ब्लॉगों में बहार है…खुशदीप

कल चमन था आज इक सहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ…


हिंदी ब्लॉग जगत की जो हालत है, उसे देखकर ये गाना खुद-ब-खुद लबों पर आ जाता है…16 अगस्त, 2009 को जब मैंने अपने ब्लॉग ‘देशनामा’ पर पहली पोस्ट डाली थी, उस वक्त हिंदी ब्लॉगिंग अपने पूरे उरूज पर थी…


वो जो हममें तुममें जुनून था
दिग्गज हिंदी ब्लॉगरों को जैसे जैसे पढ़ने का मौका मिला, मुझ पर भी ब्लॉगिंग का नशा छाता चला गया…धीरे धीरे इसने जनून की शक्ल ले ली…दिन में एक पोस्ट डालना नियम सा बन गया…रात के 3-3 बजे तक जाग कर पोस्ट लिखता…’देशनामा’ के साथ ‘स्लॉग ओवर’ पर भी… ये सिलसिला अगस्त 2009 से 2012 के शुरू तक बदस्तूर चलता रहा…


दिन में नौकरी, रात में ब्लॉगिंग…नींद ना पूरी करने की वजह से एक वक्त ऐसा भी आया कि सेहत पर ही बन आई…लेकिन कुछ खोया तो ब्लॉगिंग से पाया भी बहुत कुछ…लेखन में पहचान…बेशुमार दोस्त…वरिष्ठ ब्लॉगर्स का स्नेह…Indibloggers और BlogAdda से राष्ट्रीय स्तर पर पुरुस्कृत होना…स्लॉग ओवर के गुदगुदाने वाले पात्रों- मक्खन, ढक्कन, मक्खनी, गुल्ली का सभी की ओर से हाथों-हाथ लेना…


मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि जितने मैंने जीवन में दोस्त नहीं बनाए, उससे कहीं ज्यादा ब्लॉगिंग के दो-तीन वर्षों में ही बन गए…और दोस्ती का ये दायरा किसी शहर, प्रदेश तक सीमित नहीं रहा…ये सरहदों की बंदिशें तोड़ कर सात समंदर पार तक पहुंच गया… 


ब्लॉगिंग का ‘डायनासोर काल’ 
हिंदी ब्लॉगिंग को 5-6 साल पहले रॉकेट जैसी रफ्तार हासिल हुई तो इसके लिए कुछ बातें खास थीं, जैसे कि…

चर्चित एग्रीगेटर ‘चिट्ठा जगत’ पर टॉप 40 ब्लॉगर्स की सूची हर दिन जारी होना…इस सूची में अपना नाम देखने का सपना हर ब्लॉगर का होता, इसलिए अच्छे से अच्छा लिखने की हर एक में होड़ रहती…


‘ब्लॉगवाणी’ एग्रीगेटर भी बहुत लोकप्रिय हुआ…डिजाइन की दृष्टि से ये एग्रीगेटर बहुत सुविधाजनक था…पोस्ट लिखते ही इस पर चमकने लगती…कौन क्या लिख रहा है, ये इस एग्रीगेटर के जरिए पढ़ना बहुत सुविधाजनक था… 


अच्छे एग्रीगेटर्स के साथ उन दिनों ब्लॉगर्स मीट का सिलसिला भी खूब परवान चढ़ा…मुझे याद है कि मैंने पहली बार स्वर्गीय अविनाश वाचस्पति के बुलावे पर फरीदाबाद में हुई ब्लॉगर मीट में शिरकत की थी…कई दिग्गज ब्लॉगर्स से इस मीट में रू-ब-रू होने, उनकी जुबानी उनके विचार सुनना बहुत अच्छा लगा था…इसके बाद भाई अजय कुमार झा, राजीव तनेजा, राज भाटिया जी-अंतर सोहेल, अशोक बजाज जी की ओर से आयोजित की गई कई ब्लॉगर्स मीट में भी जाने का मौका मिला…यहां पर ब्लॉगिंग को दशा-दिशा देने के विचारों के अलावा खाना-पीना, हंसी-मजाक भी खूब होता था…फिर इन आयोजनों पर ब्लॉगर्स अपने-अपने तरीके से रिपोर्टिंग करते थे तो उन्हें भी बड़े शौक से पढ़ा जाता था…दूर-दराज रहने वाले ब्लॉगर्स को भी ऐसा अनुभव होता था कि वो भौतिक रूप से उपस्थित नहीं होने के बावजूद वैचारिक तौर पर वहां मौजूद रहे… 


