ही गाने सुनने का मन हो रहा है…
तलत साहब के प्रस्तुत गानों के लिए आभार क्योंकि ये सभी मुझे प्रिय हैं . उनकी पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि .
बहुत पसंदीदा गाने प्रस्तुत किये हैं तलत जी के ।
गाना आए या ना आए , हम तो इन्हें गाते भी बहुत थे ।
वाह आज तो सारे मनपसन्द गाने याद करा दिये।
बढिया पेशकश के लिए बधाई॥
तलत जी से एक रूहानी मुहब्बत -सी है –उनके हर गीत दिल की आवाज होते थे …दिल से बहुत करीब …
बढ़िया लेख आभार…
अब क्या करें आदत जो हो गयी है तुम्हारी हर बात मे कुछ न कुछ छिआ होता है। गीत बहुत सुन्दर दिल के करीब हैं। शुभकामनायें।
@ जहेनसीब सरकार अमर कुमार साहब ,
आप आदेश दें हुज़ूर …आपके लिए पातळ में से भी तैर कर बाहर आयेंगे !! शुभकामनायें भाई जी !
तलत महमूद ने बहुत ही श्रेष्ठ गीतों को गाया है, आज के दिन उन्हें पुण्य-स्मरण कराने के लिए आपका आभार।
सुन्दर गीत, स्पष्ट संदेश।
9 मई का दिन हमारी मंगनी का दिन है। (सन 1999)
जज़्बात अच्छे हैं जो गाने के माध्यम से पेश किए गए।
… और हां,
ब्लॉग जगत की तमाम परेशान आत्माओं के नाम एक हर्ष संदेश
नाओ आए एम कूल एंड सैटिस्फ़ाई.
अब आप मुझे जैसे ढालना चाहें, ढाल लें,
सलाह और सुझाव आमंत्रित हैं,
अवधि मात्र 3 दिवस है।
ऐसा क्यों कह रहा हूं, यह भी एक पूरी पोस्ट का विषय है जो कि मैं बनाऊंगा नहीं। बस, सलाह दीजिए और पालन कराइये।
जय हिंद !
सर्वप्रथम चेतावनी :
कृपया ऎसे आलेख लिखने से बचें, जिनमें सतीश जी डूब जायें । ब्लॉगजगत सहित मुझे उनकी बहुत ज़रूरत है ।
तदोपराँत टिप्पणी :
मैं तलत साहब की दीवानगी में उनका पैतृक-निवास तक हिज़रत कर आया हूँ । उन्होंनें बेशकीमती नगमें तो दिये ही हैं, कई फ़िल्मों में बतौर नायक भी काम किया है, जिनमें दिल-नादाँ, एक गाँव की कहानी और सोने की चिड़िया तो मुझे याद है । उनकी खूबसूरती का यह मिज़ाज़ था कि फ़िल्म दिल-ए-नादाँ की नायिका के चयन के लिये सर्वसुँदरी प्रतियोगिता रखी गयी । मेरे स्वर्गीय चाचा जी ने चाल ढाल, रहन सहन, बनाव सिंगार में उनको ही आदर्श मान रखा था ।
सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या हुआ
हमारी निगाहें तो आप पर ही हैं खुशदीप भाई.क्यूंकि आपका ब्लॉगिंग का इश्क कह रहा है
मिलते ही आँखें चार हुईं,
दिल हुआ दीवाना किसी का
अफसाना मेरा बन गया
अफसाना किसी का
क्या कहने ! सुभानअल्लाह.
बेहतरीन आलेख…तलत साहब हमारे प्रिय हैं…
तलत को जब भी सुनता हूँ एक आत्मिक आनंद मिलता है।
बहुत बढ़िया लेख लिखा है !
कम से कम मेरे लिए काफी नयी जानकारी है यहाँ ! इन मधुर गानों में डूब जाने का मन करता है ! शुभकामनायें !!
इन गाने वालों को कैसे मालूम हो जाता है। पर पूरा नहीं आंशिक ही सच बतला पाते हैं। होश तो आए ही नहीं और हां, सब कुछ लुटा/लुटवा भी दिया।