अगर कोई क़ानूनी पेंच और न फंसा तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के तीन दोषियों- मुरुगन, संथन और पेरारिवालान को अगली 9 सितंबर को फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाएगा…यानि राजीव गांधी की हत्या के बीस साल साढ़े तीन महीने बाद एलटीटीई के ये तीन पूर्व सदस्य अपने किए के अंजाम तक पहुंचेंगे…
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल तीनों दोषियों की ओर से दाखिल दया याचिका 12 अगस्त को ठुकरा चुकी हैं…लेकिन जैसे जैसे 9 सितंबर नज़दीक आती जा रही है तमिलनाडु में सियासत उबाल खाने लगी है…तमिल मुद्दे पर पूर्व में एलटीटीई से सहानुभूति रखने वाली पार्टियां खास तौर पर मुखर हैं…एमडीएमके सुप्रीमो वाइको ने मुख्यमंत्री जयललिता से इस मामले में फौरन दखल देकर केंद्र से बात करने की मांग की है…डीएमके चीफ़ करुणानिधि का कहना है कि अगर इन तीनों की फांसी माफ़ कर दी जाती है तो तमिल खुश होंगे…करुणानिधि पिछले हफ्ते सोनिया गांधी से भी तीनों दोषियों की जान बख्शने के लिए पहल करने की मांग कर चुके हैं..करुणानिधि के मुताबिक अगर राजीव गांधी खुद जिंदा होते और उनके सामने ऐसा मामला आता तो वो भी सज़ा माफ़ करने के हक में रहते…
हालांकि मुख्यमंत्री जयललिता ने साफ कर दिया है कि राष्ट्रपति की ओर से दया याचिका खारिज़ होने के बाद वो कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है…जयललिता के मुताबिक दोषियों की फांसी माफ़ करना उनके अधिकार से बाहर की बात है…जयललिता ने इस मुद्दे पर सियासत न करने की भी नसीहत दी है…
कांग्रेस का कहना है कि उसकी इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं है…क़ानून अपना काम कर रहा है…जनता पार्टी के मुखिया सुब्रह्मण्यम स्वामी और बीजेपी नेता वेंकैया नायडू, राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी माफ़ करने के हक में नहीं हैं…वहीं बीजेपी की लाइन से अलग मशहूर वकील राम जेठमलानी तीनों दोषियों के लिए मंगलवार को मद्रास हाईकोर्ट में पैरवी करने जा रहे हैं…
मद्रास हाईकोर्ट में तीनों दोषियों की ओर से एक रिवीज़न पेटीशन दाखिल की गई है…इसमें राष्ट्रपति से दया याचिका पर पुनर्विचार करने की अपनी अर्जी का हवाला दिया गया है…तीनों दोषियों की ओर अपनी फांसी पर रोक लगाने की मांग करते हुए कोर्ट से कहा गया है कि उनकी पिछली दया याचिका पर राष्ट्रपति की ओर से फैसला करने में ग्यारह साल लगे थे…यही तर्क देते हुए कहा गया है कि दूसरी दया याचिका पर भी लंबा वक्त लगने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता…ये भी दलील दी जा रही है कि बीस साल तो वो पहले ही जेल में काट चुके हैं…
अब आप सब से सीधा प्रश्न…आपकी क्या राय है…मुरूगन, संथन (दोनों श्रीलंकाई) और पेरारिवालान (भारतीय) की सज़ा-ए-मौत बरकरार रखनी चाहिए और नौ सितंबर को उन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया जाना चाहिए या उनकी फांसी माफ़ कर देनी चाहिए…
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फ़िलहाल तो टल ही गई ।
पता नहीं, न्यायिक मामला कैसे राजनैतिक हो जाता है?
फाँसी तो मिलनी चाहिए ..पर फाँसी देगा कौन ? आज की तारीख में देश में फाँसी देने के लिए एक भी जल्लाद नहीं है जो फाँसी दे सके …
किसी भी व्यक्ति को मृत्यु-दण्ड मिलने से समाज में संदेश जाता है लेकिन यदि यह समाप्त कर दिया जाएगा तो फिर अपराध अधिक बढेंगे। आजीवन कारावास तो कहने को आजीवन है लेकिन इनकी मियाद तो अधिकतम बीस वर्ष ही है। ऐसे जघन्य अपराधियों के लिए क्षमा याचना करना तर्क संगत प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि कानून व्यक्तिगत नहीं होते अपितु समाज के लिए होते हैं।
बिलकुल… इनको कानून के अनुसार दंड मिलना ही चाहिए… इनको ही क्या, जितने लोग भी फांसी की सज़ा पा चुकें हैं, सब के सब को जल्द से जल्द सज़ा मिलनी चाहिए…
inko to faasi milni hi chaiye
तीनों को कानून के अनुसार दंड मिलना चाहिए।
हालांकि मैं व्यक्तिगत रुप से मृत्युदंड के विरुद्ध हूँ। मृत्युदंड वास्तव में दंड ही नहीं है। यह तो क्रोध या पश्चाताप में जल रहे व्यक्ति के लिए ईनाम है।
इन तीनों की पैरवी करने वालों को भी इनके ही साथ फाँसी दे दी जानी चाहिए…
गुस्सा आता है कई बार अपने देश और इसके कानूनों पर …मेरी समझ में ये बात नहीं आती कि अगर सबूत थे तो इन्हें अभी तक जिन्दा ही क्यों रखा गया?
इन्होने जघन्य अपराध किया है इसलिए कानून को अपना काम करने देना चाहिए|
मैं इन्हें जल्द से जल्द फांसी पर लटकाने के हक में हूँ|
जिस तरह कांग्रेस अफजल आदि की फांसी पर राजनैतिक फायदे यानि वोट बैंक को देखते हुए लटकाने में लगी है उसी तरह तमिल नेता भी इनके हक में बोले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं|
जितने फांसी पाये अपराधी हैं, सब को एक साथ ही सूली पर क्यों न चढ़ा दिया जाये.