मां के दूध का भी धंधा…खुशदीप

शुक्रवार पत्रिका के संपादकीय में एक अनोखी जानकारी पढ़ने को मिली…नेट पर रिसर्च की तो इस बारे में और भी बहुत कुछ जानने को मिला…लंदन के कोवेंट गार्डन रेस्तरां (आइसक्रीमिस्ट शॉप) में आजकल बिक रही एक आइसक्रीम बेहद चर्चा में है…आइसक्रीम का नाम है बेबी-गागा…आइसक्रीम तो पूरी दुनिया में बिकती है, फिर इसमें खास बात क्या है…खास बात है हुजूर…ये आइसक्रीम मां के दूध की बनी हुई है…जी हां मां के खालिस दूध की…चौंक गए न आप ये पढ़ कर…मार्टिनी गिलास में सर्व की जाने वाली इस आइसक्रीम के एक स्कूप की कीमत 14 पाउंड (साढे 22 डॉलर या 1022 रुपये) है…ज़ाहिर है अमीर ही इस शौक को पूरा कर सकते हैं…रेस्तरां मालिक मैट-ओ-कोनोर का दावा है कि पिछले 100 साल में आइसक्रीम के साथ ऐसा अभिनव और शानदार प्रयोग कभी नहीं किया गया…

रेस्तरां ने बाकायदा आनलाइन फोरम मम्सनेट पर एड निकाल कर नवजात बच्चों को दूध पिलाने वाली माओं से दूध बेचने की पेशकश की…करीब 15 माएं अपना दूध बेचने के लिए तैयार हो गईं…जिन महिलाओं ने दूध बेचा, उनमें से ही एक विक्टोरिया हिले का कहना है कि वो पहले भी ऐसी मांओं को अपना दूध देती रही हैं, जिन्हें दूध नहीं उतरता…हिले खुश हैं…उनका तर्क है कि वयस्क लोगों को भी अब ये पता चलेगा कि मां का दूध कितना स्वादिष्ट होता है…ऐसे में वो माएं भी अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए प्रेरित होंगी जो अभी तक इससे परहेज़ करती रही हैं…फिर मंदी के दौर में कुछ कमाई भी हो जाए तो क्या बुरा है…

फरवरी के आखिर में ये आइसक्रीम बिकनी शुरू हुई तो लंदन के स्थानीय प्रशासन ने हानिकारक बैक्टीरिया के प्रसार से बीमारी फैलने के डर से आइसक्रीम का सारा स्टॉक जब्त कर लिया…लेकिन एक बार जांच में आइसक्रीम को क्लीयरेंस मिलने के बाद इसकी बिक्री दोबारा शुरू हो गई है…ज़ाहिर है मां के दूध को इस तरह धंधे की चीज़ बनाने के विरोध में कुछ संगठन आवाज़ भी उठा रहे होंगे…लेकिन आइसक्रीम फिर भी बिकती रहती है और धंधा चल निकलता है तो मुनाफ़े के चक्कर में दूसरे कारोबारी भी बहती गंगा में हाथ धोना पसंद करेंगे…

ब्रिटेन ही नहीं ये धंधा दूसरे देशों में भी पैर पसारेगा…अगर बडे़ पैमाने पर ऐसी आइसक्रीम का उत्पादन होने लगे और मान लीजिए यही धंधेबाज़ भारत जैसे देश में भी एड देकर माओं से आइसक्रीम के लिए दूध बेचने की लुभावनी पेशकश करना शुरू कर दें तो…इस देश में सरोगेट मदर (किराए की कोख) की सेवाएं लेने के लिए विदेश से आने वाले निसंतान लोगों की तादाद पहले से ही बढ़ती जा रही है… जिस देश में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी गरीब मुश्किल से कर पाते हों, वहां क्या गारंटी कि पैसे के लालच में कुछ माएं अपना दूध बेचने के लिए तैयार न हो जाएं…

ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़े के चक्कर में प्रोफेशनल दिमाग क्या-क्या प्रयोग नहीं कर डालते…मां के दूध का धंधा करने से भी इन्हें गुरेज़ नहीं…लेकिन मां के दूध का कर्ज चुकाने की कहावत तो सिर्फ भारत में ही चलती है…ये भारत में ही कहा जाता है…मां का दूध पिया है तो सामने आ…अब ऐसी बातों का मतलब मां के दूध की आइसक्रीम बनाने वाले क्या जाने…उनके लिए तो हर चीज़ बिकाऊ है…बस जेब मुनाफ़े से भरती रहनी चाहिए… इस खबर पर लंदन में रहने वालीं शिखा वार्ष्णेय जी से आग्रह है कि वो इस पर सही वस्तुस्थिति से ब्लोगवुड को अवगत कराएं…

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राजीव तनेजा

दराल सर से सहमत

ताऊ रामपुरिया

अभी तो तमाशा शुरू ही हुआ है. इसी को कहते हैं पूंजीवाद, सब कुछ इसके भेंट चढ जायेगा.

रामराम

डॉ टी एस दराल

भाई बिकता तो खून भी है । लेकिन सोचिये यदि इस में भी मिलावट होने लगी तो ?

बेनामी
बेनामी
14 years ago

अतिरंजित

vandana gupta
14 years ago

कमाल है जी…………और देखते है कितने कमाल बाकी हैं।

Udan Tashtari
14 years ago

पढ़ा यह समाचार भी..इसी जन्म में. देखते हैं और क्या क्या देखना, सुनना बाकी है.

