शिरडी के साई बाबा को भी नहीं छोड़ा…खुशदीप

देते हैं भगवान को धोखा, इन्सां को क्या छोड़ेंगे…45 साल पहले आई मनोज कुमार की फिल्म उपकार का ये गाना शिरडी में हक़ीक़त साबित हुआ है…12 जून को एक अज्ञात भक्त ने शिरडी के साई बाबा को 25 लाख रुपये की शॉल चढ़ाते हुए दावा किया था कि वो सोने के असली तार, हीरे-जवाहरात से जड़ी है…लेकिन शिरडी साई संस्थान के वैल्यूअर ने शॉल की जांच की तो वो नकली निकली…25 लाख की शॉल 25 हज़ार की भी नहीं निकली…जब शिरडी साई संस्थान ने शॉल चढ़ाने वाले भक्त से संपर्क साधा तो वो भी हैरान रह गया…भक्त का कहना है कि पुणे के जिस कारीगर से उसने शॉल बनवाई, उसी ने धोखा किया है…भक्त ने शिरडी साई संस्थान को 25 लाख रुपये देने की भी पेशकश की है…इस पूरे वाकये ने शिरडी में चढ़ने वाले चढ़ावे के प्रबंधन को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं…आखिर शॉल के नकली होने का पता चलने में एक महीने का वक्त क्यों लग गया…सोने-चांदी और बड़ी नकद राशि की भेंट को लेकर शिरडी साई संस्थान में क्या तौर-तरीके हैं, इसके खुलासे के लिए पारदर्शी व्यवस्था होनी चाहिए…

अब हर कोई तो ट्रावणकोर के राजे-महाराजों की तरह ईमानदार होगा नहीं…जो केरल के पद्मनाभ मंदिर की तरह तहखानों में जमा अकूत खजाने को भगवान की संपत्ति समझेगा…राजे-रजवाड़े खत्म होने के बाद ये राजघराना चाहता तो सारी संपत्ति को चोरी-छिपे ठिकाने लगा सकता था…लेकिन उसने ऐसा नहीं किया…अब ज़रूर सबकी नज़रों में आ जाने की वजह से पांच लाख करोड़ के खजाने की हिफ़ाज़त को ख़तरा हो जाएगा…खैर बात हो रही थी, शिरडी के साई बाबा को चढ़ी 25 लाख की नकली शॉल की…देखिए अपनी आंखों से ही उस शॉल को…

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जानना चाहते हैं, कौन ज़ोर-शोर से कह रहा है…कांग्रेस पार्टी ज़िंदाबाद…तो इस लिंक पर जाइए…
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Atul Shrivastava
13 years ago

कलयुग।
क्‍या कहें इस पर
तुलसी दास ने क्‍या खूब कहा है,
'तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग….'

प्रवीण पाण्डेय

नये नये तरीके जल्दी से पैटेन्ट करवा लीजिये।

नीरज गोस्वामी

चलिए शाल पच्चीस लाख की नहीं निकली लेकिन क्या साईं बाबा को ऐसी शालों की आवशयकता है? हम इश्वर को संतों को भी रिश्वत देते हैं…हद है…

नीरज

डॉ टी एस दराल

लगा गया चूना . यही है आज के आदमी का सच्चा स्वरुप .

Satish Saxena
13 years ago

हर जगह बेईमान बैठा है …कारीगर भी रईस बनना चाहते हैं तो जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा !
शुभकामनायें खुशदीप भाई !

शिवम् मिश्रा

महाराज कलयुग है … कुछ भी संभव है !

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