राहत का झुनझुना बाजे घणा…खुशदीप​


जो सत्ता में है वो पिता जी की जागीर समझ कर देश पर राज कर रहे हैं…रोज़ आम आदमी की जेब एक बिलांग छोटी करते जा रहे हैं…यूपीए सरकार​ टू-जी का घंटा बजाने के बाद कोयले की कालिख मुंह पर लगाकर नज़र के टीके की तरह अपनी बलैंया उतरवा रही है…कम एनडीए भी नहीं है…जिन​ राज्यों में एनडीए की सरकारें हैं, वो भी जनता की पुंगी बजाकर अपना उल्लू सीधा करने में पीछे नहीं है…हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार है…इसी​ साल यहां विधानसभा चुनाव होने हैं…राज्य सरकार ने आज करोड़ों रुपये के खर्च पर अखबारों में एक विज्ञापन दिया है…​



राहत के राशन नाम के इस विज्ञापन को अब ज़रा गौर से पढ़िए…​
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​आटा, चावल, तीन दाल, सरसों का तेल, रिफाइंड तेल और नमक सस्ते दामों पर मुहैया करा कर प्रेम सिंह धूमल सरकार ने हिमाचल के साढ़े सोलह​ लाख परिवारों की मददगार होने का दावा किया है…विज्ञापन में खुद ही कहा गया है कि इससे हर परिवार को पांच साल में तीस हज़ार रुपये का फ़ायदा​​ हुआ…यानी एक साल में एक परिवार को छह हज़ार रुपये का फ़ायदा…यानी एक महीने में पांच सौ रुपये का फ़ायदा…एक दिन में सोलह रुपये छियासठ पैसे का फ़ायदा…एक परिवार में अगर पांच सदस्य मान लिए जाएं तो हर सदस्य को तीन रुपये  तेंतीस  पैसे का फ़ायदा…अब इस ऊंट के मुंह में जीरे वाली राहत का ढोल पीटने के लिए राज्य सरकार जो करोड़ों रुपये का बजट लुटा रही है, अगर वो भी जनता पर ही खर्च कर देती तो शायद उसका कुछ और भला हो जाता… ऐसे में धर्मेद्र की फिल्म इज्ज़त का गाना याद आ रहा है…

क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फ़ितरत छिपी रहे, 
नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छिपी रहे,
दान का चर्चा घर घर पहुंचे, लूट की दौलत छिपी रहे…
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