‘भगवान’ से बड़ा ‘इंसान’…खुशदीप

इंसान महंगाई से त्राहि माम-त्राहि माम कर रहा है…लेकिन भगवान की कमाई लगातार बढ़ती जा रही है…सुख-संपत्ति के धाम लगातार फलते-फूलते जा रहे हैं…मान्यता है कि अपनी कमाई से कुछ हिस्सा ईश्वर के नाम कर दो और मंदिरों के रिवर्स एटीएम से समृद्धि अपने नाम कर लो…गरीबों के हक पर डाका मार कर काला धन कमाने वाले भी सोचते हैं कि ईश्वर को चढ़ावे से प्रसन्न रखो, सारे पाप साथ-साथ धुलते जाएंगे….और आजकल तो प्रसिद्ध धामों में भी जितना नकदी का गुड़ डालोगे, प्रसाद भी उतना ही मीठा मिलेगा…वीआईपी दर्शन ऊपर से बोनस में….

अब पहले धर्मार्थ के तहत आपको भारत के चार टॉप धामों की कमाई का लेखा-जोखा बताता हूं…

धर्मार्थ…

1…तिरुपति मंदिर, तिरुमाला, आंध्र प्रदेश

सालाना आमदनी…करीब 650 करोड़


रोज़ाना पहुंचने वाले श्रद्धालु…करीब 50 हज़ार


रोज़ाना का चढ़ावा…करीब 70 लाख


संचालन करने वाला ट्रस्ट…तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम

2… माता वैष्णो देवी, कटरा, जम्मू-कश्मीर

सालाना आमदनी…करीब 500 करोड़


रोज़ाना पहुंचने वाले श्रद्धालु…करीब 50 हज़ार


रोज़ाना का चढ़ावा…करीब 40 लाख


संचालन करने वाला ट्रस्ट… श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड

3… साई धाम, शिरडी, महाराष्ट्र

सालाना आमदनी…करीब 210 करोड़


रोज़ाना पहुंचने वाले श्रद्धालु…करीब 40 हज़ार


रोज़ाना का चढ़ावा…करीब 60 लाख


संचालन करने वाला ट्रस्ट…शिरडी साई बाबा संस्थान ट्रस्ट

4… सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई, महाराष्ट्र

सालाना आमदनी…करीब 50 करोड़


रोज़ाना पहुंचने वाले श्रद्धालु…करीब 40 हज़ार


रोज़ाना का चढ़ावा…करीब 25 लाख


संचालन करने वाला ट्रस्ट…सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट

ये तो रहा धर्मार्थ…अब बात करते है पुरुषार्थ की…(साभार, ऋषि प्रसाद, अमर उजाला)

पुरुषार्थ

एक मज़दूर रोज पत्थर तोड़ता और थक जाता…सोचता किसी बड़े मालिक का पल्ला पकड़ूं ताकि अधिक लाभ मिले और कम मेहनत करनी पड़े…ऐसा सोचते-सोचते वह पहाड़ में चढ़ गया और देव प्रतिमा से याचना करने लगा…लेकिन प्रतिमा चुप रही…उसने सोचा और भी बड़े देव की प्रार्थना करूं…बड़ा कौन…तो उसे सूरज दिखाई दिया…वह सूर्य की आराधना करने लगा..एक दिन बादलों ने सूरज को ढक लिया…दो दिन तक सूरज नही दिखा…मज़दूर ने सोचा…बादल सूरज से भी बड़े हैं…वह बादलों की पूजा करने लगा..फिर सोचा कि बादल तो पहाड़ों से टकरा कर बरस जाते हैं…पहाड़ का ही भजन करना अच्छा रहेगा…फिर सोचा कि पहाड़ को तो हम रोज़ ही काटते हैं…हमसे ताकतवर कौन है…सब छोड़कर वह अपने आप को सुधारने और आत्मदेवता की उपासना में लग गया…पुरुषार्थ के सहारे वह उठता चला गया…

स्लॉग ओवर

मक्खन के पड़ोस में एक दक्षिण भारतीय परिवार रहने के लिए आ गया…नया पड़ोसी मेलजोल बढ़ाने के नाते मक्खन के घर आया और बोला…अइयो, कल अमारे घर भोजन होता जी…आप को पूरा फैमिली के साथ आने को मांगता जी…मक्खन ने भी अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाते हुए न्यौता स्वीकार कर लिया…अगले दिन मक्खन, पत्नी मक्खनी और बेटा गुल्ली सज-धज कर नये प़ड़ोसी के घर पहुंच गए…वहां पूजा-पाठ चल रहा था…मक्खन का परिवार भी साथ बैठ गया…दो घंटे तक पूजा-पाठ चलता रहा…लेकिन मक्खन के दिमाग में दक्षिण भारतीय व्यजंन ही चक्कर काट रहे थे…पूजा खत्म होने के बाद दक्षिण भारतीय पड़ोसी मक्खन के पास आया और बोला…अइयो…अमको बोत अच्छा लगा जी आप का पूरा फैमिली हमारे साथ भोजन में हिस्सा लिया...नये पड़ोसी ने ये कहने के बाद भोजन के प्रसाद के तौर पर एक एक बतासा मक्खन, मक्खनी और गुल्ली के हाथ पर धर दिया…अब मक्खन घर लौटते सोच रहा था…भोजन या भजन…