ये तस्वीर हम सब के मुंह पर तमाचा है…खुशदीप

दिल्ली के ओखला रेलवे स्टेशन के बाहर 19 साल की माधुरी और उसके दो महीने के बच्चे की ये तस्वीर हम सबके मुंह पर तमाचा है…हम जो कि बड़ी बड़ी बाते करते हैं…जो देश दुनिया को बदलने के लिए क्रांति की दुहाई देते हैं…ये तमाचा है उस समाज के मुंह पर जो सर्दी की ठिठुरती रात में एक मां और नवजात की इस हालत को देख कर भी नहीं पसीजता…ये तमाचा है उन जननायकों के मुंह पर जो दिल्ली में सर्दी के डर से अनशन की जगह मुंबई के आज़ाद मैदान में ले जाने की सोचने लगते हैं…ये तमाचा है उस सरकार के मुंह पर जिसके लिए फिक्र कड़ाके की सर्दी में खुले आसमान के नीचे रात बिताते ये मां-बच्चा नहीं बल्कि विकास दर के घोड़े को सरपट दौड़ाने की है…

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्टर मल्लिका जोशी और फोटोग्राफर संजीव वर्मा को सलाम…जिन्होंने ये स्टोरी की…दिल्ली में सर्दी का अब ये आलम है कि यहां रात को न्यूनतम तापमान (4.7) डिग्री) शिमला जैसे हिल स्टेशन को भी पीछे छोड़ रहा है…ऐसे में छत के नीचे सिर छुपाने की माधुरी की आखिरी उम्मीद भी कल टूट गई जब ओखला स्टेशन के बाहर रेलवे की टीम ने निर्माणाधीन अस्थायी रैन-बसेरे को गिरा दिया…

दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) की ओर से एनजीओ प्रेरणा को ये शेल्टर बनाने की इजाज़त देने के बावजूद रेलवे ने बुलडोज़र चलवा कर सब साफ़ करा दिया..ये सरकार के ही विभागों में संवादहीनता के चलते हुआ…DUSIB ने पिछले हफ्ते ही तय किया था कि सर्दियों में कहां कहां शेल्टर बनाए जा सकते हैं…इसी के बाद शुक्रवार को यहां शेल्टर बनना शुरू हुआ था…लेकिन रेलवे के अधिकारियों को इसकी कोई जानकारी नही दी गई…

बहरहाल हमें क्या, एक मां-बेटा की हड्डियां चिलचिलाती ठंड में कपकपाती रहें, हम तो रजाई तान कर सोएं…

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Arun sathi
13 years ago

दुखद तो है पर क्या यह मेरे मुंह पर एक तमाचा नहीं है?
सवाल यह भी तो है कि मैंने उसके लिए क्या किया?
क्या मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता?
या फिर सिर्फ दूसरों को कोस कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लें?

shikha varshney
13 years ago

तमाचों की आदत पड़ गई है हमें.

Atul Shrivastava
13 years ago

शर्मनाक है……
आधी दिल्‍ली को म्‍यूजियम और स्‍मारक बनाने वाली सरकार के गाल पर।

Satish Saxena
13 years ago

शर्मनाक हम सबके लिए ….

Shah Nawaz
13 years ago

अपने घरों को नरम-मुलायम और ऐशों-आराम से भरपूर गद्दों, चादरों, लिहाफों, कालीनों तथा, गीज़र, हीटर, ए.सी. माइक्रोवेव जैसी सहुलतों से ठुसाठुस भरने से फुर्सत मिले तो सोचे ना समाज के बारे में???

वैसे भी हर सर्दी में कितने ही गरीब लोग मर जाते हैं, अब किस-किस के बारे में सोचें? किस-किस का ख्याल करें??? कौन सा कोई हमारा अपना ठिठुर रहा है, कौन सा कोई अपना मर रहा है???

डॉ टी एस दराल

एच टी ने फोटो छाप दिया है तो माधुरी को अब कम्बल मिल ही जायेगा ।
लेकिन लाखों लोग हैं जो अभी भी फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं ।
क्या कभी यह देश विकसित कहला पायेगा !

Udan Tashtari
13 years ago

अफसोसजनक हालात!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

एक पढ़ने वाला लड़का अफसर बनते ही संवेदनहीन हो जाता है.
नई पीढ़ी बड़ी समझदार है. जो आज बूढ़े हैं, वह कल की नई पीढ़ी ही हैं.
समाजवाद केवल एक नारा है. तथाकथि समाजवादियों की कथनी, करनी और धन-दौलत देख लीजिए.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद

ऐसे तमाचों के अभ्यस्त हैं हमारे नेता और दर्शक भी।

दिनेशराय द्विवेदी

सार्वजनिक संस्थान भी अब निजि संस्थानों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। भारतीय संविधान में जो समाजवादी शब्द जोड़ा गया था, उसे तत्काल निकाल नहीं देना चाहिए?

प्रवीण पाण्डेय

हर एक को सहारा मिले..

DR. ANWER JAMAL
13 years ago

ये तमाचा है उस समाज के मुंह पर जो सर्दी की ठिठुरती रात में एक मां और नवजात की इस हालत को देख कर भी नहीं पसीजता.

संजय कुमार चौरसिया

sarkaar sirf apni chinta karti hai, aise tamache sarkar 1000 baar kha chuki hai

हम नहीं चाहते कि, ये लड़ाई कभी बंद हो ….>>>> संजय कुमार
http://sanjaykuamr.blogspot.com/2011/12/blog-post_17.html

सागर
13 years ago

कहाँ तो तय था चराग हर घर के लिए,
कहाँ चराग नहीं मयस्सर पूरे शहर के लिए

नहीं चादर तो पैर से पेट ढक लेंगे
ये लोग बड़े मुफीद हैं इस सफ़र के लिए

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