क्या मुर्गे को भी गुस्सा आता है…क्यों जनाब मुर्गे को गुस्सा नहीं आ सकता क्या…लीजिए फिर अपनी आंखों से ही देखिए…
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स्वाभाविक है।
हा हा हा इस थप्पड की गूंज की गूंज सुनाई देगी ..जरूर सुनाई देगी …
🙂 🙂
हमें तो लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में उमा भारती राहुल को फफेड़ रही हैं और मायावती चुपचाप तमाशा देख रही है। हा हा हा हा।
खुशदीप भाई , अपने मुर्गे को समझाइये ज़रा। जींस में म्यूटेशन हो गया लगता है । इसमें मुर्गी का भला क्या कसूर ।
आप जरा मन की आंखों से देखिए
एक टिप्पणीकर्ता की गर्दन
हिन्दी ब्लॉगर के हाथ में है
ब्लॉगर का कहना है
मेरी पोस्ट की लंबाई से
तेरी टिप्पणी मोटी (हाथी) कैसे ?
मुर्गे को गुस्सा आएगी ही
वो मुर्गा है न
गुर्गा नहीं है
हिन्दी ब्लॉगिंग में टेढ़ापन नहीं है : सीधे सीधे कह रहे हैं पाबला जी
इस अंडे में हाथी घुसा कैसे?
एक बड़बोले अधिकारी हैं आफिस में.. मस्ती में बोले जा रहे थे… यार बात तो बस यूँ समझो कि जैसे घर का खाते खाते इन्सान ऊब जाता है तो बाज़ार का खाने चला जाता है… स्वाद बदलने को …
पास ही बैठे उनके एक कार्मिक ने तपाक से पूछा, अच्छा तो मेमसाब जी भी बाज़ार का खाने जाती होंगी कभी न कभी 🙂
अधिकारी महोदय का चेहरा देखने लायक था 🙁
बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है – पधारें – कृपया ध्यान देंवे : अति विशेष सूचना – आलेख प्रतियोगिता और आप – ब्लॉग 4 वार्ता – शिवम् मिश्रा
हे राम
आप तो मुर्गी को बदनाम कर रहे हे जी…..मुर्गे को समझाओ कि आज बराबरी का जमाना हे, मुर्गा सारे बाडे की मुर्गियां समभाल सकता हे तो क्या मुर्गी एक हाथी…….राम राम
🙂 🙂 🙂
प्यार प्यार न रहा..
गुस्सा काहे का….समान अधिकार की बात है यह तो….;))
गुस्सा आने वाली तो बात है ही…)
हा हा हा हा हा हा हा
खुशदीप सर, मज़े आ गए……….
" अच्छा सिला दिया तुने मेरे प्यार का … "
गुस्सा आने वाली तो बात है ही … मुर्गे का सनम बेवफा जो निकला !!
जय हिंद !!