ब्लॉगिंग की दाल में विवादों का तड़का
 ऐसा नहीं कि हिंदी ब्लॉगिंग में उस वक्त सब चोखा-चोखा ही था…विवाद भी खूब होते थे…एक-दूसरे की टांग खिचाईं का अलग ही मज़ा था…अपनी पहचान छुपा कर बेनामी टिप्पणियों का खेल भी खूब होता…ब्लॉगर्स मीट में शामिल होने के बाद आयोजकों पर भड़ास भी जम कर निकाली जाती…लेकिन ये सब भी ब्लॉगिंग का बड़ा आकर्षण था…कहते हैं ना चटकारे के लिए नमक-मसाला भी जरूरी होता है…नाराजगी होती तो मान-मनोव्वल भी होता…कोई टंकी पर चढ़ने (ब्लॉगिंग छोड़ने) का एलान करता तो सब उसे मनाने में लग जाते….सब कुछ एक परिवार जैसा था…जैसे परिवार में बर्तन खड़कते हैं वैसे ही ब्लॉगिंग में भी होता… 


लेकिन धीरे-धीरे ये सब खत्म तो नहीं लेकिन सुप्तावस्था में जाता चला गया…हालांकि कई ब्लॉगर्स ने ब्लॉगिंग की मशाल निरंतर जलाए रखी…इन पर फेसबुक-ट्विटर-व्हॉट्सअप जैसे आंधी-तूफानों का कोई असर नहीं हुआ, इनका ब्लॉग्स पर लेखन जारी  रहा…


ब्लॉगिंग के ठंडा पड़ने में टिप्पणियों के टोटे ने भी अहम रोल निभाया…इससे लेखन के लिए ब्लॉगर्स का उत्साह कम हुआ…एक और कारण था कि हर किसी की ये चाहत होती कि उसकी पोस्ट हर कोई पढ़े…हर कोई टिप्पणी करे….लेकिन दूसरों की पोस्ट पर जाने में कंजूसी बरती जाती…खास कर नए ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर…इस मामले में कुछ अपवाद भी थे जो नवांकुरों के ब्लॉग्स पर जाकर उनका निरंतर उत्साह बढ़ाते…


चिट्ठा जगत और ब्लॉगवाणी का बंद होना
ब्लॉगिंग के ‘डॉयनासोरी उत्थान’ के बाद फिर इसका नीचे आना शुरू हुआ…पहले ‘चिट्ठाजगत’ बंद हुआ और फिर ‘ब्लॉगवाणी’…दरअसल ये दोनों ब्लॉग एग्रीगेटर्स इनके संचालकों की ओर से निशुल्क चलाए जा रहे थे…वो कहते हैं ना कोई चीज़ मुफ्त मिल जाए तो उसकी कद्र नहीं होती…यहीं इन एग्रीगेटर्स के साथ हुआ…टॉप सूची को लेकर विवाद तो कभी पसंद-नापसंद के बटनों को लेकर मारामारी…निस्वार्थ और अपनी जेब से खर्च कर चलाए जा रहे इन एग्रीगेटर्स पर पक्षपात के आरोप लगे तो इनके संचालकों ने अपने हाथ वापस खींचना ही बेहतर समझा…इन एग्रीगेटर्स के बंद होने के बाद ‘हमारी वाणी’ ने काफी दिनों तक उनकी कमी पूरी करने की कोशिश की…लेकिन ब्लॉगर्स में उत्साह कम होते जाने की वजह से ‘हमारी वाणी’ भी ठंडा पड़ गया… 


फेसबुक बना चुंबक  
एक तरफ ब्लॉगिंग के लिए उत्साह ठंडा हो रहा था, दूसरी ओर इंस्टेंट लेखन, फोटो-वीडियो अपलोडिंग में आसान फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म भी सामने आ गए…व्हाट्सअप  ने हर एक के मोबाइल में पैठ बना ली…यहां लिखना आसान था…ब्लॉगिंग की तरह यहां पूरी पोस्ट लिखने की मेहनत नहीं करनी पड़ती…एक-दो लाइन से ही काम चलाया जाने लगा…फोटो डालो, लाइक्स बटोरो…फेसबुक आज बेशक सबसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म नजर आए लेकिन ये ब्लॉगिंग का रिप्लेसमेंट कभी नहीं हो सकता…सार्थक लेखन की संतुष्टि ब्लॉगिंग या अखबार-वेबपोर्टल्स पर लिख कर ही हो सकती है…फिर फेसबुक का जो सबसे बड़ा ड्रॉ-बैक ये है कि इसकी शेल्फ-लाइफ एक दिन की भी नहीं…इस पर किसी का पुराना लिखा ढूंढना हो तो वो समंदर से मोती निकालने जैसा कठिन होता है…अगर आप वनलाइऩर्स में अपनी पूरी बात कहने में सक्षम हैं तो आपके लिए फेसबुक और ट्विटर से अच्छा माध्यम कोई नहीं है…


