मेरठ का हूं, औकात पर आ गया तो…खुशदीप

मेरठ का हूं, औकात पर आ गया तो कुकड़गांव बना दूंगा...

जॉली एलएलबी फिल्म में ये डॉयलॉग सुना तो अपने शहर मेरठ का मिजाज़ बड़ी शिद्दत के साथ याद आ गया…दिखने में अक्खड़, बेख़ौफ़ लेकिन दिल से ईमानदार..करनी पे आएं तो आगे-पीछे की सोचे बिना किसी से भी भिड़ जाने वाले…फिल्मकार सुभाष कपूर ने जॉली एलएलबी फिल्म में अरशद वारसी के ज़रिए मेरठ के इस करेक्टर को बाख़ूबी उकेरा है…

इस फिल्म की एक और खासियत है…कोर्ट-रूम के अंदर और बाहर के माहौल का सटीक चित्रण जैसा कि असलियत में उत्तर भारत में किसी भी निचली अदालत में देखा जा सकता है…अभी तक फिल्मों में जिस तरह की अदालतें देखते आए हैं, ये उससे अलग है…इस फिल्म को बनाने वाले सुभाष कपूर पत्रकार से फिल्मकार बने हैं…दिल्ली में पत्रकारिता के दिनों में उन्हें अदालतों के कामकाज को नज़दीक से देखने का मौका मिला…उसी अनुभव का उन्होंने जॉली एलएलबी में बड़ा अच्छा इस्तेमाल किया है…

ये फिल्म देखकर आपको दिल्ली का 10 जनवरी 1999 का बीएमडब्ल्यू हिट एंड रन केस याद आ सकता है…वही केस जिसमें पूर्व नौसेनाध्यक्ष एस एम नंदा के पोते संजीव नंदा पर शराब के नशे में फुटपाथ पर कार चढ़ाकर छह लोगों की जान लेने का आरोप लगा था…इसी केस में एक गवाह बाद में ये कहते हुए मुकर गया था कि हादसा कार से नहीं ट्रक से हुआ था…इसी मामले में संजीव नंदा की पैरवी करते हुए जाने-माने वकील आर के आनंद पर एक दूसरे गवाह को खरीदने की कोशिश करने का आरोप लगा था…

अमीरों के लिए देश में अलग क़ानून है और गरीबों के लिए अलग…कुछ बड़े वकील अमीर गुनहगारों को बचाने के लिए किस तरह सबूतों को मैनीपुलेट करते हैं?…किस तरह ये पुलिस के भ्रष्टाचार को अपने फायदे के लिए भुनाते हैं? कैसे ये गवाहों को खरीदकर दिन को रात और रात को दिन साबित कर देते हैं? जॉली एलएलबी में इसी कड़वे सच पर चोट की गई है…

जॉली एलएलबी में ‘दो कौड़ी के वकील’ जगदीश त्यागी उर्फ़ जॉली (अरशद वारसी) का मुकाबला दिल्ली के ‘टॉपनॉच’ वकील तेजिंदर राजपाल (बमन ईरानी) से है…जॉली ने मेरठ के लॉ स्कूल से एलएलबी की है… जो अंग्रेंजी में हाथ तंग होने की वजह से अपील को एप्पल और प्रोसिक्यूशन को प्रोसिच्यूशन लिख देता है…दूसरी और राजपाल को ऐसा तेज़तर्रार वकील बताया गया है जो किसी तारीख पर पैरवी के लिए भी जाता है तो चार-पांच युवा सूटेड-बूटेड असिस्टेंट वकील हमेशा उसके पीछे रहते हैं…

जॉली को मुवक्किलों का टोटा है…दूसरी ओर राजपाल लाखों की फीस देने की कुव्वत रखने वाले मुवक्किलों की ही पैरवी करता है…जॉली भी राजपाल जैसा ही बड़ा वकील बनने का सपना देखता रहता है…इसी चक्कर में  मेरठ से दिल्ली आ जाता है…जॉली एक लैंडक्रूज़र हिट एंड रन केस में पीआईएल दाखिल कर चर्चित होने का टोटका आज़माता है…जॉली का मकसद भी राजपाल की तरह ही माल कमाना होता है…इसी चक्कर में उसका अदालत में राजपाल से टकराव होता है…यही टकराव फिल्म की जान है…किसकी जीत होती है, ये जानने के लिए तो आपको फिल्म ही देखनी होगी…

लेकिन फिल्म के कुछ संवादों का यहां ज़रूर ज़िक्र करना चाहूंगा जिससे कि आपको सिस्टम पर चोट करती इस फिल्म का फील महसूस हो सके…जैसे कि…

‘ये अदालत है, यहां कुछ भी जल्दी नहीं होता’…


‘कानून अंधा होता है, जज नहीं, उसे सब दिखता है’…


‘फुटपॉथ लोगों के सोने के लिए नहीं होते….लेकिन फुटपॉथ गाड़ियां चलाने के लिए भी नहीं होते’…

फिल्म के एक दृश्य में थका-हारा जॉली एक पुल के नीचे पेशाब करने के लिए खड़ा होता है तो एक गरीब बुजुर्ग उससे आग्रह करता है कि साहब थोड़ा उधर चले जाएं, यह हमारे परिवार के सोने की जगह है….

