मिलिए मेरे भतीजे करन सहगल से…खुशदीप

आज की माइक्रोपोस्ट मैं एक निजी प्रायोजन से लिख रहा हूं…दरअसल मैं आप सबसे अपने भतीजे करन सहगल के लिए एक छोटी सी मदद चाहता हूं…करन को दो साल पहले ब्रिटिश काउंसिल ने विश्वस्तरीय प्रतियोगिता के बाद इंटरनेशनल क्लाइमेट चैंपियन चुना था…इसके बाद वो ब्रिटिश काउंसिल के ज़रिए लंदन और कोबे (जापान) में इंटरनेशनल क्लाइमेट मीट्स में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुका है…

फोटो में करन मध्य में है

करन इस वक्त दिल्ली यूनिवर्सिटी के शहीद सुखदेव कालेज ऑफ बिज़नेस स्टडीज में बीबीएस का स्टूडेंट है…उसे अपने एक प्रोजेक्ट के लिए सौ लोगों का सर्वे करना है…आप सबको इस सर्वे को पूरा करने में दो मिनट का वक्त लगेगा…अगर आप इस लिंक पर जाकर सर्वे को पूरा कर सकें तो मैं व्यक्तिगत तौर पर आपका शुक्रगुज़ार रहूंगा…

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drdhabhai
14 years ago

भैया भर दिया….बाकि लगता है आप कहीं घुमाने ले जा रहे हैं सब को ………

Rohit Singh
14 years ago

लो जी हम भी चल दिए। दद्दा वैसे ही आदेश दे दिया होता। 100 पूरे करवा देता।

Khushdeep Sehgal
14 years ago

शुक्रिया प्रमोद,
तुमने बीता वक्त फिल्म की रील की तरह फिर याद दिला दिया….प्रमोद बहुत ही मेहनती, लगनशील और समर्पित शख्स है और इस वक्त टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में ऊंची पोस्ट पर है…मैंने उसे जब भी काम को लेकर कोई बात बताई, उसने बड़े अच्छे ढंग से उसे ग्रास्प किया और अंजाम दिया…ईश्वर उसे सफलता के ऊंचे से ऊंचे सोपान तक ले जाए…

जय हिंद…

प्रकुरा
14 years ago

इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

प्रकुरा
14 years ago

इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

प्रकुरा
14 years ago

सहगल जी के पिता का जाना और 9 साल पहले की एक घटना
(सर, हो सके तो इसे कमेंट से बाहर कहीं पोस्ट के रूप में लगा दें।
प्रमोद राय )

नौकरी-पेशे के साथ-साथ घर परिवार की जिम्मेदारियों और रोजमर्रा के रिश्तों को निभाना सहगल जी बखूबी जानते हैं। आपके पिताजी के निधन की खबर सुनकर अचानक मेरी यादाश्त करीब एक दशक पहले चली गई है। बात उन दिनों की है, जब सहगल जी अमर उजाला मेरठ से नोएडा भेजे गए थे और मैं उनके अंडर में ट्रेनी सब एडिटर के रूप में काम कर रहा था। तब भी काम, अनुशासन और व्यवहार कौशल के चलते दफ्तर में सहगल जी की काफी इज्जत होती थी। पारिवारिक जिम्मेदारियों या अन्य विवशताओं से तब वह रोजाना मेरठ से नोएडा आते जाते थे। वक्त पर दफ्तर आने और टाइम मैनेजमेंट के चलते लोग कहते थे कि वे घड़ी की नोक पर चलते हैं। …मुझे वो दिन याद है, जब घड़ी की नोक पर चलने वाला यह शख्स एक दिन घंटो देरी से आया। फिर लगातार दो तीन दिन देरी से। हो सकता है कि उन्होंने बॉस को वजह बता दी हो, लेकिन सहकर्मियों में यह एक असामान्य बात थी। इस दौरान सहगल जी के चेहरे पर तनाव और चिंता की लकीरें साफ नजर आती थीं। अचानक एक दिन फोन आया और सहगल जी बॉस को बताकर जल्दी जल्दी दफ्तर से जाने लगे। जाते जाते वे कुछ यूं बुदबुदाए ..काम हो गया यार। कुछ दिन बाद पता चला कि वे पिता की गंभीर बीमारी और शायद पीठ या रीढ़ के ऑपरेशन को लेकर परेशान थे। वे पिता को हर हाल में बेहतरीन चिकित्सा सुविधा दिलाना चाहते थे। लेकिन हालात के तकाजे पर उनकी पहुंच छोटी पड़ रही थी। शायद ऑपरेशन की दरकार जल्द से जल्द थी, इसलिए सहगल जी इस दिशा में हर प्रयास कर रहे थे। डेस्क से जुड़े रहने के कारण प्रशासनिक हलके में उनकी कोई खास पहचान नहीं थी और अखबारी प्रभाव बेअसर था। उन्होंने सीधे या किसी के माध्यम से ब्यूरो के किसी शीर्ष व्यक्ति मदद की गुजारिश की। पता नहीं, ये पिता के प्रति बेटे के समपर्ण भाव का असर था या सहगल जी के अनवरत प्रयासों का, कुछ ही दिन बाद ब्यूरो से उन महोदय का फोन आ गया कि आपके पिताजी का ऑपरेशन जल्द हो जाएगा, आप उन्हें मेरठ से दिल्ली लाने का इंतजाम करें। तब राहत की एक लंबी सांस लेते हुए पहली बार सहगल जी ने अपने पिता और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में हमें बताया था। उन्होंने बताया था कि कैसे पिता ने देश के बंटवारे के बाद भारत आकर सब कुछ नए सिरे से शुरू किया था और बच्चों की जिंदगियां बसाई थीं। …
.यह बात यहां कहते थोड़ी अटपटी लग रही है, पर जरूरी है। उनके पिताजी की हालत उसी समय इतनी गंभीर थी कि आराम करने में भी तकलीफ होती थी और सहगल जी यह उम्मीद कर रहे थे कि ऑपरेशन के बाद कम से कम वह सुकून से बिस्तर पर तो लेट ही सकेंगे। करीब 10 साल बाद उनके निधन की खबर सुनकर सबसे पहले मेरे दिमाग में यह बात आ रही है कि अगर वह इतने दिनों तक हमारे बीच थे तो इसमें कोई शक नहीं कि ईश्वरीय कृपा के अलावा बच्चों की सेवा का सबसे बड़ा योगदान रहा होगा। ….

