लखनऊ में चूहा बने दो सांड…खुशदीप

कल की पोस्ट के वादे के मुताबिक आपको दो सांडों के चूहा बनने का आंखों देखा हाल सुनाऊंगा…लेकिन पहले महागुरुदेव अनूप शुक्ल की पोस्ट से बिना अनुमति लेकिन साभार लिया हुआ एक छोटा सा किस्सा…

फ़िराक साहब मुंहफ़ट थे। किसी को कभी भी कुछ भी कह देते थे। एक बार इलाहाबाद युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर अमर नाथ झा के लिये भी कुछ कह दिये। लोगों ने चुगली कर दी दरबार में। फ़िराक साहब को पता चला तो अमर नाथ झा से मिलने गये। दरबार लगा था झा जी का। अपना नम्बर आने पर आने पर फ़िराक साहब जब अन्दर गये तो पहले बाल बिखेर लिये। शेरवानी के बटन खोल लिये। कपड़े अस्त-व्यस्त कर लिये। अमर नाथ झा बोले -फ़िराक अपने कपड़े तो ठीक कर लो। सलीके से रहा करो।


फ़िराक बोले- अरे ये सलीका तो तुमको आता है अमरू! तुम्हारे मां-बाप इतने समझदार थे। सिखाया तुमको। हमारे मां-बाप तो जाहिल थे। कौन सिखाता हमको।


अमरनाथ झा बोले- फ़िराक अपने मां-बाप को इस तरह कोसना ठीक नहीं।


फ़िराक बोले- अमरू मैं अपने लोगों को नहीं कोसूंगा तो किसको कोसूंगा। अपने मां-बाप को , भाई- दोस्तों को नहीं कोसूंगा तो किसको कोसूंगा। तुमको नहीं कोसूंगा तो किसको कोसूंगा।


अमरनाथ झा बोले – ओके, ओके फ़िराक। आई गाट योर प्वाइंट। चलो आराम से रहो।


अनूप जी, मुझे भी किसी को कोई पाइंट देना था तो आपके किस्से से बढ़िया साधन और कोई नहीं दिखा…हां तो चलिए इस पाइंट पर यही फुलस्टॉप लगाता हूं…और आता हूं लखनऊ में अपने इतवार के प्रवास पर…शनिवार रात को सगन की पार्टी देर तक चलती रही…इसलिए सोना भी काफी देर से हुआ…लेकिन सुबह घड़ोली जैसी रस्मों की वजह से उठना जल्दी ही हो गया…अब दोपहर अपनी थी किया क्या जाए…सोचा चलो पत्नीश्री को अमीनाबाद घुमा कर ही खुश कर दिया जाए…अमीनाबाद जाने के लिए रिक्शा लिया…किसी भी शहर को जानना हो तो गाड़ी में मत घूमिए…अगर रिक्शा चलता है तो शहर का मिज़ाज जानने से बढ़िया और कुछ नहीं हो सकता…लखनऊ के रिक्शा वैसे भी एक्स-एक्स-एल यानि काफी बड़े होते हैं…लेकिन यहां रिक्शे वाले कम पैसे ही चार्ज करते नज़र आए…नोएडा या अन्य महानगरों की तरह मनमाने दाम वसूल नहीं करते…

खैर अमीनाबाद पहुंचे तो वहां का नज़ारा देखकर पत्नीश्री की तो जैसे लाटरी खुल गई…अगर जूतियों की दुकानें तो दुकानें ही दुकानें….लेडीज़ सूट, आर्टिफिशियल जूलरी, बैग्स…सभी का यही हाल था…मुझे एहसास हो गया कि पत्नीश्री को अब कम से कम दो तीन घंटे तो लगेंगे हीं…लेकिन मैं क्या करूंगा…अनमना सा साथ घूमता रहा…दिमाग में ब्लॉगिंग और ब्लॉगर ही घूमते रहे…इसी उधेड़बुन में था कि होटल से फोन आ गया…साथ ही आदेश भी जल्दी पहुंचों, लड़के वालों के घर से किसी रस्म के लिए लड़के की बहनें-भाभियां आई हुई हैं…मैं तो इस कॉल से खुश था लेकिन पत्नीश्री शॉपिंग सफारी में खलल पड़ने से ज़रूर परेशान दिखीं…होटल वापस आने के बाद रस्म पूरी हुई और मैं फिर खाली…