फिल्म में सुभाष कपूर ने व्यंग्य को नई ऊंचाई दी है…कुछ कुछ ‘जाने भी दो यारों’ जैसी…ये व्यंग्य हंसाने के साथ कचोटता भी है…ये कचोट उन्हीं को हो सकती है जिनमें ईमानदारी बची है…लेकिन सिस्टम को जिन्होंने अपनी चेरी बना रखा है, उन्हें ये सच तिलमिला भी सकता है…

अरशद वारसी और बमन ईरानी दोनों मंझे अदाकार हैं…दोनों ने अपनी भूमिकाओं से पूरा न्याय किया है…लेकिन फिल्म में सबसे बाज़ी मारी है जज सुंदर लाल त्रिपाठी की भूमिका में सौरभ शुक्ला ने…फिल्म में सिर्फ एक सीन में आए संजय मिश्रा का गुरुजी का किरदार भी गज़ब का है…गुरुजी एक ऐसा हेडकांस्टेबल जो दिल्ली के थानों की नीलामी के लिए पुलिस अफ़सरों की क्लास लेता है…फिल्म में नायिका की औपचारिकता अमृता  राव ने पूरी की है…उनके हिस्से में दो गानों के अलावा जॉली के विवेक को झकझोरने का भी जिम्मा है…वैसे फिल्म में गाने ना होते तो भी चलता….

‘सलाम इंडिया’ और ‘फंस गये ओबामा’ के बाद जॉली एलएलबी सुभाष कपूर की तीसरी फिल्म है…अब वो विधू विनोद चोपड़ा के लिए मुन्ना भाई सीरीज़ की तीसरी फिल्म डायरेक्ट करने जा रहे हैं…उन्होंने राजू हिरानी को रिप्लेस किया है…ये अपने आप में ही उनके कैलिबर को दर्शाता है…उम्मीद है कि वो आगे भी अच्छे सिनेमा की चाह रखने वालों को निराश नहीं करेंगे…

Khushdeep Sehgal
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Kumar Harsh
12 years ago

इससे पहले इस फिल्म की 4-5 समीक्षा पढ़ चुका हूँ और यह उन सभी को पढ़ कर लिखा गया कोई लेख लग रहा है…
और पता नहीं क्यों लग रहा है कि आप की इस समीक्षा का काफी भाग आप ने दैनिक जागरण में छपी समीक्षा से उठाया है….

shikha varshney
12 years ago

मेरे दोनों पसंदीदा कलाकार हैं..देखेंगे तो है ही .

डॉ टी एस दराल

आज ही देखी। पसंद आई ।
हालातों पर बढ़िया , मनोरंजक और गहरा कटाक्ष है।
हालाँकि कोर्ट के दृश्य स्वदेसी रूचि को ध्यान में रखते हुए नाटकीय बनाये गए हैं।

chander prakash
12 years ago

Pakkj baat hai ki Arshad varsi , boman irani uprokt panktiyan dekh kar khushdeep bhai ke saath baith kar yeh film dekheinge – wo bhi meerut mein.

अजित गुप्ता का कोना

आप लोग ठीक‍ आते ही फिल्‍म देख लेते हो, यहां तो टीवी पर ही कुछ सीन देख लिए जाते हैं। लेकिन आपने इच्‍छा जागृत कर दी है। लगता है देखने का चक्‍कर चलाना पड़ेगा।

नुक्‍कड़

आप ब्‍लॉग पर ही अच्‍छे खुशियों के दीप जलाते रहें।

डॉ टी एस दराल

बढ़िया समीक्षा की है।
इस बहाने मेरठ का नाम भी उजागर हुआ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

किसी को कुछ नहीं कचोटता यहां. कहां हैं आप….. लेख अवश्य अच्छा लगा.

प्रवीण पाण्डेय

रोचक जंग है, जब जोर पूरा लगा हो..

Rohit Singh
12 years ago

हम भी दिल्ली वाले हैं…

अन्तर सोहिल

आपकी पोस्ट ने इच्छा जगा दी है
अब तो देखनी पडेगी

प्रणाम

प्रवीण
12 years ago

.
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.
आपने उत्सुकता जगा दी है, लगता है अब यह फिल्म देखनी ही पड़ेगी…

Satish Saxena
12 years ago

लगता है देखनी पड़ेगी …
शीर्षक पढ़कर लगा आपका किसी से पंगा हो गया है !
🙂

विष्णु बैरागी

एक के बाद एक, ऐसी ही समीक्षाऍं पढते-पढते, यह फिल्‍म देखने के लिए पेट में मरोडें उठ रही हैं और इधर है कि 31 मार्च की भागदौड जान लिए जा रही है।

'बाल-बच्‍चेदार, लालची और स्‍वार्थी बैरागी' हूँ। तय नहीं कर पा रहा हूँ किस बहाने जान दूँ।

Shalini kaushik
12 years ago

आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ………………. .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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