जम्प कट
इसी बीच एक दिन मेरे पिताजी की तबीयत खराब होने की खबर आई। मै्ं अफरा तफरी में दफ्तर से छुट्टी लेकर इलाहाबाद गया। दो तीन दिन बाद दफ्तर लौटा तो सभी ने खैरीयत पूछी। मैंने कहा अब तबीयत बिल्कुल ठीक है। सहगल जी ने पूछा, क्या हुआ था। मैंने कहा, कुछ खास नहीं, एज रिलेटेड प्रॉबल्म्स हैं। पिताजी बुजुर्ग हैं, बीच बीच में बीमार पड़ जाते हैं। उन्होंने पूछा कितनी उम्र है, मैंने कहा, यही कोई 65। सहगल जी की बड़ी आंखे पूरे फॉर्म में नजर आईं। बोले-कमाल की बात करते हो यार, यह भी कोई उम्र है। तुम्हें ऐसे नहीं बोलना चाहिए। यही बात तुम दूसरे तरीके से भी कह सकते थे। फिर आदत के मुताबिक उन्होंने मसले को पॉजिटिव टोन देते हुए कहा, इस उम्र में तो लोग राजनीति में करियर शुरू करते हैं। खैर.. उनका आशय यह था कि हमें अपनी मेहनत, कमाई और समर्पण के आखिरी छोर तक मां-बाप के बारे में सोचना चाहिए।

और हां..
भतीजे के सर्वे में मदद का आग्रह कहीं न कहीं उसी पारिवरिक और सांस्कारिक भावना से जुड़ा है, जिसकी डोर में पिताजी ने कभी पूरे परिवार को बांधा होगा।
… प्रमोद राय

Udan Tashtari
14 years ago

चाचा जैसा ही है… 🙂

नीरज गोस्वामी

कारण नहीं जी करन…टाइपिंग में गलती हो गयी…हो जाती है जी…उम्र अपना असर अब नहीं दिखाएगी तो कब दिखाएगी? हमने फार्म भर दिया है जी…

नीरज

नीरज गोस्वामी

ऐसे स्मार्ट समझदार भतीजे के लिए आप जो कहो करेंगे…ये तो जी छोटा मोटा काम बताया है आपने…कारण खुश रहे और खूब तरक्की करे ये ही दुआ करते हैं…

नीरज
(ताउजी)

shikha varshney
14 years ago

भेज दिया है भर कर.शुभकामनाये करन को.

अन्तर सोहिल

शुक्रगुजार जैसी कोई बात नहीं है जी
हमें खुशी होगी
देखता हूँ लिंक पर जाकर

प्रणाम

अजित गुप्ता का कोना

अजी भेज दिया।

प्रवीण पाण्डेय

स्मार्ट भतीजे, स्मार्ट प्रश्न।

Unknown
14 years ago

दे दिया जी हमने सभी प्रश्नों के उत्तर

Shah Nawaz
14 years ago

सर्वे फॉर्म सबमिट कर दिया है, करन के बारे में जानकार अच्छा लगा, शुभकामनाएँ!

Gyan Darpan
14 years ago

सारे जबाब दे आये है जी

दिनेशराय द्विवेदी

भतीजे को आप न बताते तो भी हम शक्ल से पहचान लेते। होनहार बिरवान के होत चीकने पात।

विवेक रस्तोगी

सर्वे कर दिया है, बच्चों को ऐसे ही बढ़ावा देना चाहिये, करन को शुभकामनाएँ।

राम त्यागी

I will do it once I am on PC , may be in next 30-40 mins

अजय कुमार झा

हां अब देख पढ लेते हैं आपको भी पहले तो भाई भतीजे का काम कर आए हैं आखिर हमारे घूमने फ़िरने की प्लानिंग अब उसीसे तो करवानी है आपका क्या ज्यादा हुआ तो जीटीवी दिखा देंगे आप तो …हम अभी से भतीजे की पार्टी ज्वाइन कर रहे हैं

शिवम् मिश्रा

सही कह रहे है खुशदीप भाई …… यह ब्लॉग जगत अब किसी परिवार से कम नहीं है हम सब के लिए !
यही दुआ है कि यह परिवार यूँ ही बना रहे !

जय हिंद !

शरद कोकास

बहुत लम्बा फॉर्म है भाई .. कल सुबह देखते हैं ।

Khushdeep Sehgal
14 years ago

शिवम आज करन को मेरे साथ तुम्हारे जैसे और भी कई चाचा मिल जाएंगे…

जय हिंद…

शिवम् मिश्रा

दे दिए जी सारे जवाब …और क्या आदेश है जनाब !

शिवम् मिश्रा

अभी जाते है जी !

वैसे बरखुरदार चाचा जैसा ही स्मार्ट है !

😉

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