ऐसा भी नहीं कि ब्लॉगिंग करने वाले को फेसबुक-ट्विटर से दूर रहना चाहिए…इनका सार्थक उपयोग ये हो सकता है कि आप जब ब्लॉग पर पोस्ट लिखें तो इसकी सूचना सोशल मीडिया के अपने सभी हैंडल्स पर भी दें…ये ठीक ऐसा ही है कि जैसे बड़े शो-रूम ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी विंडो को आकर्षक बनाते हैं….इसलिए ब्लॉगर्स को इन प्लेटफॉर्म को पूरक के तौर पर लेते हुए इनका बुद्धिमत्ता से उपयोग करना चाहिए…जैसे टीवी चैनलों के लिए टीआरपी और अखबारों के लिए रीडर्स संख्या मायने रखती है, वैसे ही आपके लिए ये मायने रखेगा कि आप के ब्लॉग को पढ़ने के लिए कितनी बड़ी संख्या में पाठक आते हैं…    


राजनीतिक प्रतिबद्धताओं ने बढ़ाई कटुता
फेसबुक ने जो सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाया वो लोगों के बीच कटुता बढ़ाने का किया…ये सच है कि सोशल मीडिया का अधिकाधिक इस्तेमाल बीते 2014 लोकसभा चुनाव के एक दो साल पहले से हुआ…राजनीतिक विचारधारा की प्रतिबद्धताओं के चलते इतना सच-झूठ लिखा जाने लगा कि अच्छे दोस्तों के बीच भी दरार आऩे लगीं…बिना पुष्टि की खबरें, फर्जी वीडियो, एजेंडे के तहत लेखन…इस सब ने अधिक जहर घोलने का काम किया…ये समझा जाना चाहिए कि फेसबुक पर सक्रिय रहने के लिए जरूरी नहीं कि आप लेखक हों, संपादकीय मूल्यों की समझ रखते हों…फेसबुक पर कोई भी बिना कुछ खास किए सक्रिय रह सकता है…लेकिन ब्लॉगिंग में ऐसा नहीं है…यहां आपका लेखन ही आपको सफलता दिलाएगा…नए नए मुद्दों, सामाजिक मूल्यों, समसामयिक विषयों पर आपकी लेखनी किस तरह चलती है, वो अच्छी किस्सागोई की तरह पाठकों को बांध सकती है या नहीं, इसी पर दारोमदार रहता है…


ठोस आर्थिक मॉडल कैसे बनेगा?
हिंदी ब्लॉगिंग से लोगों के उचाट होने का एक बड़ा कारण ये भी है कि अंग्रेज़ी ब्लॉगिंग की तरह इसका कोई ठोस आर्थिक मॉडल नहीं बन सका…गूगल ने हिंदी ब्लॉगिंग के लिए एडसेंस शुरू तो किया, लेकिन लगता नहीं कि कोई हिंदी ब्लॉगर इससे अच्छा कमा पाता हो…इस मामले में तकनीकी ब्लॉगर जरूर अपवाद हो सकते हैं….


अब अच्छी बात ये है कि ब्लॉगर्स के लिए गूगल एडसेंस के अलावा भी धनार्जन के मौके सामने आ रहे हैं…बस आपके लेखन में जान होनी चाहिए, धार होनी चाहिए…ऐसा है तो आप घर बैठे भी प्रोत्साहन के तौर पर सम्मानजनक राशि पा सकते हैं…लेकिन इस पर मैं कुछ और कहूं, इससे पहले ये समझ लेना चाहिए कि ये पलक झपकते ही नहीं होगा…इसके लिए पहले आपको मेहनत करनी होगी…मसलन सबसे पहले सभी को अपने ब्लॉग की पाठक संख्या बढ़ाने के लिए कमर कसनी होगी…सिर्फ टिप्पणियों के आदान-प्रदान से मकसद हल नहीं होगा…हर किसी को कोशिश करनी होगी कि वो एलेक्सा रैंकिंग में अपना प्रदर्शन जितना संभव हो सके अच्छा कर सके…फिर आप देखेंगे कि आप ऐसे मकाम पर पहुंच गए हैं जहां से पैसा कमाने के रास्ते खुल सकते हैं…ज़रूरी नहीं कि हर ब्लॉगर पैसे कमाने के लिए ही ब्लॉगिंग करे…कुछ ब्लॉगर आत्मसंतुष्टि और अपने रचनात्मक विकास के लिए भी ब्लॉग लेखन करते हैं…


आपस में सम्मान-सम्मान ना खेलें ब्लॉगर
एक और बड़ी बात कि ब्लॉगिंग को दोबारा उसके ऊंचे सोपान तक ले जाने के लिए कुछ बातों का भी ध्यान रखना होगा…जैसे ब्लॉगरों का ब्लॉगरों की ओर से सम्मान  किए जाने के तमाशे…ऐसी बातों से विवादों के जन्म की पूरी गुंजाइश रहती है और आपस में कटुता बढ़ती है…यहां कोई श्रेष्ठ नहीं बल्कि सभी के लिए समानता के सिद्धांत को अपनाना होगा…अगर सभी ज़ोर लगाएं तो मुझे पूरा विश्वास है कि वो दिन दूर नहीं, जब सब कह उठेंगे…‘ब्लॉगों में बहार है’…


#हिन्दी_ब्लॉगिंग