अन्तर सोहिल

क्या कहें?

ब्लॉ.ललित शर्मा

धाय माँ का दूध जरुरतमंद बच्चे को उपलब्ध पहले भी कराया जाता था। जिसकी व्यव्स्था कुंटुम्ब कबीले से ही हो जाती थी।
लेकिन व्यावसायिकरण एक अलग पहलु है। पुंजीवाद जो करा दे वही कम है।
अच्छा आलेख खुशदीप भाई। आपने महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाला।
आभार

नीरज गोस्वामी

आगे आगे देखिये होता है क्या…

नीरज

Unknown
14 years ago

jab khoon bachne ka dhanda desh main ho sakata hai to doodh ka kiyu nahi———————

jai baba banaras————

अजित गुप्ता का कोना

आइसक्रीम की बात गले नहीं उतरती। इतनी तादाद में दूध मिलना सम्‍भव नहीं लगता।

सतीश सक्सेना

कमाल है …

व्‍यंग्‍य-बाण

मां का दूध अगर किसी बच्चे की जरूरत में काम आए तो इससे बड़ा धर्म कोई हो नहीं सकता, लेकिन इसे महज रसास्वादन के लिए बेचा जाना गलत है। यह अमीरों के शौक हैं, इससे न तो किसी की जरूरत पूरी होती न तो यह किसी तरह का मानववाद है। शर्म आनी चाहिए ऐसी महिलाओं को भी और उन व्यापारियों को भी, जो मां के दूध के नाम पर धंधा शुरू कर चुके हैं।

anshumala
14 years ago

खुशदीप जी

भारत में ये हो रहा है और काफी पहले से ये हो रहा है | ब्लड बैंक की तरह माँ के दूध का भी बैंक है यहाँ पर वो महिलाए अपना दूध देती है जिनके बच्चे बीमार होने के कारण या किसी अन्य कारण से कुछ समय के लिए माँ का दूध नहीं पी रहे है वो महिलाए भी यहाँ अपना दूध दान कर देती है जिन महिलाऊ के बच्चो की तुरंत मौत हो गई वैसे तो इस तरह की महिलाओ को एक इंजेक्शन दे कर उनके शारीर में दूध बनने की प्रक्रिया को रोक दिया जाता है किन्तु जिनके बच्चे की कुछ दिन बाद मौत हो जाये या जो ये इंजेक्शन न लगवाना चाहे वो अपना दूध यहाँ पर दान करती है और ये सारा दूध उन बच्चो को दिया जाता है जो माँ के बीमार होने के कारण या माँ के न होने के कारण या माँ को दूध न होने के कारण माँ के दूध से महरूम हो जाते है | ये एक अच्छा और सराहनीय काम है किन्तु इस बारे में लोगो की जानकारी काफी कम है और जरुरत मंद लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते है |

Shah Nawaz
14 years ago

ओह्ह्ह! माँ का दूध ममता का प्रतीक होता है… ममता का भी मोल… अफसोस की बात है यह…

देवेन्द्र पाण्डेय

इंसानों में ज्यों-ज्यों पाशविक प्रवृत्तियाँ बढ़ती जायेंगी त्यों-त्यों वह वे सभी अत्याचार स्वयम् पर करने का भरपूर प्रयास करेगा जो अब तक पशुओं पर करता आ रहा है।

chander prakash
14 years ago

पढ़ कर सिर चकरा गया … ये सोच कर हैरां हूं कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी ।
– सी पी बुद्धिराजा

दिनेशराय द्विवेदी

दूध तो सारा का सारा माँओं का ही होता है। और संतानों पर उस का अधिकार होता है।
पर इस प्राकृतिक व्यवस्था को तो मनुष्य ने तभी नकार दिया जब उस ने पहले पहल जानवरों का दूध पीना आरंभ किया था।
बच्चों के लिए दूसरों की माँओं का दूध तो बहुत पहले, गुलामी के दौर से इस्तेमाल होता रहा है। अब बिकने भी लगा।
जय पूँजीवाद! तेरी महिमा निराली है।

Gyan Darpan
14 years ago

जब कोख तक बिकाऊ हो चुकी है तो दूध का क्या कहें !!

प्रवीण पाण्डेय

श्वानों को मिलते दूध वस्त्र, भूखे बच्चे अकुलाते हैं,
माँ की छाती से चिपट चिपट जाड़े की रात बिताते हैं।

राज भाटिय़ा

अजी यह खबर तो बहुत पुरानी हो गई हे, मैने करीब तीन चार साल पहले पढी थी, हेरानगी की बात तो यह हे कि अभी तक भारत मे मांऒ के दुध बेचना शुरु नही किया? क्योकि हम तो नकल मारने मे दुनिया मे अब्बल हे ना 🙂
लेकिन इस खबर के पीछे की असलियत पैसा कमाना नही था, बाल्कि उन बच्चो तक दुध पहुचाना था जिन की माऒ के दुध नही ऊतरता बच्चा होने के बाद, यह युरोप मे बहुत होता हे, ओर मां का दुध बच्चे के लिये बहुत लाभ दायक हे, ओर कई महिल्य्यो के दुध बहुत ज्यादा उतरता हे, लेकिन यह अग्रेज मां से भी धंधा करवाने मे पीछे नही बचे… जब कि इस का उद्देश उस समय के समाचारो के अनुसार दुध बेचना नही, सिर्फ़ दुसरे बच्चे को देना था, जिन बच्चो को किसी कारण मां का दुध नही मिल रहा. धन्यवाद

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