मैसूर की 80 साल की मलम्मा के लिए ‘मदर्स डे’ दो हफ्ते पहले ही आ गया…उन्हें सबसे बड़ा तोहफ़ा मिल गया…तोहफ़ा आज़ादी का…पुलिस ने गाय के तबेले में बंधक की तरह रह रही मलम्मा को मुक्त कराया…उन्हें इस हाल में रखने वाला और कोई नहीं बल्कि खुद उनका सगा बेटा जयारप्पा था…
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मलम्मा |
पुलिस के मुताबिक मलम्मा मैसूर की इट्टीगेगुडु बस्ती में अपने मकान में बरसों से पति मरियप्पा, बेटे जयारप्पा और बहू नगम्मा के साथ रहती आ रही थीं..लेकिन पति मरियप्पा के मरते ही बेटा जयारप्पा उन्हें बोझ समझने लगा…आरोप के मुताबिक दो साल पहले जयारप्पा ने घर में कम जगह का हवाला देते हुए मां से गाय और बछिया के लिए बने छप्पर में जाने को कहा…मलम्मा को दिन में कभी छप्पर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता था…खाना भी छप्पर में पहुंचा दिया जाता…मलम्मा को गोबर के ढेर और गंदगी के बीच ही सोना पड़ता…एक रात मलम्मा ने एक पड़ोसी को बताया कि उसे किस हाल में रहना पड़ रहा है…
मां की अहमियत उनसे पूछनी चाहिए जिनके सर से बहुत छोटी उम्र में ही मां का साया उठ जाता है….या उनसे जिन्हें मां की ममता से दूर परदेस में रहना पड़ता है…
आज फिर सुनिए मां पर मेरा सबसे पसंदीदा गीत…आवाज़ मलकीत सिंह की है…
गाने का सार कुछ इस तरह से है…बेटा चार पैसे कमाने की खातिर विदेश में है…वहीं उसे वतन से आई बहन की लिखी चिट्ठी मिलती है….वो चिट्ठी को पहले चूम कर आंखों से लगाने की बात कह रहा है….. बहन चिट्ठी में घर में बूढ़े मां बाप और अपना हाल सुना रही है…भाई बस भरोसा दिला देता है कि मां को समझा, मैं अगले साल घर वापस आऊंगा…
नी चिट्ठिए वतना दिए तैनू चूम अंखियां नाल लावां
पुत परदेसी होण जिना दे, रावां अडीकन मांवां
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
दस हां चिट्ठिए केड़ा सनेहा वतन मेरे तो आया
किना हथां दी शो ए तैनू, किसने है लिखवाया
हरफ़ पिरो के कलम विच सारे मोतियां वांग सिधाया
लिख के पढ़या, पढ़ के सारा लिखया हाल सुणाया
किसने तैनू पाया डाके, किस लिखया सरनावां
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
अपणा हाल सुणाया जुबानी, अंखियां दे विच भर के पानी
हंजुआ दे डूब गेड़ निशानी, अपणे आप सुनाए कहानी
हमड़ी जाई ने लिखया आपे, वीरा अडीकन बूढरे मा-पे
जेड़ी सी तेरे गल लग रोई, बहण व्यावन जोगी होई
तू वीरा परदेस वसेंदा, कि कि होर सुणावां
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
अमड़ी जाइए नी निकिए बहणे, वीर सदा तेरे नाल नहीं रहणे
तू एं बेगाणा धन नी शुदैने, रबियों ही विछोड़े सहणे
रखिया कर तू मां दा ख्याल, अखियां रो रो होए निहाल
कह देई मां नू तेरा लाल, घर आवेगा अगले साल
पूरन पुत परदेसी जांदे, लकड न ततियावां
मावां ठंडियां छावां, मावां ठंडिया छावां…
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सच… औलाद कितनी भी बेगैरत क्यों न हो, मां का दिल हमेशा मां का ही रहता है…
तभी कहते हैं ना माँ माँ ही होती है…ऐसे बेटों के बारे में पढ़ कर सर शर्म से झुक जाता है…
नीरज
मासूम भाई,
इतने लंबे ब्रेक नहीं लिया कीजिए…आप के रहने से ब्लाग-जगत का माहौल सुधरा रहने में बहुत मदद मिलती है…
जय हिंद…
खुशदीप भाई कैसे हैं जनाब? आते ही आपके ब्लॉग पि तरफ दौड चला और पाया एक बेहतरीन सवाल उठाता लेख. बस ऐसे ही लिखते रहे.
मार्मिक पोस्ट।
धूप से बचे
छाँव में जले
कहीं ज़मी नहीं
पाँव के तले
नई हवा में
जोर इतना था
निवाले उड़ गए
थाली के ।
क्या कहें!
क्यों कहें!!
किससे कहें!!!
ज़ख्म गहरे हैं
माली के ।
यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। सच है यह जमाना लोगों को ऐसा ही बनाए जा रहा है।
यह पढ़कर मन दुखी हो गया।
कभी भारतीय परिवार मातृप्रधान हुआ करते थे लेकिन अब पत्नीप्रधान बनते जा रहे हैं, इसी का परिणाम है यह।
समाज में संवेदनाएं ख़त्म होती जा रही हैं .
बहुत मार्मिक आज के समाज को दर्पण दिखाती हुई सार्थक पोस्ट
पता नहीं कितनी माएँ अपने आंसू छिपाती हैं , काश एक मेरे पास होती !
शुभकामनायें अम्मा को …
फिलहाल तो सरकारी अस्पताल में मलम्मा का इलाज़ चल रहा है…
जय हिंद…
Really its very sad….I hope amma is in safe place now…God bless
बहुत दुखद घटना है , और तकलीफ और बढ़ जाती है यह सोच कर कि ये किससे आम है !
दु:खद घटना है। मलम्मा को आज़ादी मुबारक लेकिन यह स्पष्ट नहीं हुआ कि अब मलम्मा कहाँ रह रही हैं।