‘सच्चा सौदा’ है क्या ये तो जान लेते…खुशदीप

गुरमीत राम
रहीम सिंह को यौन उत्पीड़न के 15 साल पुराने मामले में दोषी ठहराए जाने पर हरियाणा-पंजाब-चंडीगढ़
में स्थिति बेकाबू हो गई…इसकी आंच दिल्ली तक महसूस की गई…पंचकूला में सीबीआई
की विशेष अदालत की ओर से फैसला सुनाए जाते ही उनके कथित अनुयायियों ने सड़कों पर
उत्पात मचाना शुरू कर दिया…आते-जाते निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया…वाहनों
में आग लगा दी गई…मीडियाकर्मियों पर हमले किए गए…यहां ये नहीं भूलना चाहिए कि
एहतियातन संवेदनशील स्थानों पर पहले से ही बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को
तैनात रखा गया था…सिरसा और पंचकूला में तो सेना तक को मदद के लिए बुलाया गया
था…
दुख: की बात है कि हिंसा और अराजकता का जो नंगा नाच
कर रहे हैं वो खुद को
डेरा सच्चा सौदाका प्रेमी बताते हैं…ये
समझ नहीं आता कि राम रहीम का जुड़ाव जिस डेरे से है, उसका क्या सोच कर नाम
डेरा सच्चा
सौदा
रखा गया था…राम रहीम और डेरे को अलग रखिए और जानिए कि सच्चा सौदा सही मायने में
है क्या
? गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कर दुनिया को
क्या संदेश दिया था
? अगर सही अर्थों में ये जान लिया जाए तो दुनिया भर में भूखे,
बीमार लोगों के कष्ट काफी हद तक कम हो जाएं…
गुरु नानक देव जी जब 18 वर्ष के थे तो उनके पिता मेहता कालू
जी ने उन्हें कारोबार के लिए घर से बाहर भेजा…उनके पिता निराश थे कि गुरु साहब का मन
खेती और अन्य सांसारिक कामों में नहीं रमता था…उन्होंने सोचा कि कारोबार में गुरु नानक
देव जी को शायद लगाने से दो फायदे हो सकते हैं- एक तो मुनाफ़े वाला कारोबार शुरू
हो जाएगा और दूसरा गुरु नानक देव जी पूरा दिन ग्राहकों से बात करते हुए खुश
रहेंगे.
   
यही सब सोचते हुए पिता मेहता कालू जी ने एक शुभ दिन चुना और
भाई मरदाना जी को बुलाया जिससे कि उन्हें गुरु साहिब के साथ भेजा जा
सके…उन्होंने 20 रुपए गुरु साहिब और भाई मरदाना जी को दिए…साथ ही मरदाना जी से
कहा,  
नानक के साथ जाओ, कुछ विशुद्ध
चीज़ें खरीद कर लाओ…जिन्हें बेच कर मुनाफ़ा कमाया जा सके…इस तरह अगर तुम
मुनाफे वाला लेनदेन करने में कामयाब रहे तो अगली बार मैं तुम्हें और ज़्यादा पैसे
देकर चीज़ें खऱीदने के लिए भेजूंगा
…  
गुरु साहिब और भाई मरदाना जी ने तलवंडी से चूहड़खाना की ओर
बढ़ना शुरू किया जिससे कि वहां से कारोबार के लिए कुछ चीज़ें खरीदी जा सकें…वो
अभी 10-12 मील ही चले होंगे कि ऐसे गांव में पहुंच गए जहां लोग भूख-प्यास से बेहाल
थे…पानी की किल्लत की वजह से बीमारी फैली हुई थी…
ये सब देख गुरु साहिब ने भाई मरदाना जी से कहा, पिता जी ने
हमें कोई मुनाफ़े वाला काम करने के लिए कहा था…कोई भी सौदा इससे ज़्यादा मुनाफ़े
वाला नहीं हो सकता कि जरूरतमंदों को खाना खिलाया जाए और तन ढकने के लिए कपड़ा दिया
जाए…मैं इस सच्चे सौदे को नहीं छोड़ सकता…ऐसा कम ही होगा कि हमें इस तरह का
मुनाफ़े वाला कारोबार करने का मौका मिले
’…
गुरु साहब जितने पैसे भी उनके पास थे वो सब लेकर अगले गांव
पहुंचे और वहां से इस गांव के बीमार लोगों के लिए बहुत सा
खाने का सामान
और पानी ले आए… गुरु साहिब ने जिस काम में 20 रुपए का निवेश किया उसी को आज
लंगर कहा जाता है…
इसु भेखे थावहु
गिरहो भला जिथहु को वरसाई
 (गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 587-2)
इन भिखारियों का चोला पहनने से बेहतर है कि
घर-गृहस्थी वाला होकर दूसरों को दिया जाए…
गुरुदेव साहिब और भाई मरदाना जी गांव वालों के
लिए खाना और पानी लाने के साथ जो पैसे बचे थे, उससे उनके लिए कपड़े ले आए…फिर
गांव वालों से छुट्टी लेकर वापस चले तो बिल्कुल खाली हाथ थे…
जब दोनों तलवंडी पहुंचे तो गुरु नानक देव जी ने भाई मरदाना
जी से कहा,
आप गांव अकेले जाओ…मैं इस कुएं पर बैठा हूं…भाई मरदाना
जी ने गांव जाकर पिता मेहता कालू जी को सब कुछ बताया….साथ ही ये भी बताया कि
गुरु नानक देव जी कहां बैठे हैं…मेहता कालू जी ये सब सुन बहुत क्रोधित हुए कि
उन्होंने सारे पैसे जरूरतमंद लोगों के लिए खाना, कपड़े खरीदने पर खर्च दिए और कोई
मुनाफ़ा नहीं कमाया…पिता मेहता कालू जी अपना सारा काम बीच में छोड़ कर भाई
मरदाना जी के साथ वहां पहुंचे जहां गुरु नानक देव जी बैठे थे…
गुरु नानक देव जी ने पिता से कहा कि वो उन पर क्रोधित ना
हों…गुरु साहिब ने ये समझाने की कोशिश की कि उन्होंने उनके पैसे के साथ कुछ ग़लत
नहीं किया बल्कि सही मायने में
सच्चा सौदा किया…