सोचा समय का सदुपयोग किया जाए और जागरण और आई-नेक्स्ट अखबारों के दफ्तर जाकर ब्लॉगर बिरादरी के राजू बिंदास (राजीव ओझा) और प्रतिभा कटियार से ही मिल आया जाए…जागरण के दफ्तर जाने का मेरा मकसद एक और भी था…मुझे खबर मिली थी कि मेरे पत्रकारिता के गुरु रामेश्वर पांडेय जी ने आजकल लखनऊ में ही जागरण की कमान संभाल रखी है…मैं मीराबाई मार्ग पर जागरण के दफ्तर पहुंच गया…वहां बाहर कुछ खाली खाली देखकर दिमाग थोड़ा खटका…लेकिन फिर मैं दफ्तर में दाखिल हो गया…अंदर जाकर पता चला कि रविवार होने की वजह से न तो पांडेय जी दफ्तर में थे और न ही राजीव ओझा जी…वापस चलने को हुआ तो ध्यान आया कि प्रतिभा कटियार भी तो आई-नेक्सट में ही कार्यरत हैं…आई-नेक्सट के आफिस में जाकर पूछा ही था कि प्रतिभा कटियार…तो प्रतिभा सामने ही बैठी हुई थीं…मैंने अपने नाम का परिचय दिया…थैंक्स गॉड, प्रतिभा कम से कम मेरे नाम से तो वाकिफ़ थीं…प्रतिभा से मिलकर और थोड़ी देर बात कर अच्छा लगा…उनके बोलने से ही पता चल गया कि लेखनी चलाते वक्त भी वो कमाल ही करती होंगी…प्रतिभा ने चाय-बिस्किट भी मंगाई…वहीं मैंने पांडेय जी का सेल नंबर लेकर बात की…वो तब गोरखपुर में थे…काफ़ी साल बाद पांडेय जी से बात करने पर मैंने खुद को धन्य महसूस किया…प्रतिभा से विदा लेकर वापस होटल आया…

सोचा, शाम हो चली है, तैयार ही हो लिया जाए…लेकिन फिर वही प्रॉब्लम…सूट प्रेस करवाना था..नोएडा से करवा कर चला था…लेकिन बैग में तह कर रखने की वजह से सिलवटें आना लाज़मी था…लेकिन इस प्रेस के चक्कर ने मुझे वो नज़ारा दिखाया जिसे मैं ज़िंदगी में कभी नहीं भूल सकता…

