मैं हूं “ब्रदर इंडिया”…खुशदीप

महफूज़ अली…http://lekhnee.blogspot.com/2009/11/blog-post_18.html

दीपक मशाल…http://swarnimpal.blogspot.com/2009/11/blog-post_20.html

मेरे दो छोटे भाई…दोनों कुंआरे…दोनों मुझे जान से प्यारे…अब इनके हाथ पीले करने की फ़िक्र बड़े भाई को नहीं होगी तो और किसे होगी…सॉरी…सॉरी हाथ पीले तो लड़कियों के होते हैं न…हां तो मुझे दोनों के शरीर नीले करने की फ़िक्र है…अब शादी के बाद रोज़-रोज़ पिटने पर शरीर नीला नहीं होगा तो क्या होगा…अगर मेरी आप-बीती पर यकीन नहीं आता तो फोटो पहेली कर हंसते हंसाने वाले राजीव तनेजा भाई से पूछ लो…वो तो यहां तक आपको बता देंगे कि बेलन आपकी तरफ किस एंगल से आए तो आपको कितने डिग्री पर शरीर को घुमा कर खुद को बचाना है…राजीव भाई की मुस्कुराहट का राज ही ये है…तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो…क्या गम है जिसको छुपा रहे हो…

हां तो मैं बात कर रहा था ब्रदर इंडिया की…पचास के दशक के आखिर में महबूब साहब ने बेहतरीन फिल्म बनाई थी..”मदर इंडिया”…उसमें नर्गिस मदर थीं और सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार उनके दो बेटे…यहां मैं ब्रदर हूं…मैं खुद घर में सभी भाई-बहनों में सबसे छोटा हूं…इसलिए मुझे तो छोटे भाइयों पर रौब झाड़ने या सेवा कराने का मौका मिला नहीं…इसलिए शुक्रिया ब्लॉगिंग के इस शौक का जिसने मुझे दो इतने प्यारे छोटे भाई दे दिए…महफूज़ और दीपक…जैसी मदर इंडिया में स्पिल्ट पर्सनेल्टी सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार की थी…वैसा ही कुछ मामला मेरे इन दो जिगर के टुकड़ों का भी है…सुनील दत्त के किरदार बिरजू की तरह ही मेरा महफूज़ थोड़ा नटखट है…और राजेंद्र कुमार के किरदार की तरह दीपक धीर-गंभीर

महफूज़ मास्टर दावे तो करता है फ्लर्ट का किंग होने की…लेकिन वायरल बुखार में तपने के बावजूद घर में अकेला ही बार-बार किचन में जाकर चाय बनाता है…कम से कम अपनी एक सखी को ही बुलवा कर ही चाय-पानी की तीमारदारी का सुख ले लेता…हमारे मरहूम अंकल यानि अपने लेफ्टिनेंट कर्नल पिता से सवाल करता था कि आपने इतना हैंडसम बेटा ही क्यों पैदा किया…तो महफूज़ बेटा जी…अब आप जैसे हैंडसम को अपनी लाइफ का सम हल करने के लिए किसी नाज़नीन का हैंड थामने का वक्त आ गया है…ये जो बुखार में उबलने के बावजूद एसी की फर्र-फर्र हवा खाने का शौक चर्राया हुआ है न, ये हमारी बहू बेगम के आते ही हवा में न फुर्र हो जाए तो मुझे कहना…वैसे पापाजी के सामने तो बिगड़े स्कूटर के पुर्जे-पुर्जे अलग-अलग कर दिए थे…लेकिन अगर पराए घर की शहजादी के सामने ऐसी कोई हरकत करने की कोशिश की तो अपने शरीर के ही पुर्जे-पुर्जे होते दिखाई देंगे…

ये तो हुई महफूज़ की बात…अब आता हूं अपने दूसरे बाल गोपाल दीपक मशाल पर…आज अपनी पोस्ट पर बीती खुशी का ज़िक्र कर उसने दिल का कुछ हाल तो दे ही दिया…जनाब चोट गहरी खाए हुए हैं…घर से बाहर परदेस में डेरा है…अब इसके दर्दे-दिल की दवा क्या है…वैसे बचवा दो दिन बाद भारत आ ही रहा है…तब कान पकड़ कर थोड़ी दिल की बात निकालने की कोशिश करूंगा…इसे अब बीती खुशी की जगह बहुत सारी खुशी की ज़रूरत है…वैसे इस दीपक के भोले-भाले मुखड़े से धोखा मत खाइएगा…आज जनाब ने अपनी पोस्ट पर अनिल पुसदकर भाई की टिप्पणी पर जो हाज़िर जवाबी दिखाई है खुद को RAI (Randwa Association of India) का सदस्य बता कर, उसी से समझ लीजिए कि ये भोलू राम भी कम छुपा-रूस्तम नहीं है…

अभी तक सारी ब्लॉगर बिरादरी महफूज़ के सिर पर ही सेहरा देखने की फ़िक्र कर रही थी…जैसा कि टिप्पणियों में बार-बार दिखता ही रहता है…अब इस लिस्ट में दीपक मशाल का नाम और जोड़ लीजिए…और जिस दिन ये घड़ी आएगी…उस दिन की बारात के बारे में सोचिए…ब्लॉगर ही ब्लॉगर…ठीक वैसे ही जैसे शिवजी बियाहने निकले थे…अब भोले की बारात में कौन-कौन बाराती थे…ये भी मुझे बताने की ज़रूरत पड़ेगी क्या…

(आज का स्लॉग ओवर भी इन्हीं दो मोस्ट एलिजेबल बैचलर्स को समर्पित है)

स्लॉग ओवर

महफूज़ और दीपक…शादी के लिए लड़की चुनने से पहले खुशदीप का ज्ञान सुन लो…फिर न कहना…बड़े भाई ने बताया नहीं था…

आप एक हाउस-फ्लाई को बटर-फ्लाई बना सकते हैं…


लेकिन एक बटर-फ्लाई को कभी हाउस-फ्लाई नहीं बना सकते…