पिता मेहता कालू के लिए पूंजी जुटाना ही सही सौदा था
क्योंकि इस दुनिया में पैसे को ही उत्तमता की पहचान माना जाता है. ये धनवान ही
होता है जिसे बुद्धिमान माना जाता है…सिर्फ अमीरों को सज्जन, ईमानदार, पवित्र और
मानवता का प्रेमी माना जाता है…अब ये पैसा किस तरह कमाया गया, इस और कोई ध्यान
नहीं दिया जाता…
गुरु नानक देव ने जिस जगह सच्चा सौदा किया था वहां गुरुद्वारा सच्चा सौदा का
निर्माण किया गया…गुरुद्वारा सच्चा सौदा फारूकाबाद (पाकिस्तान) में स्थित
है…सिख धर्म का आधार ही दूसरों की भलाई करना है…जरूरतमंदों के साथ चीज़ें
बांटना ही एक सिख का दिन बना देता है…जीवन का सच्चा सौदा यही है कि अपनी कमाई का
सदुपयोग जरूरतमंदों के साथ बांट कर किया जाए…जिस तरीके से भी उनकी मदद की जा सके
, की जाए…
सच्चा सौदा को लेकर कुछ और कहानियां भी हैं कि गुरु नानक
देव जी ने पिता के दिए हुए पैसे से भूखे साधुओं का पेट भरा था…हालांकि गुरु नानक
देव जी ने साधुओं को खाना खिलाया या भूखे ग्रामीणों को, इस पर मत भिन्नता को लेकर
इन तथ्यों पर गौर किया जाना चाहिए…गुरु नानक देव जी खुद अपने पुत्र की उदासी
साधु के तौर पर जीवन शैली के समर्थक नहीं थे…इसीलिए उन्होंने भाई लहणा को दूसरा
गुरु (श्री गुरु अंगद साहिब जी) बनाया…ये जिन दिनों की बात है उन दिनों 20 रुपए
बहुत बड़ी रकम होती थी…इतनी बड़ी कि पूरे गांव की मदद की जा सके…ये राशि
निश्चित तौर पर उस राशि से कहीं ज्यादा होती जो कुछ साधुओं का पेट भरने के लिए
चाहिए होती…
गुरुद्वारा सच्चा सौदा साहिब, पाकिस्तान के जिस फारूकाबाद
में स्थित है, वहां प्रचलित कहानियां भी यही कहती हैं कि गुरु नानक देव जी ने गांव
के भूखे बीमार लोगों की मदद के लिए पिता की दी हुई सारी रकम खर्च की
थी…फारूकाबाद के एक बुजुर्ग मुस्लिम ने कहा कि अपने पूर्वजों की संकट के समय मदद
के लिए ये क्षेत्र गुरु नानक देव जी के लिए हमेशा शुक्रगुज़ार रहेगा…  
गुरु नानक देव जी ने जो सच्चा सौदा किया उसी से गुरु के
लंगर की परंपरा की नींव पड़ी…गुरु नानक देव जी ने जिस 20 रुपए का निवेश किया उसी
ने दुनिया भर में सिखों को जरूरतमंदों, गरीबों और बीमारों की सेवा के लिए प्रेरित
किया…साथ ही जैसा कि गुरु अमर दास जी ने संदेश दिया, उसी का पालन किया कि घर
गृहस्थी में रहते हुए भी दूसरों की मदद के लिए कभी पीछे ना रहो…
#हिन्दी_ब्लॉगिंग 
Visited 1 times, 1 visit(s) today
error

Enjoy this blog? Please spread the word :)