नाका हिंडोला के जिस होटल में ठहरा था, वहीं साथ ही सटा हुआ नया गणेशगंज बाज़ार था…वहां मैंने एक दुकान पर सूट प्रेस होने के लिए दिया…और टाइम पास करने के लिए वहीं पान के खोमचे के पास खड़ा होकर बाज़ार की रौनक देखने लगा…तभी सामने से एक सांड आता दिखाई दिया…वो सांड जैसे हम छींक मारते हैं, इसी तरह बार-बार गर्दन हिला कर ज़ोर से हुंकार लगा रहा था……आने जाने वालों के दिल में दहशत भरने के लिए सांड का ये रौद्र रूप काफ़ी था…सब बचकर निकल रहे थे…तभी क्या देखता हूं कि हरी टी-शर्ट में एक 15-16 साल का किशोर (सरदार) सांड के सामने आ खड़ा होता है…अपना एक हाथ ऊपर कर उंगली उठाता है ठीक वैसा ही अंदाज़ जैसे श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उंगली पर उठाया था…किशोर को देखते ही सांड तेज़ी से 180 डिग्री के एंगल में उलटा घूमा और सरपट भागने लगा…ऐसे जैसे 100 मीटर की रेस लगा रहा हो…तभी गली से किशोर के लिए आवाज़ आई कि एक सांड वहां भी खड़ा है…किशोर ने उसके सामने जाकर भी वही एक्शन-रीप्ले किया…उस सांड की भी फर्राटा दौड़ देखने को मिल गई…ये सांड काफी दूर जाकर मुड़ कर देखने लगे कि सरदार बच्चा अब भी खड़ा है या नहीं…सांडों की ऐसी दयनीय हालत मैंने पहले कभी नहीं देखी …वहीं दुकान वाले बताने लगे कि कभी भी सांडों को भगाना होता है तो उसी सरदार बच्चे की सेवाएं ली जाती हैं…अब बेचारे दोनों सांड वहीं गलियो में सरदार बच्चे के डर से छुप-छुप कर घूमते रहते हैं…मुझे ये सब देखकर यही ताज्जुब हो रहा था कि आखिर इस सरदार बच्चे में ये कौन सा जादू है जो सांडों को भी डर के मारे चूहा बना देता है…अगर मेरे पास वहां वीडियो कैमरा होता तो ज़रूर ये नज़ारा कैद कर आपकी खिदमत में पेश करता…इसके लिए मैं लखनऊ के ब्लॉगर भाइयों से ही अनुरोध करता हूं कि एक बार खुद भी अपनी आंखों से नया गणेशगंज जाकर ये नज़ारा देंखें…हो सके तो इसका वीडियो भी ज़रूर बनाएं…वहां किसी भी दुकानदार से सरदार बच्चे और सांडों के बारे में पूछा जाए तो वो आपको उनका सारा पता बता देगा…वाकई ये नज़ारा लिखने की बजाय देखने की चीज़ है…

हां, एक बात तो बताना भूल ही गया कि महफूज़ से मुलाकात बेशक नहीं हो पाई, लेकिन उसने फोन पर मेरा एक बहुत ज़रूरी काम करा दिया…दरअसल मेरी बहन और जीजाजी की गोरखपुर धाम एक्सप्रेस से सेकंड एसी में वापसी की वेटिंग में 3-4 नंबर की टिकट थीं…कन्फर्म नहीं हो पा रही थीं…महफूज को मैंने पीएनआर नंबर एसएमएस किया…महफूज़ ने गोरखपुर स्टेशन पर अपने जानने वाले किन्हीं उपाध्याय जी से संपर्क किया…दोपहर बाद तक टिकट कन्फर्म होने की सूचना आ गई….मेरी ट्रेन 24 जनवरी की सुबह पांच बजकर पांच मिनट की थी…ट्रेन एक घंटा देरी से ज़रूर आई लेकिन उसने दोपहर तीन बजे तक गाजियाबाद पहुंचा दिया…

स्लॉग चिंतन

Respect yourself but never fell in love with you

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Raman Shukla
14 years ago

baki sab to aapne bahut achha likha hai hamesha ki tarah kuch na kuch naya hi mila parantu afsos hua jaan ke ki jab ticket waiting thi to koi anya sadhan se jaane ki jagah aapne "Jugad technology" ka sahara liya aur apni ticket confirm kara li .. jara ek baar soch ke batayiyega ki kya ye sahi tha

वाणी गीत
14 years ago

किस्सा रोचक है !

राज भाटिय़ा

अरे खुशदीप भाई इस सरदार के बच्चे को जल्दी ढुढो ओर इस महंगाई रुपी सांड के आगे खडा करो जी,यह कमबखत वापिस जाये, ओर सरदार जी का नाम रोशन करे….. जिसे सभी मेमना कहने लगे हे

Er. सत्यम शिवम

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये……"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
आपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

मैं तो कुछ और ही समझा था… लेकिन वाह रे सरदार जी, एक उंगली ने क्या कमाल कर दिया..

