एक दौर ऐसा था जब हर पोस्ट पर स्लॉग ओवर ज़रूर देता था…ब्लॉगिंग के सिलसिले में विराम आया लेकिन स्लॉग ओवर का मक्खन हर किसी को याद रहा…साथ ही उसकी पत्नी मक्खनी, बेटा गुल्ली और दोस्त ढक्कन भी…अब भी कई जगह से शिकायत मिलती रहती हैं कि मक्खन को कहां भेज दिया…
आज उसी शिकायत को दूर करने की कोशिश कर रहा हूं, मक्खन की हैट्रिक के साथ….

1. दूध के पैकेट और अंडे
मक्खनी पति मक्खन से…”बाजार
जाओ और दूध का एक पैकेट लेकर आना…हां, अगर अंडे दिखें तो 6 ले
आना…”
जाओ और दूध का एक पैकेट लेकर आना…हां, अगर अंडे दिखें तो 6 ले
आना…”
थोड़ी देर बाद मक्खन लौट आया…हाथों में दूध
के 6 पैकेट थे…
के 6 पैकेट थे…
मक्खनी गुस्से से…”तुम
जाहिल आदमी! दूध के 6 पैकेट क्यों लाए?”
जाहिल आदमी! दूध के 6 पैकेट क्यों लाए?”
मक्खन…मुझे एक दुकान में अंडे
दिखाई दिए थे, इसीलिए….
दिखाई दिए थे, इसीलिए….
(पक्का ऊपर वाले किस्से को आप दोबारा पढ़ रहे
हैं)
हैं)
2. मक्खन की डेली डोज़
मक्खन चेक अप के बाद डॉक्टर से बोला…
“डॉक्टर साहब ड्रिंक तो कर सकता हूं ना…”
डॉक्टर को मक्खन के भोलेपन पर तरस आ गया और
उसने डेली 2 पैग की इजाज़त दे दी…
उसने डेली 2 पैग की इजाज़त दे दी…
अगले दिन मक्खन ने 2 पैग लिए…2 के बाद तीसरा
भी बनाने लगा तो दोस्त ढक्कन चिल्ला पड़ा…
भी बनाने लगा तो दोस्त ढक्कन चिल्ला पड़ा…
”ये क्या तीसरा कैसे ले रहा है?”
मक्खन मासूमियत के साथ…
“2 पैग की पर्ची मैंने दूसरे डॉक्टर से भी ली
है…”
है…”
3. मक्खन तो मक्खन है….
बेरोज़गारी से मक्खन तंग आ गया तो उसने मोहल्ले
में जरनल स्टोर खोल लिया…बदकिस्मती देखिए कि मक्खन के स्टोर खुलने के कुछ ही दिन
बाद बड़ी कम्पनी का स्टोर भी सामने ही खुल गया…
में जरनल स्टोर खोल लिया…बदकिस्मती देखिए कि मक्खन के स्टोर खुलने के कुछ ही दिन
बाद बड़ी कम्पनी का स्टोर भी सामने ही खुल गया…
बड़ी कंपनी के स्टोर ने बाहर बड़ा सा बैनर लगा
दिया….’मक्खन 100 रुपए’
दिया….’मक्खन 100 रुपए’
मक्खन ने ये देख एक बड़े से कागज़ पर लिख
दिया….’मक्खन 90 रुपए’
दिया….’मक्खन 90 रुपए’
अगले दिन कंपनी के स्टोर के बाहर बैनर था…’मक्खन
80 रुपए’
80 रुपए’
इसी चक्कर में दो दिन बाद कंपनी के स्टोर के
बाहर टंगा था…’मक्खन 60 रुपए’
बाहर टंगा था…’मक्खन 60 रुपए’
मॉर्निंग वॉक करने वाले एक बुजुर्ग सज्जन ये
नज़ारा रोज़ देख रहे थे…उन्होंने मक्खन के स्टोर के पास रुक कर समझाना शुरू
किया…
नज़ारा रोज़ देख रहे थे…उन्होंने मक्खन के स्टोर के पास रुक कर समझाना शुरू
किया…
’भाई
मेरे,
वो बड़ी कंपनी है…वो बिक्री बढ़ाने के लिए इस
तरह के हथकंडे आजमाते हैं…वो घाटा झेलकर भी मक्खन बेच सकते हैं…लेकिन तू क्यों
मक्खन के चक्कर में खुद को लुटाने पर तुला है…’
मेरे,
वो बड़ी कंपनी है…वो बिक्री बढ़ाने के लिए इस
तरह के हथकंडे आजमाते हैं…वो घाटा झेलकर भी मक्खन बेच सकते हैं…लेकिन तू क्यों
मक्खन के चक्कर में खुद को लुटाने पर तुला है…’
मक्खन बुज़ुर्गवार के कान के पास झुका और
पेटेंट स्माइल के साथ बोला…
पेटेंट स्माइल के साथ बोला…
’चचा! मैं तो मक्खन बेचता ही
नहीं…’
नहीं…’
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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सही ….☺
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-08-2017) को "जीवन में है मित्रता, पावन और पवित्र" (चर्चा अंक 2688 पर भी होगी।
—
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
—
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'