प्रवीण पाण्डेय

हम नहीं कोसेंगे तो कौन कोसेगा।

डॉ टी एस दराल

कभी कभी पिछले जन्म की बातें याद रह जाती हैं ।
पिछले जन्म में सांड पति और सरदार पत्नी रहा होगा ।

Randhir Singh Suman
14 years ago

nice

Rakesh Kumar
14 years ago

Khushdeep bhai,kahin aisa to nahi, kaam aapka ho aur naam sardar ka ho.Asal baat to saand hi batayenge.

shikha varshney
14 years ago

अरे खुशदीप जी ! सरदार के जादू का रहस्य तो बताना था न ..खैर बात है सचमुच बहुत हैरत अंगेज.
और स्लोग चिंतन ….दि बेस्ट…

रवीन्द्र प्रभात

यह बहुत मजेदार रहा खुशदीप भाई, समीर जी ने सही कहा सरदार के ब्लॉग कुलवाओ, नंबर मुझे दे दीजिये सरदार का ब्लॉग मैं खुलवा दूंगा …हा.हा…हां , क्या बात है !

संगीता पुरी

आश्‍चर्यजनक .. शायद लखनऊ के ब्लॉगर भाई आपके अनुरोध पर नया गणेशगंज जाकर ये नज़ारा देंखें.. और इसका वीडियो पोस्‍ट करें .. इंतजार है !!

Sushil Bakliwal
14 years ago

आश्चर्यजनक… अजब लखनऊ की गजब कहानी.

निर्मला कपिला

सरदार होते ही जाँबाज हैं उनके आगे साँड क्या चीज़ है। मगर ये वाक्या बाकई हैरत अंगेज़ है। पता चले तो फिर से बतायेण। आशीर्वाद।

vandana gupta
14 years ago

ये तो वैसा ही हो गया………अजब फ़िल्म की गज़ब कहानी।

किलर झपाटा

यू नो खुश्शू भैया, दैट सिंग इस आलवेज़ किंग। हा हा। आपको नहीं मालुम है भाई, लखनऊ में इसी तरह के सांड पाए जाते हैं जो सरदार के सामने हमेशा चूहा बन जाते हैं।

Unknown
14 years ago

wonderful .

Udan Tashtari
14 years ago

सरदार जी का ब्लॉग खुलवाओ…काम आयेंगे.

Satish Saxena
14 years ago

उपाध्याय जी का फोन नंबर और बताओ महफूज़ मियां से मालुम करके …..
शुभकामनाये उपाध्याय जी को !

ब्लॉ.ललित शर्मा


हा हा हा
यह तो गजब हो गया। सांडो का भागना।
नखलऊ तो हम भी घूमे थे।
सायरन बजाती बत्तियों वाली गाड़ी में।
अबकी बार रिक्शे का मजा लेते हैं।

आभार

घर घर में माटी का चूल्हा

बेनामी
बेनामी
14 years ago

लखनवी नवाब, टुंडे कबाब
प्रकाश कुल्फी,फिजाँ हल्की फुल्की
माया की मूर्ति, चिकन वाली कुर्ती
वो अचकन के टांके,वो लखनऊ के बाँके
विक्रम की सवारी,गुटखे सुपारी
अमीना बाज़ार,गोमती की धार
बिना पेड़ बाग, अदब के चिराग
पहले आप आप, ये लखनऊ की छाप
बड़े खुसनसीब घूम आए आप

Shah Nawaz
14 years ago

अरे यह कैसा किशोर है??? बड़ी अचंभित करने वाली बात बताई आपने… ऐसे बन्दे को तो दिल्ली में होना चाहिए, यहाँ बहुत से सांड घूमते हैं और रोकने वाला कोई नहीं है… 🙂

दिनेशराय द्विवेदी

चलो सांड काबू में करने वाले 'सरदार' पर रिसर्च हो जाए।

S.M.Masoom
14 years ago

खुशदीप भाई उस बच्चे का जो एक्शन था उसे किसी सांड के सामने दोहरा के देखिये .हो सकता है आप से भी सांड भाग जाए..

शिवम् मिश्रा

वैसे खुशदीप भाई … उस लड़के का जादू था क्या जो सांड चूहे बन जाते है उसके सामने … इस का कुछ पता नहीं किया आपने ?

वैसे जो भी हो … है यह भी एक तिलिस्म ही … जैसा अपने महफूज़ भाई का तिलिस्म है … मुलाकात भी नहीं हुयी … फिर भी काम हो गया … बातों बातों में … किस्सा यह आम हो गया !

क्यों है ना ??

जय हिंद !

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